नांमाज पड़नेकी तरीका सुन्नत। Namaz Parne Ki Tarika Sunnat
नमाज इस्लाम में एक सबसे अहम फर्ज अमल है। यह हर मर्द और औरत के लिए फर्ज है। नमाज का हुक्म कुरान में अल्लाह ताआला की तरफ से दिया गया है। कुरान में नमाज की अहमियत और फर्ज होने का जिक्र सूरह आल-बाकराह की 43 आयत में मिलता है। नमाज इस्लाम का एक मुखतसर रूप है, जो मुसलमानों के लिए रोज़ी, बरकत, और हिदायत का ज़रिया है।
सुराह अल-बाकरा (2:238):
حَافِظُوا عَلَى الصَّلَوَاتِ وَالصَّلَاةِ الْوُسْطَىٰ وَقُومُوا لِلَّهِ قَانِتِينَ
“नमाजों की (पूरी तरह) तारीकी से हिफाजत करो और बीच की नमाज (असर) की नमाज पर खड़े हो जाओ और अल्लाह के लिए खड़े हो कर इबादत करो।”
सूरह आले इमरान (3:191):
“الَّذِينَ يَذْكُرُونَ اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَىٰ جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ”
“जो लोग खड़े होते हैं, बैठे होते हैं और अपने सीनों (या पेटों) पर पड़े होते हैं, वे अल्लाह की याद करते हैं और आसमानों और ज़मीन की तकलिख में गौरो फिकर करते हैं।”
सूरह अल-मुजादिलह (58:13):
“أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يَسْجُدُ لَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ وَالنُّجُومُ وَالْجِبَالُ وَالشَّجَرُ وَالدَّوَابُّ وَكَثِيرٌ مِّن النَّاسِ”
“क्या तुमने नहीं देखा कि आसमानों में और ज़मीन में, सूरज, चाँद, सितारे, पहाड़े, पेड़-पौधे और जो कुछ भी है, सब अल्लाह की सजदा करते हैं और बहुत से लोग भी?”
ये आयातें नमाज के अहमियत को बताती हैं और मुसलमानों को नमाज को पूरा करने के लिए मुतावज्जई करती हैं।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे नमाज कैसे पढ़े, नमाज का हुक्म कब नाज़िल हुआ, नमाज का तरीका मर्दों के लिए, नमाज का तरीका औरतो के लिए, तहज्जुद की नमाज कैसे पढ़े, और नमाज के साथ सूरह कौन सी पढ़े?
हदीस 1: पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया: “इस्लाम का बुन्यादी सुतूर (स्तूप) नमाज है, और इस्लाम का सर (सिर) नमाज का क़याम है।” (सहीह मुस्लिम)
हदीस 2: पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया: “नमाज इंसान और उसके रब के दरमियान एक दीवार है। जब कोई नमाज पढ़ता है तो इस दीवार को बनाता है और जब कोई गुनाह करता है तो यह दीवार गिर जाती है।” (सहीह मुस्लिम)
हदीस 3: पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया: “अगर लोग जानें कि ये (फजर की) नमाज कितना बड़ा सवाब है, तो वह अपने जनों को खा गया करते और उन्हें बुराईयों से रोकता।” (सहीह बुखारी, किताब अल-अद्हान)
हदीस 4: पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया: “जब कोई नमाज पढ़ता है, तो वह अपने रब के साथ खुली गुफतूगु कर रहा होता है। जब वह अपनी रुकू में है, तो रब उस से कहता है, ‘मेरी इबादत में क़याम रख।’ जब वह सजदे में है, तो रब उस से कहता है, ‘अपने गुनाहों की माफ़ी मांग।'” (सहीह मुस्लिम)
