Surah Yaseen

Surah Yaseen in Hindi | सूरह यासीन शरीफ़ तर्जुमा, फ़ज़ीलत और फ़ायदे

Surah Yaseen Shareef in Hindi में पढ़ें, इसकी अहमियत, फायदे और मतलब को जानें। इसे ‘क़ल्ब अल-क़ुरान’ कहा जाता है और इसमें 83 आयतें हैं। इसकी तिलावत के फज़ायल और बरकतों का जायज़ा लें!

सूरह यासीन कुरान मजीद की सबसे अहम सूरहों में से एक है, जिसे “कुरान का दिल” कहा गया है। यह मक्की सूरह है, जिसमें 5 रुकू और 83 आयतें हैं। हदीस के मुताबिक, जो शख्स सूरह यासीन की तिलावत करता है, उसे 10 मर्तबा पूरा कुरान पढ़ने का सवाब मिलता है और उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।

📖 सूरह यासीन की रोज़ाना तिलावत से:
रिज़्क में बरकत होती है।
गुनाहों की माफी मिलती है।
बीमारियों से शिफा मिलती है।
मुश्किलात दूर होती हैं और अल्लाह की रहमत मिलती है।

मरने वालों के पास इसे पढ़ने की हिदायत दी गई है, ताकि उनकी रुह को सुकून मिले। इस सूरह की तिलावत हर परेशानी के हल के लिए बहुत असरदार है। इसलिए हमें इसे रोज़ाना पढ़ने का अहद करना चाहिए!

Surah Yaseen Ki Fazilat: सुरह यासीन की फजीलत

  • बहकी की रिवयत में आता है इस सूरत को अपने मरने वालों के पास पराह करो। मरने वालों के पास पढ़ने की इसलिए हिदाएत फरमाई की मरने वाले पर तमाम इस्लामी अकाएद ताजा हो जाए।
  • मुसनते दारमि से रिवाएत है ,नबी सल्लेलाहू वसल्लम ने फरमाया जिसने सुबह सूरह यासीन की तिलवात की उसके सारे काम पूरे हो जाएंगे। ( ये हादिश जाईफ है सनत के हिसाब से ) पर इस अमल को करने में कोई हर्ज नही है।
  • सूरह यासीन पढ़ने से रोजी में बरकत और नजात मिलती है।
  • सूरह यासीन को पढ़कर मरहूम के लिए दुआ कर सकते है उसकी मगफिरत के लिए , ये एक बेहतरीन अमल है।
  • सूरह यासीन की रोजाना तिलवत करने से इंसान की रूहानी और जिस्मानी बीमारिओं से सिफ़ा मिलती है।
  • सूरह यासीन को पढ़कर अपनी गुनाओं की माफी मांगने से अल्लाह की मगफिरत भी मिल सकती है।
  • सुरह यासीन की तिलावत करने से सैतान मरदूद से निजात मिलती है।
  • सुराह यासीन का  रोजाना पढ़ने से बरकत , हिफाजत, ईलाही मदद रूहानी सुकून, गुनाहों की माफी, कयामत के दिन शीफात, हिफाजत और बढ़हाए जाने वाले अजर को लाता हैं।

Surah Yaseen Hindi, Arabic aur Tafseer Hindi Mein

Surah Yaseen Hindi Mein Padhein Aur Tarjuma Samjhein।  सूरह यासीन हिंदी में पढ़ें और तर्जुमा समझें

يٰسٓ (1)

यासीन

यासीन

 

وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ (2)

वल कुर आनिल हकीम

कसम है हिकमतवाले कुरआन की।

 

إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ (3)

इन्नका लमिनल मुरसलीन

की तुम यकीनन रसूलों में से हो।

 

عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ (4)

अला सिरातिम मुस्तकीम

सीधे रास्ते पर हो।

 

تَنزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ (5)

तनजीलल अजीज़िर रहीम

(और ये कुरआन ) गालिब और रहम करनेवाली हस्ती का उतारा हुआ है।

 

لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أُنذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ (6)

लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून

ताकि तुम खबरदार करो एक एसी कौम को जिसके बाप -दादा खबरदार न किए गए थे और इस वजह से वो गफलत में पड़े हुआ है।

 

لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَىٰ أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (7)

लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून

इनमें से अक्सर लोग अजाब के फैसले के हकदार हो चुके हैं , इसी लिए वो ईमान नही लाते।

 

إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُم مُّقْمَحُونَ (8)

इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून

हमने उनकी गर्दनों में तौक (पट्टे ) दाल दिए है , जिनसे वो ठुड्डियों तक जकढ़े गए हैं , इसलिए वो सर उठाए खरें हैं।

 

وَجَعَلْنَا مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ (9)

व जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून

हमने एक दीवार उनके आगे खरीं कर दी है और एक दीवार उनके पीछे। हमने उन्हें ढाँक दिया है , उन्हे अब कुछ नहीँ सूझता।

 

وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (10)

वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून

उनके लिए बराबर है , तुम उन्हें खबरदार करो या न करो , ये न मानेंगे।

 

اِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَ خَشِیَ الرَّحْمٰنَ بِالْغَیْبِۚفَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَّ اَجْرٍ كَرِیْمٍ (11)

इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम

तुम तो उसी शख्स को खबरदार कर सकते हो जो नसीहत की पैरवी  करे और बेदेखे रहमान खुद से डरे। उसे माफी और बाइज्जत बदले की खुशखबरी दे दो।

 

اِنَّا نَحْنُ نُحْیِ الْمَوْتٰى وَ نَكْتُبُ مَا قَدَّمُوْا وَ اٰثَارَهُمْۣؕوَ كُلَّ شَیْءٍ اَحْصَیْنٰهُ فِیْۤ اِمَامٍ مُّبِیْنٍ (12)

इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन

हम एकीनंन  एक दिन मुरदों को जिन्दा करने वाले हैं। जो कुछ काम उनोहने , किए है वो सब हम लिखते जा रहे है , और जो कुछ नीसान उनोहने पीछे चोर है, वो भी हम लिख रहे है। (9) हर चीज को हमने एक खुली किताब में लिख रखा है।

 

وَجَعَلْنَا مِنْۢ بَیْنِ اَیْدِیْهِمْ سَدًّا وَّمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَاَغْشَیْنٰهُمْ فَهُمْ لَا یُبْصِرُوْنَ (13)

वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसळून

(और ये पेगम्बर ) तुम उनके सामने एक  बस्ती वालों की मिसाल पेस करो जब उनके पास रसूल आए थे।

 

و َسَوَآءٌ عَلَیْهِمْ ءَاَنْذَرْتَهُمْ اَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا یُؤْمِنُوْنَ (14)

इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसळून

जब हमने उनके( पास सुरू में ) दो रसूल भेजे तो उन्होंने दोनों को झुकला दिया , फिर हमने यक तीसरे के जरिए उनकी ताइद  की और उन सब ने कहा येकिन जनों हमे तुम्हारे पास रसूल बनाके भेजा गया  है।

 

قَالُوا مَا أَنتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا وَمَا أَنزَلَ الرَّحْمَٰنُ مِن شَيْءٍ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ (15)

कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसळूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन

उन्होंने कहा तुम्हारी हकीकत इसके सिवा कुछ भी नहीँ की तुम हम जैसे ही आदमी हो। और खुदा -ये-रहमान ने कोई चीज नाजिल नहीँ की है , और तुम सरासर झुट बोल रहे हो।

 

قَالُوْا رَبُّنَا یَعْلَمُ اِنَّاۤ اِلَیْكُمْ لَمُرْسَلُوْنَ (16)

क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसळून

(उन रसूलों ) ने कहा – हमारा परवरदिगार खूब जानता है की हमे वाकेही तुम्हारे पास रसूल बनाकर भेजा  गया है।

 

وَمَا عَلَیْنَاۤ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِیْنُ (17)

वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन

और तुम्हारी जिम्मेदारी इससे ज्यादा नही है की साफ साफ पैगाम पहुंचा दें।

 

قَالُوْۤا اِنَّا تَطَیَّرْنَا بِكُمْۚ لَىٕنْ لَّمْ تَنْتَهُوْا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَیَمَسَّنَّكُمْ مِّنَّا عَذَابٌ اَلِیْمٌ (18)

कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम

बस्ती वालों ने कहा हमने तो तुम्हारे अंदर नहूसत महसूस की है। एकिन जनों अगर तुम बाजं ना आए तो हम तुम पर पत्थर बरशाएंगे और हमरे हाथों तुम्ह बढ़ी दर्दनाक सजा मीलिगी।

 

قَالُوْا طَآىٕرُكُمْ مَّعَكُمْؕ اَىٕنْ ذُكِّرْتُمْە بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُوْنَ (19)

कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून

रसूलों ने कहा – तुम्हारी नहूसत खुद तुम्हे साथ लगी हुई है। (7) क्या ये बाते इसलिए कर रहे हो की तुम्हें नसीहत की बात पहुंचाई गई है ? असल बात यह है की तुम खुद हद से गुजरे  हुए लोग हो।

 

وَجَآءَ مِنْ اَقْصَا الْمَدِیْنَةِ رَجُلٌ یَّسْعٰى قَالَ یٰقَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِیْنَ (20)

व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन

रसूलों ने कहा- तुम्हारी नहूसत ख़ुद तुम्हारे साथ लगी हुई है। (7) क्या ये बातें इसलिये कर रहे हो कि तुम्हें नसीहत की बात पहुँचाई गई है? असल बात यह है कि तुम ख़ुद हद से गुज़रे हुए लोग हो।

 

اتَّبِعُوْا مَنْ لَّا یَسْــٴَـلُكُمْ اَجْرًا وَّ هُمْ مُّهْتَدُوْنَ (21)

अत तबिऊ मल ला यस अलुकुम अजरौ वहुम मुहतदून

उन लोगों का कहना मान लो जो तुमसे कोई उजरत नहीं माँग रहे, और वे सही रास्ते पर हैं।

 

وَ مَا لِیَ لَاۤ اَعْبُدُ الَّذِیْ فَطَرَنِیْ وَ اِلَیْهِ تُرْجَعُوْنَ (22)

