Surah Mulk in Hindi
Surah Mulk: Allah ki shakti aur qudrat ka adbhut varnan. Is adhyay mein atma ko sukoon aur margdarshan milta hai.

Surah Mulk In Hindi।सूरह मुल्क हिंदी में।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Surah Mulk in Hindi

Surah Mulk।सूरह मुल्क।

सूरह मुल्क कुरान की 67वीं सूरह है जो 30 आयत पर मुश्तमिल है।यह सूरह अल्लाह की कुदरत और हुकूमत को बयान करती है और इंसान को याद दिलाती है के जिंदगी और मौत का मालिक सिर्फ अल्लाह है।इस सूरह को रोजाना रात को पढ़ने से क़बर के अज़ाब से हिफाज़त होती है।नबी (स.अ.व) ने फ़रमाया के सूरह मुल्क क़बर के अज़ाब से बचाती है और यह क़यामत के दिन इंसान के लिए शफ़ाअत करेगी।इस सूरह का पढ़ना गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया है और अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत हासिल करने का बेहतरीन तरीका है।

Surah Mulk Fazilat।सूरह मुल्क फजीलत।

  • सूरह मुल्क हर ईशा नमाज़ के बाद पढ़ना चाहिए क्योंकि ये सूरह कब्र के अज़ाब से बचाती है।
  • जब फरिश्ते कब्र में सवाल करेंगे तो उस वक्त ये अपने पढ़ने वाले के लिए सवाल करेगी और उसका दिफ़ा करेगी।
  • मुस्नद अहमद की रिवायत में इसे सिफारिश करने वाली सूरह बताया गया है।
  • आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह की किताब में एक सूरह है जिसमें सिर्फ 30 आयतें हैं।यह आदमी की सिफारिश करेगी यहाँ तक कि उसको बख़्श दिया जाएगा।
  • सिलसिला सहीहा का हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि सूरह तबारक यानी सूरह मुल्क अज़ाबे कब्र से बचाने वाली है।
  • नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मामूल था कि वे इस सूरह को पढ़े बगैर सोते नहीं थे।

Surah Mulk In Hindi।सूरह मुल्क हिंदी में।

इस सूरह का हिंदी, अरबी और हिंदी तर्जुमा बहुत महत्वपूर्ण है। यह सूरह रोहानी ताकत का प्रतीक है और इसे अक्सर सुरक्षा और बरकत के लिए पढ़ा जाता है। इसका हिंदी में अर्थ हमें अल्लाह की बादशाहत, जीवन और मौत के मकसद से संवेदनशीलता को समझने में मदद करता है। इस लेख में, हम आपके लिए सूरह मुल्क का साफ और संक्षिप्त हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करते हैं, ताकि आप इसके अर्थ को समझ सकें और इसे अपने जीवन में अमल में ला सकें। चाहे आप इसे अरबी से हिंदी में समझना चाहें या कुरान के दीप संदेशों को समझने का इरादा करें, यह अनुवाद आपको अल्लाह के क़रीब ला सकता है।

बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम

(1)

تَبَارَكَ الَّذِي بِيَدِهِ الْمُلْكُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

तबारक अल्लधी बियदिही-ल-मुल्कु व हु्वा अला कुल्लि शय-इन कदीर.

बढ़ी शान है उस जात की जिसकी हाथ में सारी बादशाही है, और वह हर चीज पर पूरी तरह कादिर है।

(2)

الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ

अल्लधी खलक़ा-ल-मौता वल-हयाता लियबलुवकुम अय्युकुम अह्सनु अमलाव हु्वा-ल-अजीज़ु-ल-ग़फूर.

जिसने मौत और ज़िन्दगी इसलिये पैदा की ताकि वह तुम्हें आजमाये कि तुम में से कौन अ़मल में ज़्यादा बेहतर है, और वही है जो मुकम्मल इक़्तिदार (ताक़त व इख़्तियार) का मालिक (और) बहुत बख़्शने वाला है।

(3)

الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا ۖ مَا تَرَىٰ فِي خَلْقِ الرَّحْمَٰنِ مِن تَفَاوُتٍ ۖ فَارْجِعِ الْبَصَرَ هَلْ تَرَىٰ مِن فُطُورٍ

अल्लधी खलक़ा सबअ समावतिन तिबाक़न, मा तारा फी खलक़ि-र-रह्मानी मिन तफ़ावुतिन फरजिइल-बस्र हल तारा मिन फुतूर.