हदीस 5: पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया: “जो शख्स नमाज पढ़ता है और उसकी नमाज में कुछ छूट जाती है, तो अल्लाह उसे उसके बाकी अमलों में भी कामयाबी नहीं देता।” (अबु दाउद, किताब अल-सलात)
इन हदीसों के ज़रिए नमाज की अहमियत और इसके पढ़ने का तरीका समझ सकते हैं। ये हदीस नंबर्स दिए गए हैं ताकि आप उन्हें सहीह मुस्लिम, सहीह बुखारी, और अबु दाउद जैसी हदीस किताबों में आसानी से ढूंढ सकें।
जानिए नांमाज पड़नेकी तरीका स्टेप बाइ स्टेप। Namaz Parne Ki Tarika Step By Step
नमाज़ पढ़ने के लिए नमाज़ से पहले कुछ शर्तें हैं जिनके बिना नमाज़ नहीं होगी और फासिल हो जाएगी। नमाज़ की कुल शराइतें कुछ इस तरह से हैं।
नमाज पढ़ने के लिए सही शराइत: Namaz Padhne Ke Liye Sahi Shara’it
- बदन का पाक होना
- कपड़ा का पाक होना
- जगह का पाक होना
- सतर का छुपा हुआ होना
- सही वक्त में नमाज पढ़ना
- किबले की तरफ मुंह होना
1. बदन का पाक होना
नमाज़ पड़ने के लिए सबसे अहम सर्तों में से एक सर्त ये है की बदन का पाक होना। अगर आपकी गुसल टूट जाती है तो आपको गुसल करनी पड़ेगी ओर अगर आपकी वजू टूट जाती है तो आपको वजू करना परेगा। नमाज़ सुरू करने से पहले इन चीजों का जरूर ख्याल करे। गुसल और वजू करने की सुन्नत तरीका जानने किलए एस लिंक पर क्लिक करे।
2. कपड़े का पाक होना
नमाज़ पड़ने की दूसरी शर्त है कपड़े का पाक होना। कपड़े की पाक होने का मतलब कपड़े मे कोई नापाक चीज ना लगि हो । जैसे की पेशाब, पखाना का लगना, मणि का लगना और भी नापाक चीजे लगना । इस हालत मे आपको जरूर कपड़ा बदलना परेगा । ईसलिए नमाज़ मे खड़े होने से पहले इन बातो का जरूर ध्यान रखे।
3. जगह का पाक होना
नमाज़ पड़ने के लिए तीसरा शर्त है जगह का पाक होना । ईसलिए जिस जगह मे आप नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हो उस जगाह को आप जरूर तहकीकात कर ले के उस जगह मे कोई नपाकी चीजे ना लगि हो। ईसी वजाह से उलमा केराम मुसल्ले का इस्तेमाल करने के लिए सलाह देते है।
4. सतर का छुपा हुआ होना
नमाज़ के लिए तीसरा ओर सबसे अहम शर्त है सतर का छुपा हुआ होना। मर्दों के लिए नाभी से टखना तक कपड़ा ढका हुआ होना चाहिए। ऑरतों के लिए पूरा सरसे लेकर पैर तक ढका हुया होना जरूरी है। नमाज़ से पहले इन बातों का जरूर ख्याल रखे।
5. सही वक्त में नमाज पढ़ना
किसी वी नमाज़ अदाह करने से पहले उस नमाज़ की सही वक्त जनले। साहाबा एकरआम उस वक्त मे सूरज की गुरुब ओर तुलूब के हिसाब से नमाज़ की सही वक्त तेई करते थे। पर आज की मॉडर्न जमाने मे हमारे पास बहुत सारे सुहुलते है। जैसे आपको नमाज़ की सही वक्त जानने के लिए आपको पूरी साल की नमाज़ की वक्त की किताब मिल जाएगी। ईसके अलावा आप इंटरनेट की मदद ले सकते है । कुछ ऐसे वेबसाईट है जो आपको आपकी जगह के हिसाब से सही वक्त बताती है । जैसे
