सूरह फज्र एक अहम सूरह है जो कुरान की 89वीं सूरह है। ये सूरह अल फज्र अल्लाह की क़ुदरत और इंसान के ईमान पर ज़ोर देती है। सूरह फज्र की फजीलत बोहत ज्यादा है, और इसे हिंदी, रोमन अंग्रेजी और अरबी में समझना आसान है। ये सूरह इंसानियत को सब्र और यक़ीन की तालीम देती है, जो ईमान को मज़बूत करती है।
Surah Fajr: सूरह फजर:
सूरह फज्र कुरान की 89वीं सूरह है। यह सूरह मक्की सूरह है, मतलब यह सूरह मक्का में नाज़िल हुई थी। यह सूरह 30 आयात पर मुकम्मल है। इस सूरह का नाम ही फज्र है। फज्र कहते हैं सुबह के वक्त को, जब सूरज तुलू होता है। इस सूरह में फज्र की कसम खाई है, और उन दस रातों की, और जुफ्त की, और ताक़ की, और रात की जब वह चल खड़ी हो (कि आखिरत में जज़ा व सज़ा ज़रूर होगी)। अल्लाह सुभानहु तआला ने कुछ चीज़ों की कसम खाई है ताकि हम उनकी तरफ मुतावज्जे हों और उनको अहमियत दें, जिसमें सबसे पहले फज्र है। फज्र से मुराद वो रोशनी है, जो तुलू-ए-सूरज से पहले मशरिकी उफ़क से नज़र आती है।
Surah Fajr Ki Fazilat: नमाज़ की फजीलत:
अल्लाह ने फज्र की कसम खाई है, जो रात का आखिरी हिस्सा है और दिन का आगाज़ है। रात के लुटने और दिन के आने में अल्लाह की कुदरत की निशानी है। फज्र उम्मीद की एक किरण होती है कि हमें एक नया दिन मिल गया है, हमें नेकी का एक और मौका मिल गया है, और अल्लाह ने हमें मजीद एक और मौका दिया है। फज्र के वक्त की अहमियत इस वजह से भी है कि बहुत से शरीयत के अहकामात का ताल्लुक इस वक्त से है, मसलन रोज़े का, खाने-पीने से रुक जाना, और इस वक्त एक अजमत व फज़ीलत वाली नमाज़ होती है। यह इस बात की मिसाल है कि इस वक्त की कसम खाई जाए और इसे अहमियत दी जाए। हमें फज्र के वक्त को बेहतरीन अमल से, इबादत से गुजारना चाहिए। इससे हमें यह सबक मिलता है कि हर दिन अल्लाह की इबादत से, अल्लाह के नाम से, अल्लाह को याद करके और शुक्र अदा करके गुजारें। जब भी नेकी का मौका मिले, उसे खुश-आमदीद कहें।
इस सूरह में 10 रातों की कसम खाई गई है। कुछ ने इसे रमज़ान की आखिरी 10 रातों से मुराद लिया है और कुछ ने इसे ज़िलहिज्जा से पहले की 10 रातों से मुराद लिया है। रमज़ान की आखिरी 10 रातें भी बहुत अहम हैं और ज़िलहिज्जा से पहले के 10 दिन भी। ‘लैल’ का लफ़्ज़ अरबी ज़बान में रात को कहते हैं। अरबी ज़बान में लैल का मतलब केवल रात नहीं बल्कि रात और दिन दोनों के लिए होता है। यह 10 दिन इसलिए अहम हैं क्योंकि अल्लाह सुभानहु तआला ने मूसा अलैहि सलाम के लिए इन्हें बढ़ाया था। इसमें रात की भी कसम खाई गई है, जो कि दिन के रुख्सत होने की निशानी है। हमें जो भी दिन मिले, जो भी रात मिले, हमें अल्लाह का शुक्र करना चाहिए और अपनी फज्र की शुरुआत नेकियों से, इबादत से करनी चाहिए।
Read Also, Surah Kausar
Surah Fajr In Arabic: सूरज फजर इन अरबी:
بسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِي
(1) وَالْفَجْرِ
(2) وَلَيَالٍ عَشْرٍ
(3) وَالشَّفْعِ وَالْوَتْرِ
(4) وَاللَّيْلِ إِذَا يَسْرِ
(5) هَلْ فِي ذَلِكَ قَسَمٌ لِذِي حِجْرٍ
(6) أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍ
(7) إِرَمَ ذَاتِ الْعِمَادِ