वमालिया ला अअ’बुदुल लज़ी फतरनी व इलैहि तुरजऊन

और भला मैं उस ज़ात की इबादत क्यों न करूँ जिसने मुझे पैदा किया है? और उसी की तरफ़ तुम सबको वापस भेजा जायेगा।

 

ءَاَتَّخِذُ مِنْ دُوْنِهٖۤ اٰلِهَةً اِنْ یُّرِدْنِ الرَّحْمٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّیْ شَفَاعَتُهُمْ شَیْــٴًـا وَّ لَا یُنْقِذُوْنِ (23)

अ अत्तखिज़ु मिन दुनिही आलिहतन इय युरिदनिर रहमानु बिजुर रिल ला तुगनि अन्नी शफ़ा अतुहुम शय अव वला यूनकिजून

भला क्या उसे छोड़कर मैं ऐसों को माबूद मानूँ कि अगर ख़ुदा-ए-रहमान मुझे कोई नुक़सान पहुँचाने का इरादा कर ले तो उनकी सिफ़ारिश मेरे किसी काम न आये, और न वे मुझे छुड़ा सकें?

 

اِنِّیْۤ اِذًا لَّفِیْ ضَلٰلٍ مُّبِیْنٍ (24)

इन्नी इज़ल लफी ज़लालिम मुबीन

अगर मैं ऐसा करूँगा तो यक़ीनन मैं खुली गुमराही में मुब्तला हो जाऊँगा।

 

اِنِّیْۤ اٰمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُوْنِ (25)

इन्नी आमन्तु बिरब्बीकुम फसमऊन

मैं तो तुम्हारे परवर्दिगार पर ईमान ला चुका। अब तुम भी मेरी बात सुन लो।

 

قِیْلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَؕقَالَ یٰلَیْتَ قَوْمِیْ یَعْلَمُوْنَ (26)

कीलद खुलिल जन्नह काल यालैत क़ौमिय यअ’लमून

(आख़िरकार बस्ती वालों ने उसको क़त्ल कर दिया, (9) और अल्लाह तआला की तरफ़ से उससे) कहा गया कि जन्नत में दाख़िल हो जाओ। (10) उसने (जन्नत की नेमतें देखकर) कहा- काश! मेरी क़ौम को मालूम हो जाये।

 

بِمَا غَفَرَ لِیْ رَبِّیْ وَ جَعَلَنِیْ مِنَ الْمُكْرَمِیْنَ (27)

बिमा गफरली रब्बी व जाआलनी मिनल मुकरमीन

कि अल्लाह ने किस तरह मेरी बख़्शिश की है, और मुझे इज़्ज़त वाले लोगों में शामिल किया है!

 

وَ مَاۤ اَنْزَلْنَا عَلٰى قَوْمِهٖ مِنْۢ بَعْدِهٖ مِنْ جُنْدٍ مِّنَ السَّمَآءِ وَ مَا كُنَّا مُنْزِلِیْنَ (28)

वमा अन्ज़लना अला क़ौमिही मिम बअ’दिही मिन जुन्दिम मिनस समाइ वमा कुन्ना मुनजलीन

और उस शख़्स के बाद हमने उसकी क़ौम पर आसमान से कोई लश्कर नहीं उतारा, और न हमें उतारने की ज़रूरत थी। (11)

 

اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ خٰمِدُوْنَ (29)

इन कानत इल्ला सईहतन वाहिदतन फा इज़ा हुम् खामिदून

वह तो बस एक ही चिंघाड़ थी जिससे वे एक दम बुझकर रह गये।

 

یٰحَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِۣۚمَا یَاْتِیْهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ یَسْتَهْزِءُوْنَ (30)

या हसरतन अलल इबाद मा यअ’तीहिम मिर रसूलिन इल्ला कानू बिही यस तहज़िउन

अफ़सोस है ऐसे बन्दों के हाल पर ! उनके पास कोई रसूल ऐसा नहीं आया जिसका वे मज़ाक़ न उड़ाते रहे हों।

 

اَلَمْ یَرَوْا كَمْ اَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِّنَ الْقُرُوْنِ اَنَّهُمْ اِلَیْهِمْ لَا یَرْجِعُوْنَ (31)

अलम यरौ कम अहलकना क़ब्लहुम मिनल कुरूनि अन्नहुम इलैहिम ला यर जिउन

क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले हम कितनी क़ौमों को इस तरह हलाक कर चुके हैं कि वे उनके पास लौटकर नहीं आते?