जिसने सात आसमान ऊपर-नीचे पैदा किये।तुम ख़ुदा-ए-रहमान की तख़्लीक़ (बनाने और पैदा करने) में कोई फ़र्क़ नहीं पाओगे।अब फिर से नज़र दौड़ाकर देखो क्या तुम्हें कोई रख़्ना नज़र आता है?

(4)

ثُمَّ ارْجِعِ الْبَصَرَ كَرَّتَيْنِ يَنقَلِبْ إِلَيْكَ الْبَصَرُ خَاسِئًا وَهُوَ حَسِيرٌ

थुम्म-रजिइल-बस्र क़र्रतैनि यन्कलिब इलैका-ल-बस्र खासिअन व हु्वा हसीर.

फिर बार-बार नज़र दौड़ाओ, नतीजा यही होगा कि नज़र थक-हारकर नामुराद (नाकाम) लौट आयेगी।

(5)

وَلَقَدْ زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَجَعَلْنَاهَا رُجُومًا لِّلشَّيَاطِينِ وَأَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابَ السَّعِيرِ

व लक़द ज़य्यन्ना-स-समा-अ-द-दुन्या बिमसाबीहा व जअल्नाहा रजूमन लि-श-शयातीनि व अतद्ना लहुम अधाबा-स-सी

और हमने क़रीब वाले आसमान को रोशन चिरागों (यानी सितारों वग़ैरह) से सजा रखा है, और उनको शैतानों पर पत्थर बरसाने का ज़रिया भी बनाया है, और उनके लिये दहकती आग का अ़ज़ाब तैयार कर रखा है।

(6)

وَلِلَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ

व लिल्लधिना कफरू बिरब्बिहिम अधाबु जहन्नमा व बिस-मसिर.

और जिन लोगों ने अपने परवर्दिगार से कुफ़्र का मामला किया है उनके लिये जहन्नम का अ़ज़ाब है, और वह बहुत बुरा ठिकाना है।

(7)

إِذَا أُلْقُوا فِيهَا سَمِعُوا لَهَا شَهِيقًا وَهِيَ تَفُورُ

इधा उलक़ू फीहा समीउ लहा शहीक़न व हिया तफूर.

जब वे उसमें डाले जायेंगे तो उसके दहाड़ने की आवाज़ सुनेंगे, और वह जोश मारती होगी,

(8)

تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ الْغَيْظِ ۖ كُلَّمَا أُلْقِيَ فِيهَا فَوْجٌ سَأَلَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَذِيرٌ

तकादु तमय्यज़ु मिन-ल-ग़यज़ि कुल्लमा उलक़िय फीहा फौजुन सअलहुं ख़जनतहा अलम यअतिकुम नज़ीर

ऐसा लगेगा जैसे वह ग़ुस्से से फट पड़ेगी।जब भी उसमें (काफ़िरों का) कोई गिरोह फेंका जायेगा तो उसके मुहाफ़िज़ (निगराँ फ़रिश्ते) उनसे पूछेगे कि क्या तुम्हारे पास कोई ख़बरदार करने वाला नहीं आया था?

(9)

قَالُوا بَلَىٰ قَدْ جَاءَنَا نَذِيرٌ فَكَذَّبْنَا وَقُلْنَا مَا نَزَّلَ اللَّهُ مِن شَيْءٍ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ كَبِيرٍ

क़ालू बला क़द जाआना नज़ीरुन फकज़्ज़ब्ना व क़ुल्ना मा नज़्ज़ला-ल-लाहु मिन शय-इन इन अंतुम इल्ला फी दलालिन कबीर.