असर की नमाज़ के वक्त को आपको ध्यान देने चाहिए क्योंकि दो अलग-अलग वक्त होती है । हनाफी मज़हब के अनुसार असर का देरी की समय सही समय है। तो आप उस वक्त पर असर की नमाज़ अदा कर सकते है।
6. किबले की तरफ रुख करना
नमाज़ की बाकी फराइज़ मे से सबसे एहम फर्ज किबले की तरफ रुख करना है। अगर नमाज़ मे आपका रुख गलत हो तो आपकी नमाज़ बातिल हो जाएगी। इसलिए आपको किबले की सही रुख का इल्म होना जरूरी है।
अब हम नमाजकी अंदर की फरइजो को जानेंगे । नमाज की अंदर सात फराइज़ है । सभी फर्ज को नीचे एक-एक करके चर्चा की गई है। कृपया ध्यान से पढ़ें और नमाज को सही तरह से अदा करें।
नमाज की अंदर की फर्ज। Namaz Ki Andar Ki Farz
- नमाज की नियत करना
नमाज की फराइजों में नमाज की नियत करना एक फर्ज है। नियत का मतलब यह नहीं कि आपको मुंह से बोलकर कहना पड़े कि “मैं फलाह वक्त की नमाज के लिए किबला की तरफ रुख कर पढ़ रहा हूँ” बस दिल को पता होनी चाहिए के आप कॉनसी नमाज अदाह कर रहे है ।
- तकबीरे तहरीमा बोलना
नियत करने के बाद तकबीरे तहरीमा बोलना नमाज में एक अहम फर्ज है। तकबीरे तहरीमा का अर्थ है ‘अल्लाह हु अकबर’ कहकर नमाज शुरू करना। यह नमाज की पहली तकबीर होती है और इसे ‘नमाज की तहरीमा’ भी कहा जाता है। जब इमाम या नमाज पढ़ने वाला “अल्लाहु अकबर” कहता है, तो सभी नमाजी इसे सुनते हैं और अपने हाथ कानो तक उठाते हैं। अगर कोई अकेले नमाज अदा कर रहा हो, तो उसे भी मुंह से तकबीरे तहरीमा बोलना बहुत अहम है। यदि कोई शख्स जानबूझकर तकबीरे तहरीमा नहीं बोलता है, तो उसकी नमाज मान्य नहीं होगी।
- क़ियाम करना (खड़े होना)
कियाम करना नमाज की दूसरी फर्ज है नियत के बाद। कियाम करने का मतलब है की नमाज़ के दौरान सीधे खड़े होना की आपकी लटकी हुई हाथ घुटनेको न पहुँचें। यह नमाज़ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि क़ियाम के दौरान आप अल्लाह के सामने इबादत करते हैं। इस दौरान आप अपने हाथ को बांध सकते है नाभी के बराबर । कियाम करने की दुरान बिना किसी मजबूरी के आप नमाज बेठकर न पड़े।
- क़िरात करना
“किरात करना” नमाज की एक अहम फर्ज है। किरात करने का मतलब है कि खड़े होकर नमाज में सूरह फातिहा और कुछ आयतें पढ़ना। अगर आप जमात के साथ नमाज अदा कर रहे हैं तो आपको ध्यान से इमाम की किरात सुननी होगी। फ़र्ज़ नमाज़ में मुक़तदी को कुछ नहीं पढ़ना होता है (मुक़तदी उसे कहते हैं जो इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ता है)। आपको सूरह फातिहा नही पढ़नी है, बल्कि साथ में आयतें भी नही पढ़नी हैं। क्योंकि इमाम की किरात ही मुक़तदी के लिए काफ़ी होती है।
नमाज को अकेले पढ़ते समय, आपको धीमी आवाज में आयतें पढ़नी चाहिए, ताकि आप खुद को सुन सकें। किरात में कुरान शरीफ की आयतों को इतना जोर से नहीं पढ़ना चाहिए कि आपके बगल में खड़े शख्स को सुनाई दे, बल्कि आपको आराम से और आवाज को धीमी करके पढ़ना चाहिए।