 

وَ اِنْ كُلٌّ لَّمَّا جَمِیْعٌ لَّدَیْنَا مُحْضَرُوْنَ (32)

वइन कुल्लुल लम्मा जमीउल लदैना मुह्ज़रून

और ये जितने लोग हैं इन सभी को इकट्ठा करके हमारे सामने हाज़िर किया जायेगा।

 

وَ اٰیَةٌ لَّهُمُ الْاَرْضُ الْمَیْتَةُ ۚۖ-اَحْیَیْنٰهَا وَ اَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ یَاْكُلُوْنَ (33)

व आयातुल लहुमूल अरज़ुल मईतह अह ययनाहा व अखरजना मिन्हा हब्बन फमिनहु यअ कुलून

और उनके लिये एक निशानी वह ज़मीन है जो मुर्दा पड़ी हुई थी। हमने उसे ज़िन्दगी अता की और उससे ग़ल्ला निकाला, जिसकी खुराक ये खाते हैं।

 

وَ جَعَلْنَا فِیْهَا جَنّٰتٍ مِّنْ نَّخِیْلٍ وَّ اَعْنَابٍ وَّ فَجَّرْنَا فِیْهَا مِنَ الْعُیُوْنِ (34)

व जअलना फीहा जन्नातिम मिन नखीलिव व अअ’नाबिव व फज्जरना फीहा मिनल उयून

और हमने उस ज़मीन में खजूरों और अंगूरों के बाग़ पैदा किये, और ऐसा इन्तिज़ाम किया कि उसमें से पानी के चश्मे फूट निकले

 

لِیَاْكُلُوْا مِنْ ثَمَرِهٖۙ-وَ مَا عَمِلَتْهُ اَیْدِیْهِمْؕ-اَفَلَا یَشْكُرُوْنَ (35)

लियाकुलु मिन समरिही वमा अमिलत हु अयदीहिम अफला यशकुरून

ताकि ये उसकी पैदावार में से खायें, हालाँकि उसको इनके हाथों ने नहीं बनाया था। (12) क्या फिर भी ये शुक्र अदा नहीं करेंगे?

 

سُبْحٰنَ الَّذِیْ خَلَقَ الْاَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْۢبِتُ الْاَرْضُ وَ مِنْ اَنْفُسِهِمْ وَ مِمَّا لَا یَعْلَمُوْنَ (36)

सुब्हानल लज़ी ख़लक़ल अज़वाज कुल्लहा मिम मा तुमबितुल अरज़ू वमिन अनफुसिहिम वमिम मा ला यअलमून

पाक है वह ज़ात जिसने हर चीज़ के जोड़े-जोड़े पैदा किये हैं, उस पैदावार के भी जो ज़मीन उगाती है, और ख़ुद उन इनसानों के भी और उन चीज़ों के भी जिन्हें ये लोग (अभी) जानते तक नहीं हैं। (13)

 

وَ اٰیَةٌ لَّهُمُ الَّیْلُ ۚۖ-نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَاِذَا هُمْ مُّظْلِمُوْنَ (37)

व आया आपतुल लहुमूल लैल नसलखु मिन्हुन नहारा फइज़ा हुम् मुजलिमून

और उनके लिये एक और निशानी रात है। हम उस पर से दिन का छिलका उतार लेते हैं तो वे यकायक अंधेरे में रह जाते हैं। (14)

 

وَ الشَّمْسُ تَجْرِیْ لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَاؕ-ذٰلِكَ تَقْدِیْرُ الْعَزِیْزِ الْعَلِیْم (38)

वश शमसु तजरि लिमुस्त कररिल लहा ज़ालिका तक़्दी रूल अज़ीज़िल अलीम

और सूरज अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है। यह सब उस ज़ात का मुक़र्रर किया निज़ाम (सिस्टम) है जिसका इक्तिदार (ताक़त और इख़्तियार) भी कामिल है, जिसका इल्म भी कामिल है।

 

وَ الْقَمَرَ قَدَّرْنٰهُ مَنَازِلَ حَتّٰى عَادَ كَالْعُرْجُوْنِ الْقَدِیْمِ (39)

वल कमर कद्दरनाहु मनाज़िला हत्ता आद कल उरजुनिल क़दीम

और चाँद है कि हमने उसकी मन्ज़िलें नाप-तौलकर मुक़र्रर कर दी हैं, यहाँ तक कि वह जब (उन मन्ज़िलों के दौरे से) लौटकर आता है तो खजूर की पुरानी टहनी की तरह (पतला) होकर रह जाता है। (15)

 

لَا الشَّمْسُ یَنْۢبَغِیْ لَهَاۤ اَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَ لَا الَّیْلُ سَابِقُ النَّهَارِؕ-وَ كُلٌّ فِیْ فَلَكٍ یَّسْبَحُوْنَ (40)

लश शम्सु यमबगी लहा अन तुद रिकल कमरा वलल लैलु साबिकुन नहार वकुल्लुन फी फलकिय यसबहून

न तो सूरज की यह मजाल है कि वह चाँद को जा पकड़े, (16) और न रात दिन से आगे निकल सकती है। और ये सब अपने-अपने मदार (गर्दिश की जगह) में तैर रहे हैं।

 

وَ اٰیَةٌ لَّهُمْ اَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّیَّتَهُمْ فِی الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِ (41)

व आयतुल लहुम अन्ना हमलना ज़ुररिय यतहूम फिल फुल्किल मशहून

और उनके लिये एक और निशानी यह है कि हमने उनकी औलाद को भरी हुई कश्ती में सवार किया (17)

 

وَ خَلَقْنَا لَهُمْ مِّنْ مِّثْلِهٖ مَا یَرْكَبُوْنَ (42)

व खलकना लहुम मिम मिस्लिही मा यरकबून

और हमने उनके लिये उसी जैसी और चीजें भी पैदा की जिन पर ये सवारी करते हैं। (18)