वे कहेंगे कि हाँ बेशक हमारे पास ख़बरदार करने वाला (यानी पैग़म्बर और रसूल) आया था, मगर हमने (उसे) झुठला दिया, और कहा कि अल्लाह ने कुछ नाज़िल नहीं किया, तुम्हारी हक़ीक़त इसके सिवा कुछ नहीं कि तुम बड़ी भारी गुमराही में पड़े हुए हो।

(10)

وَقَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ

व क़ालू लव कुनना नस्मउ अव नकिलु मा कुनना फी अस्हाबि-स-सीर.

और वे कहेंगे कि अगर हम सुन लिया करते और समझ से काम लिया करते तो (आज) दोज़ख़ वालों में शामिल न होते।

(11)

فَاعْتَرَفُوا بِذَنبِهِمْ فَسُحْقًا لِّأَصْحَابِ السَّعِيرِ

फ़तरफू बिधन्बिहिम फसूह्क़न लि-अस्हाबि-स-सी

इस तरह वे अपने गुनाह का ख़ुद ऐतिराफ़ (यानी क़ुबूल) कर लेंगे।ग़र्ज़ कि फटकार है दोज़ख़ वालों पर।

(12)

إِنَّ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ

इन्ना-ल-लधिना यख्शौना रब्बहुम बिल-ग़ैबि लहुम मग़फिरतुन व अज्रुन कबीर

(इसके विपरीत) जो लोग बिन देखे अपने परवर्दिगार से डरते हैं, उनके लिये बेशक मग़फ़िरत और बड़ा अज्र है।

(13)

وَأَسِرُّوا قَوْلَكُمْ أَوِ اجْهَرُوا بِهِ ۖ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ

व असिर्रू क़ौलकुम अव इजह्रू बिहि इन्नहु अलीमुं बिधाति-स-सुदूर

और तुम अपनी बात छुपाकर करो या ज़ोर से करो, (सब उसके इल्म में है, क्योंकि) वह दिलों तक की बातों का पूरा इल्म रखने वाला है।

(14)

أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ

ला यअलमु मन खलक़ा व हु्वा-ल-लतीफु-ल-ख़बीर.

भला जिसने पैदा किया वही न जाने? जबकि वह बहुत बारीकी की नज़र रखने वाला, मुकम्मल तौर पर बा-ख़बर है।

(15)

هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِن رِّزْقِهِ ۖ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ

हु्वा-ल-लधी जअला लकुमु-ल-अर्दा द्हलूलन फंम्शू फी मनाक़िबिहा व कुलू मिन रिज्क़िहि व इलैहि-न-नुशूर.

वही है जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन को राम (यानी तुम्हारे क़ाबू में) कर दिया है, लिहाज़ा तुम उसके मोंढों पर चलो फिरो, और उसका रिज़्क़ खाओ, और उसी के पास दोबारा ज़िन्दा होकर जाना है।

(16)

أَأَمِنتُم مَّن فِي السَّمَاءِ أَن يَخْسِفَ بِكُمُ الْأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ

आमिंतुं मन फी-स-समा-इ अन यख्सिफ़ बिकुमु-ल-अर्दा फ-इधा हीय तमूर.

क्या तुम आसमानों वाले की इस बात से बेख़ौफ़ हो बैठे हो कि वह तुम्हें ज़मीन में धंसा दे, तो वह एक दम थरथराने लगे?

(17)

أَمْ أَمِنتُم مَّن فِي السَّمَاءِ أَن يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ

अम अमिंतुं मन फी-स-समा-इ अन युरसिला अलैकुम हसिबा फ़सतलमूना कैफ नधीर.

या क्या तुम आसमान वाले की इस बात से बेख़ौफ़ हो बैठे हो कि वह तुम पर पत्थरों की बारिश बरसा दे? फिर तुम्हें पता चलेगा कि मेरा डराना कैसा था?

(18)

وَلَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ

व लक़द कज़्ज़ब-ल-लधिना मिन क़ब्लिहिम फ़ कैफ काना नकीर.

और इनसे पहले जो लोग थे उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया था।फिर (देख लो कि) मेरा अ़ज़ाब कैसा था?

