Shab-e-Qadr Ki Namaz Ka Tarika, Fazilat aur Wazifa – Roman Hindi aur English Mein

शब-ए-क़द्र की रात इस्लाम में बेहतरीन और अफ़ज़ल रात है। इस रात में अल्लाह का रहमत और मगफिरत का दरिया बहक रहा है। मुसलमान इस रात में इबादत, दुआ और शब-ए-कद्र की नमाज अदा कर अपने गुनाह माफ करवाने की कोशिश करते हैं। शब-ए-क़द्र की नमाज़ का सवाब हज़ारों रातों की इबादत से ज़्यादा होता है, इसके लिए इस रात को ख़ास अह्मियत दी जाती है।

Shab E Qadr Ki Namaz: शबे कद्र की नमाज़

शबे क़द्र, जिसे लैलतुल क़द्र भी कहा

जाता है, इस्लामी तारीख़ की एक अज़ीम-ओ-शान रात है। यह रात रमज़ान के आख़िरी अशरे की तक़रीबन किसी भी ताक रात में होती है, और इसकी इबादत को हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर क़रार दिया गया है। शबे क़द्र की नमाज़, अल्लाह की रहमत और मग़फिरत हासिल करने का एक अज़ीम ज़रिया है। इस रात में, मुसलमान अल्लाह से माफ़ी और हिदायत की दुआ करते हैं, क़ुरआन की तिलावत करते हैं, और रात भर इबादत में मशग़ूल रहते हैं। यह रात अल्लाह की क़ुरबत और बरकत हासिल करने का मौक़ा होती है।

Shab E Qadr Ki Namaz Ka Tarika: शबे कद्र की नमाज़ का तरीका

शबे कद्र की नमाज़ का तरीका आम हैं। जैसे हम आम नमाज़ यानि नफील अदा करते है उसी तरीके पर अदा किया जाएगा । शबे कद्र मैं नफील नमाजों की कसरत करनी चाहिए जितना इस्तेतात रखते हैं उतना नफिल नमाज़ अदा करे और ये नमाज़ आम नफील की तरह 2, 2 रकात करके अदा की जायेगी
इसी तरह बहुत से बिद्दत इन रातों में एकिए जाते है मसलन पहली रकात में ये सूरह दूसरी रकात मैं दूसरा सूरह पढ़नी चाहिए, जमाते बनाकर मस्जिद में जाकर इबादत करनी चाहिए तो ये हरगिज नहीं करनी चाहिए अगर चे के घरमे पढ़ने मैं दिक्कत पेस आ रही है तो मस्जिद में जाकर पढ़ सकते है लेकिन घरमें नफील नमाज़ पढ़ने का सवाब ज्यादा है ।

Shab E Qadr Ki Namaz Ka Fazilat: शबे कद्र की नमाज़ की फजीलत

रसूल अल्लाह सल्लेलाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने लैलतुल कद्र में ईमान और शवाब के नियत के साथ कयाम उसके तमाम गुजिस्ता गुनाह माफ कर दिए जाएंगे ।
आखरी रातों की बेहतरीन इबादत तबिल नमाज़ है, लंबा कयाम है। अगर जो सक्स नमाज़ न पढ़ पाए तो बैठके तस्बीह दुआ बगैरा पढ़े, इस रात को जाया न करे ये बहुत अहम रात है। लेकिन इस रात में सबसे बेहतरीन अमल है नफील नमाज़ अदा करना।
हजरत अबूजर रजी अल्लाहु अन्हु कहते है, रसूल अल्लाह सल्लेलाहु वसल्लम ने फरमाया जिसने इमाम के वापिस होने तक इमाम के साथ कयाम किया यानि बाजमात तरावी अदा की उसके लिए सारी रात कयाम का सवाब लिखा जाएगा इसे तिरमिजी ने रिवायत किया है।

Shab E Qadr Ki Dua : शबे कद्र की दुआ

सूनन इब्ने माजा हदीश नम्बर 3850 से रिवायत है की उम्मुल-मोमिनीन हज़रत आयशा (रज़ि०) से रिवायत है, उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! अगर मैं शबे-क़द्र पा लूँ तो किया दुआ माँगूँ? आप ने फ़रमाया : इस तरह कहना : (اللّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عنِّي)ऐ अल्लाह ! तो बहुत ज़्यादा माफ़ करने वाला है तो माफ़ करना, पसन्द करता है। इसलिये मुझे माफ़ फ़रमा दे।

اللّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عنِّي
अल्लाहुम्मा इन्नाका आफूवुन तुहिब्बुल अफ़वा फाफू- अन्नी
तर्जुमा: ये अल्लाह तू बक्शने वाला है, और तू बक्सने को पसंद करता है , तो मुझे भी माफ करदे

Shab E Qadr Mein Karne Wale Behtarin Amal: शबे कद्र में करने वाले बेहतरीन अमल

इस रात में सबसे बेहतरीन अमल है कसरत से कयाम करना यानि नाबाफिल अदा करना जितने चाहे उतना अदा कर सकते है।
कुराने पाक की तिलावत फरमाना भी बेहतरीन अमल है ।
और कसरत से दुआ करना अल्लाह से अपनी मगफिरत की दुआ करना क्योंकि अल्लाह शुबानु ताला इस दिन की दुआ कबूल फरमाता है।
जो कोई इस रात की इबादत नहीं कर सकता मसलन औरते जो हैज से हो, या वो सक्स जो बीमार हो तो वो नमाज़ न पढ़ पाए तो कसरत से असकार, तसबीह पढ़े आप सल्लेलाहु वसल्लम पर दरूद भेजे। इस रात को ऐसे ही जाया न करे।