 

وَ اِنْ نَّشَاْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِیْخَ لَهُمْ وَ لَا هُمْ یُنْقَذُوْنَ (43)

व इन नशअ नुगरिक हुम फला सरीखा लहुम वाला हुम युन्क़जून

और अगर हम चाहें तो इन्हें ग़र्क़ कर डालें, जिसके बाद न तो कोई इनकी फ़रियाद को पहुँचे और न इनकी जान बचाई जा सके।

 

اِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَ مَتَاعًا اِلٰى حِیْنٍ (44)

इल्ला रहमतम मिन्ना व मताअन इलाहीन

लेकिन यह सब हमारी तरफ़ से एक रहमत है, और एक निर्धारित वक़्त तक (ज़िन्दगी का) मज़ा उठाने का मौक़ा है (जो इन्हें दिया जा रहा है)।

 

وَ اِذَا قِیْلَ لَهُمُ اتَّقُوْا مَا بَیْنَ اَیْدِیْكُمْ وَ مَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ (45)

व इजा कीला लहुमुत तकू मा बैना ऐदीकुम वमा खल्फकुम लअल्लाकुम तुरहामून

और जब उनसे कहा जाता है कि बचो उस (अज़ाब) से जो तुम्हारे सामने है, और जो तुम्हारे (मरने के) बाद आयेगा, ताकि तुम पर रहम किया जाये। (तो वह ज़रा कान नहीं धरते)

 

وَ مَا تَاْتِیْهِمْ مِّنْ اٰیَةٍ مِّنْ اٰیٰتِ رَبِّهِمْ اِلَّا كَانُوْا عَنْهَا مُعْرِضِیْنَ (46)

वमा तअ’तीहिम मिन आयतिम मिन आयाति रब्बिहिम इल्ला कानू अन्हा मुअ रिजीन

और उनके परवर्दिगार की निशानियों में से कोई निशानी ऐसी नहीं आती जिससे वे मुँह न मोड़ लेते हों।

 

وَ اِذَا قِیْلَ لَهُمْ اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُۙ-قَالَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنُطْعِمُ مَنْ لَّوْ یَشَآءُ اللّٰهُ اَطْعَمَهٗۤ ﳓ اِنْ اَنْتُمْ اِلَّا فِیْ ضَلٰلٍ مُّبِیْنٍ (47)

व इज़ा कीला लहुम अन्फिकू मिम्मा रजका कुमुल लाहु क़ालल लज़ीना कफरू लिल लज़ीना आमनू अनुत इमू मल लौ यशाऊल लाहू अत अमह इन अन्तुम इल्ला फ़ी ज़लालिम मुबीन

और जब इनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम्हें जो रिज़्क़ दिया है उसमें से (ग़रीबों पर भी) ख़र्च करो, तो ये काफ़िर लोग मुसलमानों से कहते हैं कि क्या हम उन लोगों को खाना खिलायें जिन्हें अगर अल्लाह चाहता तो ख़ुद खिला देता? (मुसलमानो!) तुम्हारी हक़ीक़त इसके सिवा कुछ भी नहीं कि तुम खुली गुमराही में पड़े हुए हो।

 

وَ یَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ (48)

व यकूलूना मता हाज़ल व’अदू इन कुनतुम सादिक़ीन

और कहते है की यह (कियामत का )वायदा कब पूरा होगा ? ( मुसलमानों !)बताओ, अगर तुम सच्चे हो।

 

مَا یَنْظُرُوْنَ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً تَاْخُذُهُمْ وَ هُمْ یَخِصِّمُوْنَ (49)

मा यन ज़ुरूना इल्ला सैहतव व़ाहिदतन तअ खुज़ुहुम वहुम यखिस सिमून

(दरअसल) ये लोग बस एक चिंघाड़ का इतंजार कर रहे है जो इनकी हुज्जत बाज़ी के ऐन बीच में इन्हें  आ पकड़ेगी,

 

فَلَا یَسْتَطِیْعُوْنَ تَوْصِیَةً وَّ لَاۤ اِلٰۤى اَهْلِهِمْ یَرْجِعُوْنَ (50)

फला यस्ता तीऊना तौ सियतव वला इला अहलिहिम यरजिऊन

फिर न ये कोई वसीयत कर सकेंगे और न अपने घर वालो के पास लौट कर जा सकेंगे

 

وَ نُفِخَ فِی الصُّوْرِ فَاِذَا هُمْ مِّنَ الْاَجْدَاثِ اِلٰى رَبِّهِمْ یَنْسِلُوْنَ (51)

व नुफ़िखा फिस सूरि फ़इज़ा हुम मिनल अज्दासि इला रब्बिहिम यन्सिलून

और सूर फूका जाएगा तो यकायक ये अपनी कब्रो से निकलकर अपने परवरदिगार की तरफ तेजी से रवाना हो जाएंगे

 

قَالُوْا یٰوَیْلَنَا مَنْۢ بَعَثَنَا مِنْ مَّرْقَدِنَاﱃ هٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمٰنُ وَ صَدَقَ الْمُرْسَلُوْنَ (52)