(19)

أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ ۚ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَٰنُ ۚ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ

अवा लम यरौ इल-त-तैरि फ़ौक़हुम सअफ्फ़ातिं व यक़्बिद्न, मा युमसिकुहन्ना इल्ला-र-रहमान, इन्नहु बि कुल्लि शय-इन बसीर.

और क्या इन्होंने परिन्दों को अपने ऊपर नज़र उठाकर नहीं देखा कि वो परों को फैलाये हुए होते हैं, और समेट भी लेते हैं।उनको ख़ुदा-ए-रहमान के सिवा कोई थामे हुए नहीं है।यक़ीनन वह हर चीज़ की ख़ूब देखभाल करने वाला है।

(20)

أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي هُوَ جُندٌ لَّكُمْ يَنصُرُكُم مِّن دُونِ الرَّحْمَٰنِ ۚ إِنِ الْكَافِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ

अम्मन हाधा-ल-लधी हु्वा जुन्दुन लकुम यंसुरुकुम मिन दूनि-र-रहमान, इनि-ल-काफिरूना इल्ला फी ग़ुरूर.

भला ख़ुदा-ए-रहमान के सिवा वह कौन है जो तुम्हारा लश्कर बनकर तुम्हारी मदद करे? काफ़िर लोग तो ख़ालिस धोखे में पड़े हुए हैं।

(21)

أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي يَرْزُقُكُمْ إِنْ أَمْسَكَ رِزْقَهُ ۚ بَل لَّجُّوا فِي عُتُوٍّ وَنُفُورٍ

अम्मन हाधा-ल-लधी यरज़ुक़ुकुम इन अम्सका रिज्क़हू बल लज्जू फी उतुव्विन व नुफूर.

अगर वह अपना रिज़्क़ बन्द कर दे तो भला वह कौन है जो तुम्हें रिज़्क़ अ़ता कर सके? इसके बावजूद वे सरकशी और बेज़ारी पर जमे हुए हैं।

(22)

أَفَمَن يَمْشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجْهِهِ أَهْدَىٰ أَمَّن يَمْشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ

अफमन यम्शी मुकिब्बन अला वज्हिहि अह्दा अम्मन यम्शी सविय्यं अला सिरातिं मुस्तक़ीम.

भला जो शख़्स अपने मुँह के बल औंधा चल रहा हो, वह मन्ज़िल तक ज़्यादा पहुँचने वाला होगा, या वह जो एक सीधे रास्ते पर चल रहा हो?

(23)

قُلْ هُوَ الَّذِي أَنشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ

क़ुल हु्वा-ल-लधी अंशा-अकुम व जअला लकुमु-स-समअ व-ल-अबसारा व-ल-अफ़िदा क़लीलन मा तशक़ुरून.

कह दो कि वही है जिसने तुम्हें पैदा किया, और तुम्हारे लिये कान और आँखें और दिल बनाये।(मगर) तुम लोग शुक्र कम ही करते हो।

(24)

قُلْ هُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ

क़ुल हु्वा-ल-लधी धरअकुम फी-ल-अर्दि व इलैहि तुह्शरून.

कह दो कि वही है जिसने तुम्हें ज़मीन में फैलाया, और उसी के पास तुम्हें इकट्ठा करके लेजाया जायेगा।

(25)

وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ

व यक़ूलूना मता हाधा-ल-वादु इन क़ुंतुम सादिक़ीन.

और ये लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो बताओ कि यह वायदा कब पूरा होगा?

(26)

قُلْ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِندَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ

क़ुल इनमा-ल-इलमु इंदा-ल-लाहि व इनमा अन नज़ीरुं मुबीन.

कह दो कि इसका इल्म तो सिर्फ़ अल्लाह के पास है, और मैं तो बस साफ़-साफ़ तरीक़े पर ख़बरदार करने वाला हूँ।

(27)

فَلَمَّا رَأَوْهُ زُلْفَةً سِيئَتْ وُجُوهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَقِيلَ هَٰذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَدَّعُونَ

फ़लम्मा र-औहु ज़ुल्फ़तन सिअत वुजूहु-ल-लधिना कफरू व क़ीला हाधा-ल-लधी कुन्तुम बिहि तद्दाउन.

