तहज्जुद एक अज़ीम इबादत है जो रात के आख़री हिस्सों में अदा की जाती है। ये एक ख़ास वक़्त होता है जब बंदा अल्लाह से अपनी दुआओं में गुफ़्तगू करता है, अपनी आरजू जाहीर करता है, और माफ़ी तलब करता है। तहज्जुद की नमाज़ और इसकी दुआ इंसान के दिल को सुकून और क़ुर्बत-ए-इलाही फराहम करती है। क़ुरआन और अहादीस में तहज्जुद की फ़ज़ीलत का ज़िक्र है, और ये वो वक़्त होता है जब अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को क़बूल फरमाता है। इस इबादत का सिलसिला आपके रब के क़रीब जाने का ज़रिया है।
Tahajjud ki Dua Ka Hadish : तहाजजुद की दुआ का हदिश
सही बुखारी हादिश नंबर 1120 से रिवाएत है की रसूलुल्लाह (सल्ल०) जब रात में तहज्जुद के लिये खड़े होते तो ये दुआ पढ़ते।
اللهم لك الحمد أنت قيم السموات والأرض ومن فيهن ولك الحمد ، لك ملك السموات والأرض ومن فيهن ، ولك الحمد أنت نور السموات والأرض ، ولك الحمد أنت الحق ، ووعدك الحق ، ولقاؤك حق ، وقولك حق ، والجنة حق ، والنار حق ، والنبيون حق ، ومحمد صلى الله عليه وسلم حق ، والساعة حق ، اللهم لك أسلمت ، وبك آمنت وعليك توكلت ، وإليك أنبت ، وبك خاصمت ، وإليك حاكمت ، فاغفر لي ما قدمت وما أخرت ، وما أسررت وما أعلنت ، أنت المقدم وأنت المؤخر ، لا إله إلا أنت ، لا إله غيرك
(तर्जमा) ऐ मेरे अल्लाह! हर तरह की तारीफ़ तेरे ही लिये ज़ेबा है तो आसमान और ज़मीन और उन मैं रहने वाली तमाम मख़लूक़ का सँभालने वाला है और हम्द तमाम की तमाम बस तेरे ही लिये मुनासिब है आसमान और ज़मीन और उन की तमाम मख़लूक़ात पर हुकूमत सिर्फ़ तेरे ही लिये है और तारीफ़ तेरे ही लिये है तो आसमान और ज़मीन का नूर है और तारीफ़ तेरे ही लिये ज़ेबा है तू सच्चा है तेरा वादा सच्चा तेरी मुलाक़ात सच्ची, तेरा फ़रमान सच्चा है, जन्नत सच है, दोज़ख़ सच है नबी सच्चे हैं। मुहम्मद (सल्ल०) सच्चे हैं और क़ियामत का होना सच है। ऐ मेरे अल्लाह! मैं तेरा ही फ़रमाँबरदार हूँ और तुझी पर ईमान रखता हूँ तुझी पर भरोसा है तेरी ही तरफ़ रुजू करता हूँ तेरे ही अता किये हुए दलीलों के ज़रिए बहस करता हूँ और तुझी को हकम बनाता हों। इसलिये जो ग़लतियाँ मुझसे पहले हुईं और जो बाद में होंगी उन सब की मग़फ़िरत फ़रमा। चाहे वो ज़ाहिर हुई हों या छिपकर। आगे करने वाला और पीछे रखने वाला तू ही है। माबूद सिर्फ़ तू ही है। या (ये कहा कि) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। अबू-सुफ़ियान ने बयान किया कि अब्दुल-करीम अबू-उमैया ने इस दुआ मैं ये ज़्यादती की है لا حول ولا قوة إلا بالله सुफ़ियान ने बयान किया कि सुलैमान-बिन-मुस्लिम ने ताऊस से ये हदीस सुनी थी उन्होंने अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) से और उन्होंने नबी करीम (सल्ल०) से।
Tahajjud Dua In Arabic: तहाजजुद की दुआ अरबी में
اَللّهُمَّ لَكَ الحَمدُ أَنتَ قَيِّمُ السَّمٰوَاتِ وَالأَرضِ وَمَن فِيهِنَّ وَلَكَ الحَمدُ، لَكَ مُلكُ السَّمٰوَاتِ وَالأَرضِ وَمَن فِيهِنَّ، وَلَكَ الحَمدُ أَنتَ نُورُ السَّمٰوَاتِ وَالأَرضِ، وَلَكَ الحَمدُ أَنتَ الحَقُّ، وَوَعدُكَ الحَقُّ، وَلِقَاؤُكَ حَقٌّ، وَقَولُكَ حَقٌّ، وَالجَنَّةُ حَقٌّ، وَالنَّارُ حَقٌّ، وَالنَّبِيُّونَ حَقٌّ، وَمُحَمَّدٌ صَلَّى اللهُ عَلَيهِ وَسَلَّمَ حَقٌّ، وَالسَّاعَةُ حَقٌّ، اَللّهُمَّ لَكَ أَسلَمتُ، وَبِكَ آمَنتُ وَعَلَيكَ تَوَكَّلتُ، وَإِلَيكَ أَنَبتُ، وَبِكَ خَاصَمتُ، وَإِلَيكَ حَاكَمتُ، فَاغفِر لِي مَا قَدَّمتُ وَمَا أَخَّرتُ، وَمَا أَسرَرتُ وَمَا أَعلَنتُ، أَنتَ المُقَدِّمُ وَأَنتَ المُؤَخِّرُ، لَا إِلٰهَ إِلَّا أَنتَ، لَا إِلٰهَ غَيرُكَ
Tahajjud Ki Dua In Hindi: तहाजजुद की दुआ हिन्दी में