कालू या वय्लना मम ब असना मिम मरक़दिना हाज़ा मा व अदर रहमानु व सदकल मुरसलून

कहेंगे कि हाय हमारी कमबख़्ती ! हमें किसने हमारे मर्क़द (यानी क़ब्र) से उठा खड़ा किया है? (जवाब मिलेगा कि) यह वही चीज़ है जिसका ख़ुदा-ए-रहमान ने वायदा किया था, और पैग़म्बरों ने सच्ची बात कही थी।

 

اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَیْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ جَمِیْعٌ لَّدَیْنَا مُحْضَرُوْنَ (53)

इन कानत इल्ला सयहतव वहिदतन फ़ इज़ा हुम जमीउल लदैना मुहज़रून

और कुछ नहीं बस एक ज़ोर की आवाज़ होगी, जिसके बाद ये सब के सब हमारे सामने हाज़िर कर दिये जायेंगे।

 

فَالْیَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَیْــٴًـا وَّ لَا تُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ (54)

फल यौम ला तुज्लमु नफसुन शय अव वला तुज्ज़व्ना इल्ला मा कुन्तुम तअ’मलून

चुनाँचे उस दिन किसी शख़्स पर कोई जुल्म नहीं होगा, और तुम्हें किसी और चीज़ का नहीं बल्कि उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुम किया करते थे।

 

اِنَّ اَصْحٰبَ الْجَنَّةِ الْیَوْمَ فِیْ شُغُلٍ فٰكِهُوْنَ (55)

इन्न अस हाबल जन्नातील यौमा फ़ी शुगुलिन फाकिहून

जन्नत वाले लोग उस दिन यक़ीनन अपने मशाले में मगन होंगे

 

هُمْ وَ اَزْوَاجُهُمْ فِیْ ظِلٰلٍ عَلَى الْاَرَآىٕكِ مُتَّكِــٴُـوْنَ (56)

हुम व अज्वा जुहूम फ़ी ज़िलालिन अलल अराइकि मुत्तकिऊन

वे और उनकी बीवियाँ घने सायों में आरामदेह बैठने की जगहों पर टेक लगाये हुए होंगे

 

لَهُمْ فِیْهَا فَاكِهَةٌ وَّ لَهُمْ مَّا یَدَّعُوْن (57)

लहुम फ़ीहा फ़ाकिहतुव वलहुम मा यद् दऊन

वहाँ उनके लिये मेवे होंगे, और उन्हें हर वह चीज़ मिलेगी जो वे मंगवायेंगे।

 

سَلٰمٌ قَوْلًا مِّنْ رَّبٍّ رَّحِیْمٍ (58)

सलामुन क़ौलम मिर रब्बिर रहीम

रहमत वाले परवर्दिगार की तरफ़ से उन्हें सलाम कहा जायेगा।

 

وَ امْتَازُوا الْیَوْمَ اَیُّهَا الْمُجْرِمُوْنَ (59)

वम ताज़ुल यौमा अय्युहल मुजरिमून

(और काफ़िरों से कहा जायेगा कि) ऐ मुजरिमो ! आज तुम (मोमिनों से) अलग हो जाओ।

 

اَلَمْ اَعْهَدْ اِلَیْكُمْ یٰبَنِیْۤ اٰدَمَ اَنْ لَّا تَعْبُدُوا الشَّیْطٰنَۚ-اِنَّهٗ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِیْنٌ (60)

अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन

ऐ आदम के बेटो! क्या मैंने तुम्हें यह ताकीद नहीं कर दी थी कि तुम शैतान की इबादत न करना, वह तुम्हारा खुला दुश्मन है,

 

وَ اَنِ اعْبُدُوْنِیْﳳ-هٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِیْمٌ (61)

व अनिअ बुदूनी हज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम 

और यह कि तुम मेरी इबादत करना। यही सीधा रास्ता है।

 

وَ لَقَدْ اَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِیْرًاؕ-اَفَلَمْ تَكُوْنُوْا تَعْقِلُوْنَ (62)

व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून

और हक़ीक़त यह है कि शैतान ने तुम में से एक बड़ी ख़ल्क़त (यानी मख़्लूक़ की एक बहुत बड़ी संख्या) को गुमराह कर डाला! तो क्या तुम समझते नहीं थे?

 

هٰذِهٖ جَهَنَّمُ الَّتِیْ كُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ (63)

हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून

यह है वह जहन्नम जिससे तुम्हें डराया जाता था।

 

اِصْلَوْهَا الْیَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ (64)

इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून

आज इसमें दाख़िल हो जाओ, क्योंकि तुम कुफ़ किया करते थे।

 

اَلْیَوْمَ نَخْتِمُ عَلٰۤى اَفْوَاهِهِمْ وَ تُكَلِّمُنَاۤ اَیْدِیْهِمْ وَ تَشْهَدُ اَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ (65)

अल यौमा नखतिमु अल अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून

आज के दिन हम उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे, और उनके हाथ हमसे बात करेंगे, और उनके पाँव गवाही देंगे कि वे क्या कमाई किया करते थे। (19)

 

وَ لَوْ نَشَآءُ لَطَمَسْنَا عَلٰۤى اَعْیُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَاَنّٰى یُبْصِرُوْنَ (66)

व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून

और अगर हम चाहें तो (यहीं दुनिया में) इनकी आँखें मलियामेट कर दें, फिर ये रास्ते (की तलाश) में भागे फिरें, लेकिन इन्हें कहाँ कुछ सुझाई देगा?