फिर जब वे उस (क़ियामत के अ़ज़ाब) को पास आता देख लेंगे तो काफ़िरों के चेहरे बिगड़ जायेंगे और कहा जायेगा कि यह है वह चीज़ जो तुम माँगा करते थे।

(28)

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَهْلَكَنِيَ اللَّهُ وَمَن مَّعِيَ أَوْ رَحِمَنَا فَمَن يُجِيرُ الْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ

क़ुल अराइतुम इन अह्लक़निय-ल-लाहु व मन मइया अव रहिमना फ़ मन युजीरु-ल-काफिरिन मिन अधाबिं अलीम.

(ऐ पैग़म्बर! उनसे) कहो कि ज़रा यह बतलाओ कि चाहे अल्लाह मुझे और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फ़रमा दे (दोनों सूरतों में) काफ़िरों को दर्दनाक अ़ज़ाब से कौन बचायेगा?

(29)

قُلْ هُوَ الرَّحْمَٰنُ آمَنَّا بِهِ وَعَلَيْهِ تَوَكَّلْنَا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ

क़ुल हु्वा-र-रहमानु अमन्ना बिहि व अलैहि तवक्कलना फ़सतलमूना मन हु्वा फी दलालिं मुबीन.

कह दो कि वह रहमान है, हम उस पर ईमान लाये हैं, और उसी पर हमने भरोसा किया है।चुनाँचे जल्द ही तुम्हें पता चल जायेगा कि कौन है जो खुली गुमराही में मुब्तला है।

(30)

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْرًا فَمَن يَأْتِيكُم بِمَاءٍ مَّعِينٍ

क़ुल अराइतुम इन अस्बह माउकुम ग़ौरण फ़ मन यअतीकुम बिमा-इन मईन.

कह दो कि ज़रा यह बतलाओ कि अगर किसी सुबह तुम्हारा पानी नीचे को उतरकर ग़ायब हो जाये तो कौन है जो तुम्हें चश्मे से उबलता हुआ पानी लाकर दे दे?

Surah Mulk In English।सूरह मुल्क अंग्रेजी में।

इस सूरह की रूहानी अहमियत बहुत ज्यादा है और अक्सर हिफाजत और बरकत के लिए पढ़ी जाती है। इसका मतलब अंग्रेजी में हम अल्लाह की बादशाहत, तख़लीक़, और ज़िंदगी और मौत के मकसद से समझते हैं, इसका असर हम समझ सकते हैं। इस लेख में, हम आपके लिए सूरह अल मुल्क का साफ़ और मुख्तासिर अंग्रेजी अनुवाद फराहम करते हैं ताकि आप इसकी कहानियों पर ग़ौर कर सकें और अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसकी हिकमत को शामिल कर सकें। चाहे आप एक देशी अंग्रेजी बोलने वाले हैं या जो कुरान को बेहतर समझना चाहते हैं, इसका अनुवाद आपको अल्लाह के इलाही कलम के करीब लाने का मकसद रखता है।