(8) الَّتِي لَمْ يُخْلَقْ مِثْلُهَا فِي الْبِلَادِ
(9) وَثَمُودَ الَّذِينَ جَابُوا الصَّخْرَ بِالْوَادِ
(10) وَفِرْعَوْنَ ذِي الْأَوْتَادِ
(11) الَّذِينَ طَغَوْا فِي الْبِلَادِ
(12) فَأَكْثَرُوا فِيهَا الْفَسَادَ
(13) فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍ
(14) إِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِ
(15) فَأَمَّا الْإِنْسَانُ إِذَا مَا ابْتَلَاهُ رَبُّهُ فَأَكْرَمَهُ وَنَعَّمَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَكْرَمَنِ
(16) وَأَمَّا إِذَا مَا ابْتَلَاهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَهَانَنِ
(17) كَلَّا بَلْ لَا تُكْرِمُونَ الْيَتِيمَ
(18) وَلَا تَحَاضُّونَ عَلَى طَعَامِ الْمِسْكِينِ
(19) وَتَأْكُلُونَ التُّرَاثَ أَكْلًا لَمًّا
(20) وَتُحِبُّونَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّا
(21) كَلَّا إِذَا دُكَّتِ الْأَرْضُ دَكًّا دَكًّا
(22) وَجَاءَ رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفًّا صَفًّا
(23) وَجِيءَ يَوْمَئِذٍ بِجَهَنَّمَ يَوْمَئِذٍ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ وَأَنَّى لَهُ الذِّكْرَى
(24) يَقُولُ يَا لَيْتَنِي قَدَّمْتُ لِحَيَاتِي
(25) فَيَوْمَئِذٍ لَا يُعَذِّبُ عَذَابَهُ أَحَدٌ
(26) وَلَا يُوثِقُ وَثَاقَهُ أَحَدٌ
(27) يَا أَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَئِنَّةُ
(28) ارْجِعِي إِلَى رَبِّكِ رَاضِيَةً مَرْضِيَّةً
(29) فَادْخُلِي فِي عِبَادِي
(30) وَادْخُلِي جَنَّتِي
Read Also, Surah Juma
Surah Fajr English: सूरज फजर इन इंग्लिश:
(1) Wa’l-Fajr
(2) Wa Layalin ‘Ashr
(3) Wa Ash-Shaf’i wal-Watr
(4) Wal-Layli Iza Yasr
(5) Hal Fi Zalika Qasamun Lizii Hijr
(6) Alam Tara Kaifa Fa’ala Rabbuka Bi’ad
(7) Iram Zatil ‘Imad
(8) Allati Lam Yukhlaq Misluha Fil-Bilad
(9) Wa Samuda Allazina Jabu’s-Sakhra Bil-Wad
(10) Wa Fir’awna Zil-Awtad
(11) Allazina Taghaw Fil-Bilad
(12) Fa-Aksaru Fiha’l-Fasad
(13) Fa-Sabba ‘Alaihim Rabbuka Sawta ‘Azab
(14) Inna Rabbaka Labil-Mirsad
(15) Fa-Amma’l-Insanu Iza Ma Abtalahu Rabbuhu Fa-Akramahu Wa Na’amahu Fayaqulu Rabbi Akraman
(16) Wa Amma Iza Ma Abtalahu Faqadara ‘Alaihi Rizqahu Fayaqulu Rabbi Ahanan
(17) Kalla Bal La Tukrimuna’l-Yatim
(18) Wa La Tahadhdhuna ‘Ala Ta’ami’l-Miskin
(19) Wa Ta’kuluna’t-Turath Akla Lamma
(20) Wa Tuhibbuna’l-Mala Hubban Jamma
(21) Kalla Iza Dukkati’l-Ardu Dakkan Dakka
(22) Wa Jaa’a Rabbuka Wal-Malaku Saffan Saffa
(23) Wa Ji’a Yawmaizin Bi-Jahannam, Yawma’izin Yatazakkaru’l-Insanu Wa Anna Lahu’z-Zikra
(24) Yaqulu Ya Laitani Qaddamtu Li-Hayati
(25) Fa-Yawma’izin La Yu’azzibu ‘Azabahu Ahad
(26) Wa La Yuthiqa Wathaqahu Ahad
(27) Ya Ayyatuha’n-Nafsul Mutma’inna
(28) Irji’i Ila Rabbiki Radiyatan Mardiyya
(29) Fadkhuli Fi ‘Ibadi
(30) Wadkhuli Jannati
Read Also, Surah Ikhlas
Surah Fajr Hi Hindi: सूरह फजर इन हिंदी:
(1) वल-फज्र
(2) वलयालिन अश्र
(3) वश-शफि वल-वत्र
(4) वल-लैल इजा यस्र
(5) हल फी ज़ालिक क़सम लिज़ी हिज्र
(6) अलम तारा कैफ़ा फ़अला रब्बुका बिआद
(7) इरम ज़ातिल इमाद
(8) अल्लती लम युखलक मिसलहा फिल-बिलाद
(9) वसमूदल्लज़ीना जाबूस सख्रा बिल-वाद
(10) व फिरऔन ज़िल-औताद
(11) अल्लज़ीना तग़वू फिल-बिलाद
(12) फ़अकसरू फीहा अल-फसाद
(13) फ़सब्बा अलैहिम रब्बुका सौता अज़ाब
(14) इन्ना रब्बका लबिल-मिरसाद
(15) फ़अम्मल इंसानु इज़ा मा अब्तलाहु रब्बुहु फ़अकरमहु व नअमहु फ़यक़ूलु रब्बी अकरमन
(16) वअम्मा इज़ा मा अब्तलाहु फ़क़दरा अलैहि रिज्कहु फ़यक़ूलु रब्बी अहानन
(17) कल्ला बल ला तुकरिमूनल यतीम
(18) वला ताहज़्ज़ूना अला तआमिल मस्कीन
(19) व तअकुलूनल तुरास अकला लम्मा
(20) व तुहिब्बूनल माल हुब्बन जम्मा
(21) कल्ला इज़ा दुक्कतिल अरदु डक्का डक्का
(22) व जाअ रब्बुका वल मलकु सफ़्फ़न् सफ़्फ़ा
(23) व जीअ यौमइज़िन् बि जहन्नम, यौमइज़िन् यतज़क्क़रुल इंसानु व अन्ना लहुज़्ज़िकरा
(24) यक़ूलु या लैतानि क़द्दम्तु लि हयाती
(25) फ़यौमइज़िन् ला युअज्जिबु अज़ाबहु अहद
(26) व ला युथिक़ु वसाक़हु अहद
(27) या अय्यतुहन नफ्सुल मुत्मइनना
(28) इरजिई इला रब्बिकी रादियतम मरदिय्या
(29) फ़दख़ुली फी इबादी
(30) वदख़ुली जन्नती
Read Also, Surah Kafirun
Surah Al Fajr Translation: सूरह फजर तर्जुमा:
1.क़सम है फ़जर की,
2.और दस रातों की,
3.और जुफ्त की और ताक़ की,
4.और रात की जब वह चल खड़ी हो (कि आख़िरत में जज़ा व सज़ा ज़रूर होगी)
5.एक अ़क़्ल वाले (को यक़ीन दिलाने) के लिये ये क़समें काफ़ी हैं कि नहीं?
6.क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे परवर्दिगार ने अ़ाद (क़ौम) के साथ क्या सुलूक किया?
7.उस ऊँचे सुतूनों वाली क़ौम इरम के साथ
8.जिसके बराबर दुनिया के मुल्कों में कोई और क़ौम पैदा नहीं की गयी।
9.और समूद की उस क़ौम के साथ क्या किया? जिसने वादी में पत्थर की चट्टानों को तराश रखा था
10.और मेंखों (बड़ी कीलों) वाले फ़िरअ़ौन के साथ क्या किया?
11.ये वे लोग थे जिन्होंने दुनिया के मुल्कों में सरकशी इख़्तियार कर ली थी,
12.और उनमें बहुत फ़साद मचाया था,
13.आख़िरकार तुम्हारे रब ने उनपर अज़ाब का कोड़ा बरसा दिया।
14.हक़ीक़त ये है कि तुम्हारा रब घात लगाए हुए है
15.मगर इनसान का हाल ये है कि उसका रब जब उसको आज़माइश में डालता है और उसे इज़्ज़त और नेमत देता है तो वो कहता है कि मेरे रब ने मुझे इज़्ज़तदार बना दिया।
16.और जब वो उसको आज़माइश में डालता है और उसका रिज़्क़ उसपर तंग कर देता है तो वो कहता है कि मेरे रब ने मुझे ज़लील कर दिया।
17.हरगिज़ नहीं बल्कि तुम यतीम से इज़्ज़त का सुलूक नहीं करते
18.और मिसकीन को खाना खिलने पर एक-दूसरे को नहीं उकसाते
19.और मीरास का सारा माल समेटकर खा जाते हो
20.और माल की महब्बत में बुरी तरह गिरफ़्तार हो
21.हरगिज़ नहीं जब ज़मीन पै-दर-पै कूट-कूटकर रेगज़ार बना दी जाएगी,
22.और तुम्हारा रब जलवा-फ़रमा होगा इस हाल में कि फ़रिश्ते सफ़-दर-सफ़ खड़े होंगे,
23.और जहन्नम उस रोज़ सामने ले आई जाएगी, उस दिन इनसान को समझ आएगी और उस वक़्त उसके समझने का क्या हासिल?