- रुकू करना
नमाज के अंदर रुकू करना एक अहम फर्ज है। रुकू में आपको कमर को थोड़ा सा झुकाना होता है, जिसे ‘रुकू’ कहा जाता है। यदि कमर सीधी नहीं होती, थोड़ा सही ढंग से झुक जाती है, तो भी रुकू मान्य हो जाता है। क्योंकि रुकू का मतलब है थोड़ा झुकना, इसलिए यह फर्ज थोड़ी झुकाई में होती है। लेकिन नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत यह है कि वे रुकू में पूरी तरह से कमर को झुकाते थे और इत्मीनान से कम से कम तीन बार “सुब्हान रब्बिल अजीम” पढ़ते थे। अगर आप बहुत जल्दी रुकू में जाते हैं, तो भी नमाज़ मान्य होती है, लेकिन यह बेहतर है कि आप इसे इत्मीनान से करें। कमर को सीधा करना चाहिए और कम से कम तीन बार “सुब्हान रब्बिल अजीम” पढ़ना चाहिए, यह रुकू का सही और सुन्नत तरीका है।
- सजदा करना
सजदा करना नमाज में एक अहम फर्ज है। नमाज की हर रकात में दो बार सजदा करना फर्ज है। सजदे में आपको जमीन पर जाकर दोनों हाथों को जमीन पर रखना होता है, और उनके बीच में पेशानी को जमीन पर रखके ओर नाक को भी जमीन में रख कर कम से कम तीनदफा सुभाना रब्बियाल अला बोलना चाहिए |
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फरमान है सजदे में बंदे अल्लाह ताअला की सबसे करीब होते हैं।
- सजदे में पहले आपके दो घुटना, उसके बाद दो हाथ, उसके बाद नाक फिर पेशानी को जमीन पर रखना होता है।
- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हुकुम है सजदे में जो दोनों पहलू है वह आपसे अलग होनी चाहिए ।
- सजदा आपको खूब मूसादा तरीके से करनी चाहिए। और कमर उठी हुई रहे । इजमासे एह बात साबित है कि मर्द को खुलकर सजदा करनी चाहिए और औरत को सीमट कर सजदा करनी चाहिए।
- अगर आप जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं तो खुलकर सजदा करने की मुमकिन हो तो खुलकर सजदा करें। अगर खुलकर सजदा करने की मुमकिन न हो, तो बाजू समेट कर सजदा किया जा सकता है।
- क़ादा-ए-आख़ीरा (आख़िरी रकअत में बैठना)
“कादा ए आखिरा” भी नमाज के अंदर एक अहम फर्ज होता है। इसका मतलब होता है कि किसी भी नमाज के आखिरी रक’त में बैठना, चाहे वह फर्ज, सुन्नत, वाजिब, या नफ़िल नमाज हो। यह फर्ज हर प्रकार की नमाज के अंत में किया जाता है, चाहे वह दो रकात वाली नमाज हो या तीन या चार रकात की। यह नमाज की ताकीद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। जब हम उस नमाज के आखिर में बैठते हैं, उसी को “कादा ए आखिरा” कहते हैं।
“क़ादा-ए-आख़ीरा” करने की तरीका:
- सबसे पहले अत्ताहियत पढ़नी चाहिए।
- उसके बाद “दुरूद इब्राहीम” पढ़ना चाहिए।
- आख़री में, दुआ मासूरा पढ़ना चाहिए।
- ख़ुरूज बेसुनऐही (सलाम फेरना)