अल्लाहुम्मा लका अल-हम्दु अंता क़य्यमुस-समावाति वल-अरदि व मन फिहिन्ना व लका अल-हम्दु, लका मुल्कुस-समावाति वल-अरदि व मन फिहिन्ना, व लका अल-हम्दु अंता नूरुस-समावाति वल-अरद, व लका अल-हम्दु अंता अल-हक़्क़, व वअदुकल-हक़्क़, व लिक़ाऊका हक़्क़, व कौलक हक़्क़, वल-जन्नतु हक़्क़, वन-नारु हक़्क़, वन-नबीय्यून हक़्क़, व मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हक़्क़, वस-सा’अतु हक़्क़, अल्लाहुम्मा लका असलमतु, व बिका आमंतु व अलैका तवक्कलतु, व इलैका अन्बतु, व बिका खासमतु, व इलैका हाकमतु, फग़्फ़िर ली मा क़द्दमतु व मा अख़्खरतु, व मा असरतु व मा अअलन्तु, अंता अल-मुक़द्दिमु व अंता अल-मुअख़्खिरु, ला इलााहा इल्ला अंता, ला इलाaha ग़ैरुका।
Tahajjud Ki Dua ka Tarjuma: तहाजजुद की दुआ का तर्जुमा
ऐ मेरे अल्लाह! हर तरह की तारीफ़ तेरे ही लिये ज़ेबा है तो आसमान और ज़मीन और उन मैं रहने वाली तमाम मख़लूक़ का सँभालने वाला है और हम्द तमाम की तमाम बस तेरे ही लिये मुनासिब है आसमान और ज़मीन और उन की तमाम मख़लूक़ात पर हुकूमत सिर्फ़ तेरे ही लिये है और तारीफ़ तेरे ही लिये है तो आसमान और ज़मीन का नूर है और तारीफ़ तेरे ही लिये ज़ेबा है तू सच्चा है तेरा वादा सच्चा तेरी मुलाक़ात सच्ची, तेरा फ़रमान सच्चा है, जन्नत सच है, दोज़ख़ सच है नबी सच्चे हैं। मुहम्मद (सल्ल०) सच्चे हैं और क़ियामत का होना सच है। ऐ मेरे अल्लाह! मैं तेरा ही फ़रमाँबरदार हूँ और तुझी पर ईमान रखता हूँ तुझी पर भरोसा है तेरी ही तरफ़ रुजू करता हूँ तेरे ही अता किये हुए दलीलों के ज़रिए बहस करता हूँ और तुझी को हकम बनाता हों। इसलिये जो ग़लतियाँ मुझसे पहले हुईं और जो बाद में होंगी उन सब की मग़फ़िरत फ़रमा। चाहे वो ज़ाहिर हुई हों या छिपकर। आगे करने वाला और पीछे रखने वाला तू ही है। माबूद सिर्फ़ तू ही है।
Tahajjud Me Padhne Ki Dua: तहाजजुद में पढ़ने की दुआ
हज़रत आएशा रजीअल्ला ताला अन्हा फरमाती है की रसूल अल्लाह सल्लेलाहु आलेही वासल्लम जब रात को तहाजजुद के लिए उठते तो ये पढ़ते
- 10 बार अल्लाहुआकबर
- 10 बार अलहुमदुलिल्लाह
- 10 बार सुभानअल्लाही वाबी हमदीहि
- 10 बार शुभान अल-मलीकूलकुद्दूस
- 10 बार अस्तगफ़िरुल्लाह
- 10 बार ला इलाहा ईलल्लाह
10 बार अल्लाहुम्मा आऊजुबिका मीन डिकि- दुनिया वादीकी यौमलकीयामा
तर्जुमा: में तेरी पनाह में आता हूँ दुनिया की तंगी से और कयामत के दिन की तंगी से।
और फिर फरमाते अल्लाहुम्मग फिरली वाहदिनी वारजुकनी वा-अफ़ीनी , फिर वुजू करते और तहाजजुद सुरू करते ।
Dua After Tahajjud Namaz : तहाजजुद की नमाज़ के बाद की दुआ
तहाजजुद नमाज़ के बाद अप ऊपर दिए गए दुआ पढ़ सकते है , और भी दुआएं कर सकते है जो कुरान और हादिश से साबित हो एसी तरह अगर आप अपने कोई खास दुआ करना चाहे अल्लाह से अपना दिल की बात करना चाहे तो अल्लाह की हमदों सना करें अल्लाह के सामने गिरगिराएं और अल्लाह से दुआ करें। तहाजजुद में किए जाने वाले दुआ कबूल होती की क्यूंकी अल्लाह ताला को सबसे बेहतरीन इबादत जो पसंद है वो तहाजजुद की है।
Conclusion:
तहज्जुद की दुआ एक नायाब और रूहानी इबादत है जो इंसान को अपने रब के करीब लाती है। रात के इस खास वक़्त में अल्लाह अपने बंदों की दुआएं क़ुबूल करता है और उनकी जरूरतों को पूरा करता है। ये वो वक़्त होता है जब एक इंसान अपने अल्लाह से अपने दिल की बात कर सकता है, अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांग सकता है, और अपनी दुआओं में सुकून पा सकता है। तहज्जुद की नमाज़ और दुआएं दिल को सुकून और रूहानी ताकत फराहम करती हैं। ये इबादत अल्लाह तआला के करीब जाने का सबसे खूबसूरत जरिया है।
Tahajjud Ki Dua Ke Bare Mein Aham Sawalat: तहाजजुद की दुआ के बारे में अहम सवालत
1. तहज्जुद की नमाज़ कब और कैसे पढ़ी जाती है?
