Dua-e-Masura

Dua-e-Masura in Hindi, English, and Arabic with Hindi Tarjuma

 

Dua-e-Masura: दुआ ए मसूरा:

दुआ मासुरा एक छोटी सी लेकिन बेहद मक़बूल और अफ़ज़ल दुआ है, जो नमाज़ में तसहूद में दरूद इब्राहीम के बाद पढ़ी जाती है। इस दुआ में अल्लाह से मदद, माफ़ी, और हिदायत की दर्ख्वास्त की जाती है। ये दुआ हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) से मंसूब है, और इसकी फज़ीलत बहुत ज़्यादा है। दुआ मासुरा को रोज़ाना अपनी नमाज़ के बाद पढ़ने से इंसान के दिल में सुकून, बरकत, और अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है। इस दुआ में मुख्तलिफ़ मक़सद के लिए अल्लाह से दुआ की जाती है, जो हर मुसलमान के लिए बेहद मुफ़ीद है।

Dua-e-Masura in Arabic: दुआ ए मसूरा इन अरबी:

Dua-e-Masura in Arabic , Hindi

اَللّٰهُمَّ اِنِّيْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ ظُلْمًا كَثِيرًا وَلَا يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اَنْتَ فَاغْفِرْ لِيْ مَغْفِرَةً مِّنْ عِنْدِكَ وَارْحَمْنِيْ اِنَّكَ اَنْتَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُ

Dua-e-Masura in Hindi: दुआ-ए-मसूरा: हिंदी:

अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी जुल्मन कसीरन व-ला यग़फिरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अंता फग़फिर ली मग़फिरतं मिन इंदिका वार-हमनी इन्नका अन्तल-ग़फूरुर्रहीम

Dua-e-Masura Tarjuma Hindi: दुआ-ए-मसुरा तर्जुमा हिंदी:

Dua-e-Masura Tarjuma Hindi

ऐ अल्लाह! बेशक मैंने अपनी जान पर बहुत ज़्यादा ज़ुल्म किया और तेरे सिवा कोई गुनाहों को माफ़ नहीं कर सकता, तो अपनी ख़ास बख़्शिश से मुझे माफ़ फ़रमा दे और मुझ पर रहम फ़रमा, यक़ीनन तू बहुत बख़्शने वाला, बेहद मेहरबान है।

Dua-e-Masura in English: दुआ-ए-मसुरा अंग्रेजी में:

Dua-e-Masura in English

Allahumma inni zalamtu nafsi zulman kasiran wa la yaghfiru dh-dhunuba illa anta faghfir li maghfiratan min indika warhamni innaka antal-ghafurur-rahim.

Dua-e-Masura in Namaz: नमाज़ में दुआ-ए-मसुरा:

दुआ ए मसूरा बहुत बेहतरीन दुआ है और ये दुआ सुन्नत से साबित है। दुआ ए मसूरा नमाज़ में तसाहूद में पढ़ना चाहिए, अत्ताहीयत के बाद दरूद ए इब्राहीम पढ़के फिर दुआ ए मसूरा पढ़ना चाहिए।

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Dua-e-Masura Ke Baare Mein Hadith: दुआ-ए-मसूरा के बारे में हदीस:

सही बुखारी हदीस नंबर 6326 से रिवायत है कि: उन्होंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से कहा कि मुझे ऐसी दुआ सिखा दीजिए जिसे मैं अपनी नमाज़ में पढ़ा करूँ। नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि ये कहा कर:

اللهم إني ظلمت نفسي ظلما كثيرا، ولا يغفر الذنوب إلا أنت، فاغفر لي مغفرة من عندك، وارحمني، إنك أنت الغفور الرحيم

ऐ अल्लाह! मैंने अपनी जान पर बहुत ज़ुल्म किया है और गुनाहों को तेरे सिवा कोई माफ नहीं करता, इसलिए मेरी माफ़िरत कर, ऐसी माफ़िरत जो तेरे पास से हो और मुझ पर रहम कर, बेशक तू बड़ा माफ़ करने वाला, बड़ा रहम करने वाला है।” और अम्र-बिन-हारिस ने भी इस हदीस को यज़ीद से, उन्होंने अबुल-खैर से, उन्होंने अब्दुल्लाह-बिन-अम्र (रज़ि०) से सुना कि अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि०) ने नबी करीम (सल्ल०) से कहा आख़िर तक।

दुआ ए मासूरा एक छोटी सी लेकिन बेहद मक़बूल और अफ़ज़ल दुआ है, जो हर मुसलमान के लिए बहुत ही फायदेमंद है। यह दुआ नमाज़ में तसहूद के बाद दरूद-ए-इब्राहीम के तुरंत बाद पढ़ी जाती है। इस दुआ में इंसान अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी और मदद की दर्ख्वास्त करता है। हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) से यह दुआ मंसूब है, और इसकी फज़ीलत बहुत ज़्यादा है। इस दुआ को रोज़ाना अपनी नमाज़ के बाद पढ़ने से दिल को सुकून, बरकत, और अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है। यह दुआ हर मुसलमान को अपने गुनाहों से माफ़ी हासिल करने का ज़रिया देती है। इसमें अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ की जाती है, और यह माना जाता है कि अल्लाह ही सबसे ज़्यादा बख्शने वाला और मेहरबान है। दुआ ए मासूरा को अपनी नमाज़ का हिस्सा बनाने से इंसान की रूहानी तरक्की होती है और यह दुनिया और आख़िरत के लिए बेहद मुफीद है।

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Dua-e-Masura Ke Baare Mein Kuch Aham Sawalat Aur Unke Jawab: दुआ-ए-मसूरा के बारे में कुछ अहम सवाल और उनके जवाब:

1. दुआ ए मसूरा का अर्थ क्या है?

अल्लाह से माफ़ी हासिल करने की दुआ है।

2. नमाज़ में दरूद शरीफ के बाद क्या पढ़ना चाहिए?

नमाज़ के बाद दरूद शरीफ के बाद दुआ ए मसूरा पढ़नी चाहिए।

3. क्या तसहूद में दरूद अनिवार्य है?

नमाज़ में दरूद पढ़ना बहुत अहम है, बिना दरूद-ए-इब्राहीम पढ़े नमाज़ नहीं होती।

4. क्या हम पीरियड्स के दौरान दरूद पढ़ सकते हैं?

बिल्कुल पढ़ सकते हैं, लेकिन नमाज़ नहीं पढ़ सकते।

5. फर्ज नमाज़ के बाद क्या पढ़ना चाहिए?

फर्ज नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी की तिलावत करनी चाहिए।

6. क्या मैं बिना नमाज़ के दुआ कर सकता हूं?

बिल्कुल दुआ कर सकते हैं, हमें चाहिए कि हर वक्त अल्लाह का ज़िक्र करें और अल्लाह से दुआ करें।

7. क्या मैं कभी भी दुआ कर सकती हूं?

दुआ कभी भी की जा सकती है, सोते, उठते, बैठते कभी भी कर सकते हैं।

8. क्या मैं नमाज़ को छोड़ सकता हूं?

नमाज़ किसी भी हाल में माफ नहीं है। अगर कोई शख्स बीमार हो या कोई दिक्कत के वजह से नहीं पढ़ पाया, तो उसे क़ज़ा नमाज़ पढ़नी चाहिए। और लड़कियों के लिए नमाज़ माफ है जब वो हिज में होती हैं।

9. क्या मैं वुज़ू के बिना नमाज़ कर सकती हूं?

बिना वुज़ू के नमाज़ नहीं होती। लिहाज़ा, वुज़ू करने के बाद नमाज़ पढ़ें।

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