 

وَ لَوْ نَشَآءُ لَمَسَخْنٰهُمْ عَلٰى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوْا مُضِیًّا وَّ لَا یَرْجِعُوْنَ (67)

व लौ नशाउ लमसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन

और अगर हम चाहें तो इनकी अपनी जगह पर बैठे-बैठे इनकी सूरतें इस तरह मस्ख़ कर (यानी बिगाड़) दें कि ये न आगे बढ़ सकें और न पीछे लौट सकें।

 

وَ مَنْ نُّعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِی الْخَلْقِؕ-اَفَلَا یَعْقِلُوْنَ (68)

वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून

और हम जिस शख़्स को लम्बी उम्र देते हैं उसे तख़्लीक़ी (पैदाईश के) एतिबार से उलट ही देते हैं। (20) क्या फिर भी उन्हें अक़्ल नहीं आती?

 

وَ مَا عَلَّمْنٰهُ الشِّعْرَ وَ مَا یَنْۢبَغِیْ لَهٗؕ-اِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ وَّ قُرْاٰنٌ مُّبِیْنٌ (69)

वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन

और हमने (अपने) इन (पैग़म्बर) को न शायरी सिखाई है, और न वह उनकी शान के लायक़ है। (21) यह तो बस एक नसीहत की बात है, और ऐसा कुरआन जो हक़ीक़त को खोल-खोलकर बयान करता है

 

لِّیُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَیًّا وَّ یَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكٰفِرِیْنَ (70)

लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन

ताकि हर उस शख़्स को ख़बरदार करे जो ज़िन्दा हो, (22) और ताकि कुफ़ करने वालों पर हुज्जत (दलील) पूरी हो जाये।

 

اَوَ لَمْ یَرَوْا اَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِّمَّا عَمِلَتْ اَیْدِیْنَاۤ اَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مٰلِكُوْنَ (71)

अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून

और क्या उन्होंने यह नहीं देखा कि हमने अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से उनके लिये मवेशी (जानवर) पैदा किये, और ये उनके मालिक बने हुए हैं?

 

وَ ذَلَّلْنٰهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوْبُهُمْ وَ مِنْهَا یَاْكُلُوْنَ (72)

व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून

और हमने उन मवेशियों को इनके क़ाबू में दे दिया है, चुनाँचे उनमें से कुछ वो हैं जो इनकी सवारी बने हुए हैं और कुछ वो हैं जिन्हें ये खाते हैं।

 

وَ لَهُمْ فِیْهَا مَنَافِعُ وَ مَشَارِبُؕ-اَفَلَا یَشْكُرُوْنَ (73)

व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून

और इनको उन मवेशियों से और भी फ़ायदे और लाभ हासिल होते हैं, और पीने की चीजें मिलती हैं। क्या फिर भी ये शुक्र अदा नहीं करेंगे?

 

وَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اٰلِهَةً لَّعَلَّهُمْ یُنْصَرُوْنَ (74)

वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून

और इन्होंने अल्लाह को छोड़कर इस उम्मीद पर दूसरे ख़ुदा बना रखे हैं कि इन्हें (उनसे) मदद मिले

 

لَا یَسْتَطِیْعُوْنَ نَصْرَهُمْۙ-وَ هُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُّحْضَرُوْنَ (75)

ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून

(हालाँकि) उनमें यह ताक़त ही नहीं है कि इनकी मदद कर सकें, बल्कि वे इनके लिये एक ऐसा (मुखालिफ़) लश्कर बनेंगे जिसे (क़ियामत में इनके सामने) हाज़िर कर लिया जायेगा। (23)

 

فَلَا یَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْۘ-اِنَّا نَعْلَمُ مَا یُسِرُّوْنَ وَ مَا یُعْلِنُوْنَ (76)

फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून

ग़र्ज़ कि (ऐ पैग़म्बर!) इनकी बातें तुम्हें रंजीदा (परेशान और दुखी) न करें। यक़ीन जानो हमें सब मालूम है कि ये क्या कुछ छुपाते और क्या कुछ ज़ाहिर करते हैं।

 

اَوَ لَمْ یَرَ الْاِنْسَانُ اَنَّا خَلَقْنٰهُ مِنْ نُّطْفَةٍ فَاِذَا هُوَ خَصِیْمٌ مُّبِیْنٌ (77)

अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खासीमुम मुबीन

और क्या इनसान ने यह नहीं देखा कि हमने उसे नुत्फ़े (वीर्य की बूँद) से पैदा किया था? फिर अचानक वह खुल्लम-खुल्ला झगड़ा करने वाला बन गया।

 

وَ ضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَّ نَسِیَ خَلْقَهٗؕ-قَالَ مَنْ یُّحْیِ الْعِظَامَ وَ هِیَ رَمِیْمٌ (78)

व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम

हमारे बारे में तो वह बातें बनाता है और खुद अपनी पैदाईश को भुला बैठा है। कहता है कि उन हड्डियों को कौन ज़िन्दगी देगा जबकि वे गल चुकी होंगी?