“खुरूज बेसुन्ऐही या सलाम फेरना” नमाज के अंदर एक महत्वपूर्ण फर्ज है। सलाम फेरने की तरीका यह है: पहले आप “अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह” बोलें, फिर दाएं तरफ मुंह फेरें, फिर “अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह” बोलें और बाएं तरफ मुंह फेरें। इस तरह से आपकी नमाज मुकम्मल हो जाएगी।
नमाज़ मे पूरी फर्ज सुन्नत ओर वाजिब का लिस्ट। Namaz Mein Poori Fard, Sunnat Aur Wajib Ka List
- फर्ज: फर्ज” वह हिस्सा होते हैं जो नमाज के अंदर अल्लाह की हुक्म है और जिन्हें पूरा करना जरूरी है। यदि कोई फर्ज छूट जाता है, तो नमाज फासिद हो जाती है। इसमें सजदा, रुकू, तशहूद, और आखिरी तशहूद शामिल हैं। जैसे कि सजदा, रुकू, तशहूद, और आखिरी तशहूदशामिल हैं।
- सुन्नत: सुन्नत नमाज की वह हिस्सा होते हैं जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सुन्नत के अनुसार पढ़ी जाती हैं।। और इन्हें अदा करने में बहुत अजर मिलता है। यदि कोई सुन्नत आपकी छूट जाता है, तो नमाज हो जाएगी ।
- वाजिब: नमाज में वाजिब कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें अदा करना जरूरी होता है। यदि किसी वाजिब, नमाज में छूट जाती है, तो नमाज में कमी हो जाती है। वाजिब को छोड़ने की स्थिति में, वह नमाज मुख्य रूप से सही होती है, लेकिन उसकी कमियों को पूरा करने के लिए सजदा सही किया जा सकता है।
नंबर |
हुकूम |
सौदा |
1 |
नियत करना |
फर्ज |
2 |
तकबीरे तहरीमा बोलना (अल्लाह हु अकबर बोलना ) |
फर्ज |
3 |
दोनों हाथ को कान तक उठाना |
सुन्नत |
4 |
हाथ बांधना नाभि के बराबर |
सुन्नत |
5 |
साना पड़ना |
सुन्नत |
6 |
आउजुबिलाहिमिनाश्शैतानिर रजीम |
सुन्नत |
7 |
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम |
सुन्नत |
8 |
खड़े होकर नमाज पड़ना |
फर्ज |
9 |
सुराह फातिहा पड़ना |
वाजिब |
10 |
सूरत मीलाना ( दूसरा सुराह पड़ना सुराह फातिहा का बाद ) |
वाजिब |
11 |
रुकू करना |
फर्ज |
12 |
रुकू में जाने के लिए “अल्लाहु अकबर” बोलना |
सुन्नत |
13 |
रुकू में तीन दफा सुभाना रब्बियाल अजीम पड़ना |
सुन्नत |
14 |
सामी ‘अल्लाहु लिमन हमीदाह बोलना |
सुन्नत |
15 |
रुकू के बाद सीधे खड़े होना |
वाजिब |
16 |
अल्लाहु अकबर बोलकर सजदे में जाना |
सुन्नत |
17 |
सजदा करना |
फर्ज |
18 |
तीन दफा सुभाना रब्बियाल अला पड़ना |
सुन्नत |
19 |
दूसरा सजदा करना |
फर्ज |
20 |
दो सजदे के बीच तसबीह पड़ना |
वाजिब |
21 |
सिर्फ “अत्ताहियात” पढ़ना (तीन या चार रकात वाली नमाज में)। |
वाजिब |
22 |
क़ादा-ए-आख़ीरा (आख़िरी रकअत में बैठना) |
फर्ज |
23 |
अत्ताहियात” पढ़ना (क़ादा-ए-आख़ीरा – आख़िरी रकअत में बैठना) |
सुन्नत |
24 |
दुरूद इब्राहीम” पढ़ना |
सुन्नत |
25 |
दुआ मासुरा पड़ना |
सुन्नत |
26 |
अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह सलाम फेरना |
वाजिब |
27 |
सलाम फेरने में पहले दाएं तरफ मुंह फेरना, फिर बाएं तरफ मुंह फेरना। |
सुन्नत |
5 वक्त की फर्ज नमाज़ ओर कुल रकातें। 5 Waqt Ki Farz Namaz Aur Kul Rak’atein