तहज्जुद की नमाज रात के आखिरी हिस्सो में, फज्र से पहले पढ़ी जाती है। ये नमाज़ नफ्ल है और आप इस में दो-दो रकअत पढ़ सकते हैं। तहज्जुद के वक्त उठ कर वुज़ू करें और अल्लाह से अपनी दुआ और मग़फिरत मांगे।
2. तहज्जुद का वक्त कब शुरू होता है?
तहज्जुद का वक्त ईशा की नमाज के बाद शुरू होता है और फज्र की अज़ान तक रहता है। मगर वक्त अल्लाह की इबादत करने से पहले, आपको सही वक्त का पता करना जरूरी है।
3. तहज्जुद की दुआ क्या है?
तहज्जुद की दुआ वो दुआ है जो आप इस नमाज के दौरान मांगते हैं। ये अल्लाह से मगफिरत और हिदायत की दुआ होती है। आप अपने दिल की बातें अल्लाह से कर सकते हैं, ये वक्त बहुत खास होता है।
4. तहज्जुद की फजीलत क्या है?
तहज्जुद की नमाज़ बहुत सी फ़ज़ीलत है। ये अल्लाह के नज़दीक जाने का ज़रिया है और इससे आपकी दुआ क़ुबूल होती है।
5. क्या तहज्जुद की दुआ मांगना सुन्नत है?
हां, तहज्जुद की दुआ मांगना सुन्नत है। रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने इसकी हिफ़ाज़त की और इस से हमेशा इबादत करने की हिदायत दी।
6. तहज्जुद की नमाज के लिए क्या नियत करनी चाहिए?
तहज्जुद की नमाज के लिए नियत दिल से करनी चाहिए। चाहे तो आप जुबान से बोल सकते हैं की,”मैं अल्लाह की ख़ुशी के लिए तहज्जुद की नमाज़ पढ़ रहा हूँ।” नियत से इबादत में ख़ुशियाँ और खुजू आती हैं।
7. क्या तहज्जुद की नमाज़ सब पर फ़र्ज़ है?
तहज्जुद की नमाज फ़र्ज़ नहीं, बलके नफ्ल है। हर एक मुसलमान चाहे तो पढ़ सकते है , लेकिन जो भी इस नमाज को पढ़ता है, उसे अल्लाह की तरफ से बहुत सवाब मिलता है।
8. तहज्जुद की नमाज़ कितनी रकात होनी चाहिए?
तहज्जुद की नमाज़ दो दो रकअत करके अदा की जाती है। आप जितनी चाहे उतनी रकत तक पढ़ सकते हैं। लेकिन, क्योंकि ये नफिल इबादत हैं।
9. तहज्जुद की दुआ कहाँ से सीख सकते हैं?
ऊपर दी गई है चाहे तो आप वहां से देख सकते है और आप तहज्जुद की दुआ कुरान और हदीस से सीख सकते हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन संसाधन और इस्लामिक किताबें भी आपकी मदद दे सकती हैं, यह दुआ को समझने और सीखने में बहुत फजीलत है।
10. क्या तहज्जुद पढ़ने से पहले वुज़ू करना ज़रूरी है?
हां, तहज्जुद की नमाज पढ़ने से पहले वुजू करना जरूरी है। सिर्फ तहज्जुद नहीं बल्के हर नमाज़ से पहले वूजू करना जरूरी होती है। वुज़ू से आपकी इबादत की तहारत होती है और अल्लाह की इबादत करने के लिए तय्यारी होती है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.