 

قُلْ یُحْیِیْهَا الَّذِیْۤ اَنْشَاَهَاۤ اَوَّلَ مَرَّةٍؕ-وَ هُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِیْمُ (79)

कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम

कह दो कि उनको वही ज़िन्दगी देगा जिसने उन्हें पहली बार पैदा किया था, और वह पैदा करने का हर काम जानता है।

 

الَّذِیْ جَعَلَ لَكُمْ مِّنَ الشَّجَرِ الْاَخْضَرِ نَارًا فَاِذَاۤ اَنْتُمْ مِّنْهُ تُوْقِدُوْنَ (80)

अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून

वही है जिसने तुम्हारे लिये सरसब्ज़ (हरे-भरे) पेड़ से आग पैदा कर दी है, (24) फिर तुम ज़रा सी देर में उससे सुलगाने का काम ले लेते हो।

 

اَوَ لَیْسَ الَّذِیْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضَ بِقٰدِرٍ عَلٰۤى اَنْ یَّخْلُقَ مِثْلَهُمْﳳ-بَلٰىۗ-وَ هُوَ الْخَلّٰقُ الْعَلِیْمُ (81)

अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला ययख्लुक़ा मिस्लहुम बला वहुवल खल्लाकुल अलीम

भला जिस ज़ात ने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया है, क्या वह इस बात पर क़ादिर नहीं है कि इन जैसों को (दोबारा) पैदा कर सके ? क्यों नहीं! जबकि वह सब कुछ पैदा करने की पूरी महारत रखता है।

 

اِنَّمَاۤ اَمْرُهٗۤ اِذَاۤ اَرَادَ شَیْــٴًـا اَنْ یَّقُوْلَ لَهٗ كُنْ فَیَكُوْنُ (82)

इन्नमा अमरुहू इज़ा अरादा शय अन अय यकूला लहू कुन फयकून

उसका मामला तो यह है कि जब वह किसी चीज़ का इरादा कर ले तो सिर्फ़ इतना कहता है कि हो जा बस वह हो जाती है।

 

فَسُبْحٰنَ الَّذِیْ بِیَدِهٖ مَلَكُوْتُ كُلِّ شَیْءٍ وَّ اِلَیْهِ تُرْجَعُوْنَ (83)

फसुब हानल लज़ी बियदिही मलकूतु कुल्ली शय इव व इलैहि तुरजा उन

ग़र्ज़ कि पाक है वह ज़ात जिसके हाथ में हर चीज़ की हुकूमत है, और उसी की तरफ़ तुम सब को आख़िरकार ले जाया जायेगा।

 

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Surah Yaseen Ke Bare Mein Aham Sawaalat: सूरह यासीन के बारे में अहम सवालात

1. सूरह यासीन का मतलब क्या है?

सूरह यासीन कुरान की एक सुरा है जिसका मतलब सिर्फ अल्लाह ताला जनता है।

2. सूरह यासीन क्यों खास है?

सुरा यासीन को कुरान का दिल भी कहते बहुत से हदीथ में मिलता है की सुरा यासीन पढ़ने की बहुत फजीलत है।

3. सूरह या-सिन के फ़ायदे क्या हैं?

  • सुरा यासीन पढ़ने से गुनाहों की माफी होती है और तौबा कुबूल होती है।
  • सुरा यासीन तिलावत से बीमार को शिफा मिलती है।
  • इसको पढ़ने से रोजगार और रिज्क में बरकत होती है।

4. सूरह यासीन क़ुरान में कैसी ढूंढी जाती है?

सुरह यासीन कुरान के 22 पारा मैं आता हैं और ये सुराह नंबर 36 है जो की कुरान के पेज के उप्पर लिखी हुई होती हैं वहा से देखके ढूंढ सकते हैं।

5. सूरह यासीन को सोने से पहले पढ़ने के क्या फायदे हैं?

सही हदीश के मुताबिक कोई फजीलत बयान नहीं की गई है लेकिन इसे पढ़ने से कोई हर्ज नहीं हैं,ये एक अच्छा अमल है।

6. कौन सी सूरह चेहरे पर ख़ूबसूरती देती है?

इस्लाम में कोई भी सुरा खास खूबसूरती के लियेन्ही पढ़ा जाता खूबसूरती के लिए नमाज वजू कुरान की तिलावत झूठ बुराई गीबत करने से बचे तलवा।

7. कौनसी सी सुरह पढ़ने से मन्नत पूरी होती हैं?

कुरान में ऐसे कोई जिक्र नहीं की कोई खास सुरा पढ़ने से मन्नत कुबूल होती है मुसलमान को चाहिए की नमाज और सुन्नत पे चले और अल्लाह ताला से कभी न उम्मीद न हो तकवा पर कायम रहे
गुनाह से बचे मन्नत अगर आपके हक में बेहतर है तो जरूर कुबूल होगी अगर नही हो रही है तो अल्लाह ताला आपको उससे बेहतर देगा।

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10 Comments

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