Conclusion:

बे कद्र एक अज़ीम-ओ-शान रात है जो रमज़ान के आख़िरी अशरे की किसी भी ताक रात में होती है। इस रात की इबादत हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर क़रार दी गई है। शबे कद्र में नमाज़, कुरआन की तिलावत और दुआ की कसरत की जाती है। यह रात अल्लाह की मग़फिरत और रहमत हासिल करने का ज़रिया है। इस रात में ज़्यादा से ज़्यादा नफिल नमाज़ों और इबादत में मशग़ूल रहना चाहिए, और अल्लाह से मग़फिरत की दुआ करनी चाहिए।

Shab E Qadr Ke Bare Mein Aham Sawalat: शबे कद्र के बारे में अहम सवालात

1. शब-ए-क़द्र क्या है?
शब-ए-क़द्र क़ुरान में ज़िक्र की गई एक बहुत फ़ज़ीलत वाली रात है। यह रात रमज़ान के आखिरी अशरे में आती है और इस रात में इबादत करने का सवाब हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा होता है। मुसलमान इस रात को ढूंढने के लिए रमज़ान के आखिरी 10 दिनों में जागकर इबादत करते हैं।

2. शब-ए-क़द्र की अहमियत क्या है?
शब-ए-क़द्र की अहमियत इसलिए ज़्यादा है क्योंकि इस रात को क़ुरान नाज़िल हुआ। यह रात इबादत, दुआओं और अल्लाह से माफी मांगने का बहुत ही अफ़ज़ल वक्त है। इस रात में फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और हर इबादत को क़बूलियत का दर्जा मिलता है।

3. शब-ए-क़द्र की निशानियाँ क्या हैं?
शब-ए-क़द्र की निशानियों में एक ख़ामोशी वाली रात होती है जिसमें हवा में हल्की ठंडक और तसकीन होती है। न तो बहुत ज़्यादा गर्मी होती है न ठंड, और सुबह तक आसमान में सूरज का उगना ग़ैर-मामूली होता है, जिसमें रोशनी कम होती है।

4. शब-ए-क़द्र किस रात को होती है?
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आखिरी 10 दिनों में किसी भी ताक रात (21, 23, 25, 27, 29) को हो सकती है। मगर अक्सर उलेमा का कहना है कि 27वीं रात को शब-ए-क़द्र का ज़्यादा इमकान है।

5. शब-ए-क़द्र की इबादत कैसे की जाती है?
शब-ए-क़द्र में इबादत के लिए नफिल नमाज़, तस्बीहात, तिलावत-ए-क़ुरान, दुआएं और तौबा का अमल किया जाता है। मुसलमान इस रात को अपनी ग़लतियों की माफी मांगते हैं और ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह की याद में वक्त गुज़ारते हैं।

6. शब-ए-क़द्र की फ़ज़ीलत क़ुरान में कहाँ है?
शब-ए-क़द्र का ज़िक्र सूरह अल-क़द्र में आया है। इस सूरह में कहा गया है कि इस रात का सवाब हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा है। यह रात खैर और बरकत वाली है और अल्लाह के फ़रिश्ते ज़मीन पर रहमत लेकर आते हैं।

7. क्या शब-ए-क़द्र हर साल एक ही रात को होती है?
शब-ए-क़द्र की बिल्कुल तारीख़ हर साल बदल सकती है, लेकिन यह हमेशा रमज़ान के आखिरी अशरे की ताक रातों में होती है। इस वजह से मुसलमान पूरे आखिरी 10 दिन इबादत में गुज़ारते हैं ताकि शब-ए-क़द्र को पा सकें।

8. शब-ए-क़द्र के अमल क्या हैं?
शब-ए-क़द्र के अमल में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करना शामिल है। नफिल नमाज़, तिलावत-ए-क़ुरान, तस्बीहात, और तौबा के साथ, लोग अल्लाह से अपनी और अपने घरवालों के लिए हिदायत और बरकत मांगते हैं।

9. शब-ए-क़द्र में दुआ कैसे मांगी जाए?
शब-ए-क़द्र में दुआ मांगने का तरीक़ा यह है कि अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगी जाए, अपने और दूसरों के लिए बरकत और हिदायत के लिए दुआ की जाए। दुआएं दिल से और तवज्जो के साथ मांगी जाती हैं ताकि अल्लाह से क़रीबी रिश्ता बनाया जा सके।

10. शब-ए-क़द्र को कैसे ढूंढा जाए?
शब-ए-क़द्र को ढूंढने के लिए रमज़ान के आखिरी अशरे की ताक रातों में ज़्यादा इबादत करनी चाहिए। 21, 23, 25, 27, और 29वीं रात को जागकर तिलावत, दुआ और नमाज़ों में वक्त गुज़ारना चाहिए ताकि इस रात का सवाब हासिल हो।

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