**In the name of Allah, the Most Gracious, the Most Merciful.**

  1. Blessed is He in whose hand is the dominion, and He is over all things competent –
  2. [He] who created death and life to test you [as to] which of you is best in deed – and He is the Exalted in Might, the Forgiving –
  3. [And] who created seven heavens in layers. You do not see in the creation of the Most Merciful any inconsistency. So return your vision to the sky, do you see any breaks?
  4. Then return your vision twice again. Your vision will return to you humbled while it is fatigued.
  5. And We have certainly beautified the nearest heaven with stars and have made [from] them what is thrown at the devils and have prepared for them the punishment of the Blaze.
  6. And for those who disbelieved in their Lord is the punishment of Hell, and wretched is the destination.
  7. When they are thrown into it, they hear from it a [dreadful] inhaling while it boils up.
  8. It almost bursts with rage. Every time a company is thrown into it, its keepers ask them, “Did there not come to you a warner?”
  9. They will say, “Yes, a warner had come to us, but we denied and said, ‘Allah has not sent down anything. You are not but in great error.'”
  10. And they will say, “If only we had been listening or reasoning, we would not be among the companions of the Blaze.”
  11. And they will admit their sin, so [it is] alienation for the companions of the Blaze.
  12. Indeed, those who fear their Lord unseen will have forgiveness and great reward.
  13. And conceal your speech or publicize it; indeed, He is Knowing of that within the breasts.
  14. Does He who created not know, while He is the Subtle, the Acquainted?
  15. It is He who made the earth tame for you – so walk among its slopes and eat of His provision – and to Him is the resurrection.
  16. Do you feel secure that He who [holds authority] in the heaven would not cause the earth to swallow you and suddenly it would sway?
  17. Or do you feel secure that He who [holds authority] in the heaven would not send against you a storm of stones? Then you would know how [severe] was My warning.
  18. And already had those before them denied, and how [terrible] was My reproach.
  19. Do they not see the birds above them with wings outspread and [sometimes] folded in? None holds them [aloft] except the Most Merciful. Indeed He is, of all things, Seeing.
  20. Or who is it that could be an army for you to aid you other than the Most Merciful? The disbelievers are not but in delusion.
  21. Or who is it that could provide for you if He withheld His provision? But they have persisted in insolence and aversion.
  22. Then is one who walks fallen on his face better guided or one who walks erect on a straight path?
  23. Say, “It is He who has produced you and made for you hearing and vision and hearts; little are you grateful.”
  24. Say, “It is He who has multiplied you throughout the earth, and to Him you will be gathered.”
  25. And they say, “When is this promise, if you should be truthful?”
  26. Say, “The knowledge is only with Allah, and I am only a clear warner.”
  27. But when they see it approaching, the faces of those who disbelieve will be distressed, and it will be said, ‘This is that for which you used to call.’
  28. Say, [O Muhammad], “Have you considered: whether Allah should cause my death and those with me or have mercy upon us, who can protect the disbelievers from a painful punishment?”
  29. Say, “He is the Most Merciful; we have believed in Him, and upon Him we have relied. And you will come to know who it is that is in clear error.”
  30. Say, “Have you considered: if your water was to become sunken [into the earth], then who could bring you flowing water?”