24.वो कहेगा कि काश, मैंने अपनी इस ज़िन्दगी के लिये कुछ पेशगी सामान किया होता!
25.फिर उस दिन अल्लाह जो अज़ाब देगा वैसा अज़ाब देनेवाला कोई नहीं,
26.और अल्लाह जैसा बँधेगा वैसा बाँधनेवाला कोई नहीं।
27.(दूसरी तरफ़ इरशाद होगा) ऐ नफ़्से-मुत्मइन!
28.चल अपने रब की तरफ़ इस हाल में कि तू (अपने अंजामे-नेक से) ख़ुश (और अपने रब के नज़दीक़) पसंदीदा है।
29.शामिल हो जा मेरे (नेक) बन्दों में
30.और दाख़िल हो जा मेरी जन्नत में।
Kuch Aham Surahain Quran Se | ||
Surah Yaseen | Surah Mulk | Surah Baqarah Last 2 Ayat |
Surah Fatiha | Surah Falaq | Surah Al Nasrah |
Surah At-Takathur | Surah Tariq | Tabbat Yada Surah |
Namaz Se Juda Mazmoon Parhain. | ||
Namaz KaisePadhe | Namaz-E-Janaja | Shab E Barat Ki Namaz |
Taraweeh Namaz | Shab E Qadr Ki Namaz | Jumma Ki Namaz |
Watch Now
Watch Now
Watch Now
Surah Fajr Ki Kuch Aham Sawalat: सूरह फजर की कुछ अहम सवालात:
1. सूरह फज्र क्या है?
सूरह फज्र क़ुरआन की 89वीं सूरह है। यह मदानी सूरह है और इसमें 30 आयतें हैं। इसका नाम “फज्र” सुबह की पहली रोशनी के लिए है, जो इसकी थीम को दर्शाता है। यह सूरह अल्लाह की क़ुदरत और इंसानी ज़िंदगी के अहमियत पर रोशनी डालती है।
2. सूरह फज्र की फ़ज़ीलत क्या है?
सूरह फज्र की बहुत सी फ़ज़ीलतें हैं। इसका तिलावत करने से इंसान को सुकून मिलता है और अल्लाह की रहमत हासिल होती है। और इसके तिलावत से अल्लाह की तरफ से हिफाज़त और मदद मिलती है।
3. सूरह फज्र का तिलावत कब करना चाहिए?
सूरह फज्र का तिलावत फज्र की नमाज़ से पहले या बाद में करना बहुत फायदेमंद है। इसे सुबह की इबादत में शामिल करने से दिन की शुरुआत खुशनुमा होती है। यह सूरह रात को भी पढ़ी जा सकती है, जिससे इंसानी दिल को सुकून मिलता है।
4. सूरह फज्र का मकसद क्या है?
सूरह फज्र का मकसद अल्लाह की क़ुदरत, इंसान की ज़िंदगी की अहमियत और क़ियामत की हक़ीक़त को समझाना है। इसमें अल्लाह की अनायत और इंसान की ज़िंदगी के अहम पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है। यह सूरह हमें अपने अमल पर गौर करने की तलीक़ करती है।
5. क्या सूरह फज्र का तिलावत ज़िंदगी में असर डालता है?
हाँ, सूरह फज्र का तिलावत ज़िंदगी में बहुत असर डालता है। इसे पढ़ने से इंसान को सुकून, खुशहाली और अल्लाह की मदद मिलती है।
8. सूरह फज्र को याद करने का आसान तरीक़ा क्या है?
सूरह फज्र को याद करने का आसान तरीक़ा है कि इसे रोज़ाना तिलावत करें। हर दिन इसे दो या तीन बार पढ़ने से याद रहती है। इसका अमल करने से याद करना आसान हो जाता है, और अल्लाह की मदद से इसे ज़िंदा रखना भी मुमकिन है।
9. क्या सूरह फज्र का तिलावत दुआ का असर बढ़ाता है?
जी हाँ, सूरह फज्र का तिलावत दुआ का असर बढ़ाता है। जब इंसान इसे दिल से पढ़ता है, तो अल्लाह की तरफ से मदद और रहमत का नज़ाम बेहतर होता है। इसे दुआ के साथ मिलाकर पढ़ना, दुआओं को क़बूल करने में मददगार होता है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.