- फज़र नमाज: फजर की नमाज़ बोहोत एहम हैं! ये हमारे चेहरे की नूर बराती हैं। ये नमाज़ सूरज के तुलुब होने से पहले पढ़ी जाती हैं। 2 रकात सुन्नत और 2 रकात फर्ज।
- ज़ुहर नमाज: जोहर की नमाज़ हमारी रिज्क को बराती है। जोहर की नमाज़ दोपहर के समय पढ़ी जाती है। यह नमाज़ दिन के बीच के समय में पढ़ी जाती है। 4 रकात सुन्नत, 4 रकात फर्ज ओर आखिर मे 2 रकात सुन्नत है। और 2 रकात नफल है ।
- असर नमाज: असर की नमाज़ पढ़ने से हमारे सेहत दुरुस्त रहती हैं । असर की नमाज़ शाम के पहले समय में पढ़ी जाती है। यह नमाज़ दोपहर की नमाज़ के बाद और सूरज के गुरुब होने से पहले अदा की जाती है। 4 रकात सुन्नत ओर 4 रकात फर्ज है।
- मगरिब नमाज: मगरीब की नमाज़ हमारी हर परेशानियां दूर करती हैं। यह नमाज़ शाम के समय में पढ़ी जाती है, सूरज के गुरुब होने के बाद पढ़ी जाती हैं । 3 रकात फर्ज ओर 2 रकात सुन्नत है। और 2 रकात नफल है ।
- ईशा नमाज: ईशा की नमाज़ पढ़ने से सुकून की नीद अता होती है । ये नमाज़ मगरीब के कुछ वक्त बाद अदा की जाती है बरहाल मगरीब की नमाज़ रात को अदा की जाती है। 4 रकात सुन्नत उसके बाद 4 रकात फर्ज, फिर 2 रकात सुन्नत ,2 रकत नफल आखिर मे 3 रकात बित्तिर नमाज और 2 रकात नफल।
नमाज़ पढ़ने के फायदे। Namaz Padhne Ke Fayde
हर बालिग मुस्लिम, मर्द और औरत, पर नमाज़ फर्ज है। नमाज़ अदा करना हमारे लिए ज़रूरी है, क्योंकि हम अल्लाह ताला के बंदे हैं। बालिग होने पर अल्लाह ने हम पर नमाज़ को फर्ज करार दिया है। नमाज़ अफजल इबादत है। नमाज़ छोड़ने वाला इंसान गुनाहगार होता है, जो सक्स नमाज़ों की पाबंदी करता है, उसे बहुत सारे फायदे हासिल होते हैं। हम आपको तफ़सीर से पेश करने वाले हैं। साथ ही, हम गुज़ारिश करते हैं कि इस ब्लॉग को ध्यान से पढ़कर इल्म हासिल करें और नमाज़ की एहमियत को समझें। नमाज़ दिल और मेदा के मर्ज में शिफा देती है।
- नमाज़ दर्द ओर गम के एहसास को भुलाकर और कम कर देती है।
- नमाज मे बेहतरीन वर्जिश है । इसमे कयाम , रुकु यारों सेजड़े है जो बदन के अक्सर जोड़ हरकत करने लगते है लेहाजा नमाज इंसानी जिस्म के लिए बहुत सारे फायदेमंद है।
- नजला, जुखाम के मरीज के लिए लंबा सजदा करना बहुत ज्यादा फायदेमंद है। इससे इंसान की नाक खुल जाती है ।
- नमाज से जेहन साफ़सुत्रा हो जाता है।
- नमाज से गुस्से की आग बुझजाती है।
- नमाज रिज़्क लेके आती है।
- नमाज सेहत की हिफाजत करती है।
- नमाज तकलीफ को दूर करती है।
- नमाज बीमारियों कों दूर करती है।
- नमाज दिल की कूब्बत को बड़ाती है।
- नमाज खुसी की सामान बनती है।
- नमाज सुस्ती को दूर करती है।
- नमाज से चेहरे की रॉनक बढ़ती है।
- नमाज बरकत लाती है।
- नमाज अल्लाह तला के करीब पहुँचा देती है ।
- नमाज़ सयतान को दूर भागा देता है ।
नमाज के बारे में अहम सवालात। Namaz Ke Bare Mein Aham Sawaalat
1. नमाज के अंदर कितने फर्ज होते हैं?