Surah Al Mulk In Roman English।सूरह अल मुल्क रोमन अंग्रेजी में।

Bismillahir Rahmanir Raheem

  1. Tabaarakal lazee biyadihil mulku wa huwa ‘alaa kulli shai’in qadeer
  2. Alladhee khalaqal mawta wal hayaata liyabluwakum ayyukum ahsanu ‘amalaa; wa huwal ‘azeezul ghafoor
  3. Alladhee khalaqa sab’a samaawaatin tibaaqaa; maa taraa fee khalqir rahmaani min tafaawutin farji’il basara hal taraa min futoor
  4. Thummarji’il basara karratayni yanqalib ilaikal basaru khaasi’anw wa huwa haseer
  5. Wa laqad zaiyannas samaaa’ad dunyaa bimasaa beeha wa ja’alnaahaa rujoomallish shayaateeni wa a’tadnaa lahum ‘azaabas sa’eer
  6. Wa lillazeena kafaroo bi rabbihim ‘azaabu jahannam; wa bi’sal maseer
  7. Izaaa ulqoo feehaa sami’oo lahaa shaheeqanw wa hiya tafoor
  8. Takkaadu tamayyazu minal ghaizi kullamaa ulqiya feeha fawjun sa’alahum khazanatuhaaa alam yaatikum nazeer
  9. Qaaloo balaa qad jaaa’anaa nazeerun fakazzabnaa wa qulnaa maa nazzalal laahu min shai in in antum illaa fee dalaalin kabeer
  10. Wa qaaloo law kunnaa nasma’u aw na’qilu maa kunnaa fee ashaabis sa’eer
  11. Fa’tarafuu bi zambihim fasuhqan li ashaabis sa’eer
  12. Innal lazeena yakhshawna rabbahum bilghaibi lahum maghfiratunw wa ajrun kabeer
  13. Wa asirroo qawlakum awijharoo bih; innahoo ‘aleemun bizatis sudoor
  14. Alaa ya’lamu man khalaqa wa huwal lateeful khabeer
  15. Huwal lazee ja’ala lakumul arda zaloolan famshoo fee manaakibihaa wa kuloo mir rizqih; wa ilaihin nushoor
  16. A-amintum man fissamaaa’i any yakhsifa bikumul ardu fa-izaa hiya tamoor
  17. Am amintum man fissamaaa’i any yursila ‘alaikum haasiban fasata’lamoona kaifa nazeer
  18. Wa laqad kazzabal lazeena min qablihim fakayfa kaana nakaeer
  19. Awalam yaraw ilat tayri fawqahum saaffaatiw wa yaqbidn; maa yumsikuhunna illar rahmaan; innahoo bikulli shai’in baseer
  20. Amman haaza lazee huwa jundul lakum yansurukum min doonir rahmaan; inilkaafiroona illaa fee ghuroor
  21. Amman haazal lazee yarzuqukum in amsaka rizqah; bal lajjoo fee ‘utuwwinw wa nufoor
  22. Afamany yamshy mukibban ‘alaa wajhiheee ahdaa ammany yamshy sawiyyan ‘alaa siraatim mustaqeem
  23. Qul huwal lazee ansha akum wa ja’ala lakumus sam’a wal absaara wal af’idah; qaleelam maa tashkuroon
  24. Qul huwal lazee zara akum fil ardi wa ilaihi tuhsharoon
  25. Wa yaqooloona mataa haazal wa’du in kuntum saadiqeen
  26. Qul innamal ilmu ‘indal laahi wa innamaa ana nazeerum mubeen
  27. Falamma ra awhu zulfatan seee’at wujoohu lazeena kafaroo wa qeela haazal lazee kuntum bihee tadda’oon
  28. Qul ara’aytum in ahlakaniyal laahu wa mamma ‘iya aw rahimanaa famaiy yujeerul kaafireena min ‘azaabin aleem
  29. Qul huwar rahmaanu aamannaa bihee wa ‘alaihi tawakkalnaa fasata’lamoona man huwa fee dalaalim mubeen
  30. Qul ara’aytum in asbaha maaa’ukum ghawran famaiy ya’teekum bimaaa’im ma’een

Surah Mulk Pdf। सूरह मुल्क पीडीएफ।

Surah Mulk In Arabic Pdf। सूरह मुल्क अरबी में पीडीएफ।

Surah Mulk In Hindi Pdf। सूरह मुल्क हिंदी में पीडीएफ।

Surah Mulk In English Pdf। सूरह मुल्क अंग्रेजी में पीडीएफ।

आखिरी बात

सूरह मुल्क उन मोमिनो के लिए एक खास रोशनी है जो इसे प्रस्तुत करती हैं। इस सूरह में अल्लाह की शान-ओ-शौकत, उसकी पढ़ाई की बे-मिसालियत और इंसानी जिंदगी के अहम मसले बयान किए गए हैं। इस रोज़ाना परहना एक मुसीबत तब्दीली ला सकता है, जिसके दिल को दुख और दिमाग को अपने आप पर यकीन मिलता है। क्या सूरह की बरकत गुनाहों से बचाओ और अल्लाह के रास्ते पर चलने में मदद मिलती है। सूरह मुल्क की वजह से जन्नत की चाबी हासिल करें और अपनी जिंदगी में खुशहाली का सफर तय करें।

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Surah Al Mulk Ke Baare Mein Kuch Ahem Sawaalaat। सूरह मुल्क के बारे में कुछ अहम सवालात।

1. सूरह मुल्क पढ़ने से क्या फ़ायदे होते हैं?

कबर की अजाब से निजद मिलती है ,और ये हमारे लिए सिफारिस करती है।

2. सूरह मुल्क का मतलब क्या होता है?

सिफारिश करने वाली सूरह। 

3. सूरह मुल्क कितनी आयत में है?

सूरह मुल्क 30 आयात में है। 

4. सूरह मुल्क का तर्जुमा क्या है?

सूरह मुल्क का तर्जुमा ऊपर दी गई है आप देखके पढ़ सकते है।

5. सूरह मुल्क कितने पारे  में है?

कुरान के 29 पारे में है। 

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