नमाज के अंदर सात फर्ज होते है ।
- नियत करना
- तकबीरे तहरीमा बोलना
- क़ियाम करना (खड़े होना)
- क़िरात करना
- रुकू करना
- सजदा करना
- क़ादा-ए-आख़ीरा (आख़िरी रकअत में बैठना)
- ख़ुरूज बेसुनऐही (सलाम फेरना)
2. पांच वक्त की नमाज में कौन कौन सी सूराह पढ़ी जाती है?
पांच वक्त की नमाज में (फ़जर,, जुहर, असर, मग़रिब, और ईशा) कई सूरतें पढ़ी जाती हैं। यहां कुछ एहम सूरतों नमाज के दौरान पढ़ी जाती हैं: सूरह फातिहा ओर उसके साथ कोई ओर सूरत, इसके अलावा, नमाज के अन्य रकातों में भी कई अन्य सूरतें पढ़ी जा सकती है .
3. नमाज में कुल कितने फर्ज होते हैं?
नमाज मे कुल 13 फर्ज होते है। नमाज के बाहर 6 ओर नमाज के अंदर 7 जैसे:
नमाज के बाहर की छे फर्ज
- बदन का पाक होना
- कपड़ा के पाक होना
- जगह का पाक होना
- सतर का छुपा हुआ होना
- सही वक्त में नमाज पढ़ना
- किबले की तरफ मुंह होना
नमाज के अंदर सात फर्ज होते है ।
4. नमाज में गलती हो जाए तो क्या करना चाहिए?
नमाज में गलती से अगर कोई फर्ज छूट जाए तो नमाज फ़ासीद हो जाती है। अगर नमाज में कोई वाजिब गलती से छूट जाए तो सजदे सहव करने से नमाज मुकम्मल हो जाएगी। अगर आपके नमाज में कोई सुन्नत छूट जाती है, तो आपको घभराने की कोई जरूरत नहीं है। आपकी नमाज मुकम्मल हो जाती है, लेकिन सुन्नत छूटने पर सजदे सहव करने की जरुरी नहीं होती।
5. नमाज में कौन सी दरूद शरीफ पढ़ी जाती है?
नमाज की आखिरी रकात मे अत्ताहियत पड़ने के बाद दरूद ए इब्राहीम पढ़ी जाती है।
6. रुकु में क्या पढ़ा जाता है?
रुकू में हम तीन दफा सुब्हान रब्बियल आजीम” (Subhana Rabbiyal Azeem) पढ़ते हैं, जिसका अर्थ होता है “मेरा रब पाक है, बहुत अजमत वाला है।
7. अत्ताहियात के बाद नमाज में क्या पढ़ा जाता है?
अत्ताहियात केबाद हम नमाज मे दरूद ए इब्राहीम पड़ते है ओर आखिर मे दुआ ए मसुर पड़ते है।
8. सजदे में नमाज में क्या पढ़ते हैं?
सजदे में नमाज मे हम तीन दफा सुभाना रब्बियाल आला पड़ते जिसका तर्जुमा है “ पाक है मेरा परवरदिगार , बड़ा आलीशान है
9. नमाज किस उम्र में फर्ज होता है?
हर बालिग मुस्लिम, मर्द और औरत, पर नमाज़ फर्ज है।जब कोई लड़का की फर्स्ट टाइम नाइटफाल्स होता है उस टाइम से लड़का बालिग हो जाता है ओर उसके ऊपर नमाज फर्ज हो जाती है। अगर किसिको नाइट फाल्स ना हुया हो तो 15 साल की उम्र से उसपर नमाज फर्ज हो जाती है। खवातीन के ऊपर तब फर्ज होती है जब उनकी पहली दफा पीरिअडस होती है। अगर पेरिअडस नही आई तो 15 साल की उम्र से नमाज फर्ज हो जाएगी।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.