Surah Juma: सूरह जुमा

 

Surah Juma in Hindi: सूरह जुमा हिंदी में

सूरह जुम्मा क़ुरान की 62वीं सूरह है, जो मदनी सूरह है और इसमें 2 रुकू हैं और 11 आयतें हैं। यह कुरआन पाक की 28वीं पारा में आती है। इस सूरह का नाम “जुम्मा” इसलिए रखा गया क्योंकि इसमें जुम्मा के दिन की अहमियत और नमाज़ का ज़िक्र है। जुम्मा का दिन मुसलमानों के लिए एक खास दिन है जो इबादत और दुआएं माँगने के लिए बहुत अहम है। इस सूरह का मकसद मुसलमानों को जुम्मा की नमाज़ की फज़ीलत और उसकी अहमियत बताना है। इसमें अल्लाह तआ’ला ने रसूलुल्लाह ﷺ के आने और उनके जरिए इल्म और हिकमत के फ़रोग का ज़िक्र भी फरमाया है।

Surah Juma Ki Fazilat: सूरह जुमा की फ़ज़ीलत

Surah Juma ki faazilat aur ahmiyat ko dikhati hui tasveer.

सूरह जुम्मा, जो जुमे के दिन की नमाज़ में पढ़ने का हुकूम है, यानी जुमे की नमाज़ में पढ़ने का हुकूम है। आप ﷺ जुमे की नमाज़ में सूरह जुमा और मुनाफ़िक़ून पढ़ते थे। सूरह जुम्मा जुमे की रात को ईशा की नमाज़ में पढ़ना सही रिवायत नहीं है।

Surah Juma in Arabic, Hindi, and Tarjuma: सूरह जुमा अरबी, हिंदी और तरजुमा में

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

बिस्मिल्लाहिर रहमान निर रहीम

(अल्लाह के नाम से, जो मेहरबान और रहम फरमाने वाला है।)

يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٲتِ وَمَا فِى ٱلۡأَرۡضِ ٱلۡمَلِكِ ٱلۡقُدُّوسِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ (1)

युसब्बिहु लिल्लाही मा फिल समावाति व मा फिल अर्ज़ि अल मलिकिल कुद्दूसिल अज़ीज़िल हकीम

(आसमानों और ज़मीन में जो कुछ भी है, वह अल्लाह की तस्बीह करता है। जो बादशाह है, बड़ा पाक है, जिसका इक्तिदार (ताकत व इख्तियार) भी पूरा है, और जिसकी हिकमत भी पूरी है।)

هُوَ ٱلَّذِى بَعَثَ فِى ٱلۡأُمِّيِّـۧنَ رَسُولً۬ا مِّنۡهُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَـٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمۡ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ‌ۚ وَإِن كَانُواْ مِن قَبۡلُ لَفِى ضَلَـٰلٍ۬ مُّبِينٍ۬ (2)

हुवल लज़ी बअसा फिल उम्मिय्यीना रसूलन मिन्हुम यतलू अलैहिम आयातिहि व युज़क्कीहिम व यूअल्लिमुहुमुल किताब वल हिक्मा, व इन क़ानू मिन क़ब्लु लफी द़लालिन मुबीन

(वही है जिसने उम्मी (बिना पढ़े-लिखे) लोगों में उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उनके सामने उसकी आयतों की तिलावत करें और उन्हें पाक-साफ़ बनायें और उन्हें किताब और हिक्मत (समझ और दानाई) की तालीम दें, जबकि वे इससे पहले खुली गुमराही में पड़े हुए थे।)

وَءَاخَرِينَ مِنۡهُمۡ لَمَّا يَلۡحَقُواْ بِهِمۡ‌ۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ (3)

व आखिरीना मिन्हुम लम्मा यल्हकू बिहिम, व हुवल अज़ीज़ुल हकीम

(और (यह रसूल जिनकी तरफ़ भेजे गये हैं) उनमें कुछ और भी हैं जो अभी उनके साथ आकर नहीं मिले और वह बड़े इक्तिदार (ताकत व इख्तियार) वाले, बड़ी हिकमत वाले हैं।)

ذَٲلِكَ فَضۡلُ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُ‌ۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ (4)

ज़ालिका फज़लुल्लाहि यु’तीहि मन् यशा, वल्लाहु ज़ू फज़लिल अज़ीम

(यह अल्लाह का फज़ल है, वह जिसे चाहता है देता है, और अल्लाह बड़े फज़ल वाला है।)

مَثَلُ ٱلَّذِينَ حُمِّلُواْ ٱلتَّوۡرَٮٰةَ ثُمَّ لَمۡ يَحۡمِلُوهَا كَمَثَلِ ٱلۡحِمَارِ يَحۡمِلُ أَسۡفَارَۢا‌ۚ بِئۡسَ مَثَلُ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ‌ۚ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِى ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ (5)

मसलुल्लज़ीना हुम्मिलुत तौरा-त, सुम्म लम यहमिलूहा कमसलिल हिमारि यहमिलु अस्फारा, बिअसा मसलुल कौमिल्लज़ीना कज़्ज़बू बि आयातिल्लाह, वल्लाहु ला यह्दिल कौमज़् ज़ालिमीन

(जिन लोगों पर तौरात का बोझ डाला गया, फिर उन्होंने उसका बोझ नहीं उठाया, उनकी मिसाल उस गधे के जैसी है जो बहुत सी किताबें लादे हुए हो। बहुत बुरी मिसाल है उनकी जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और अल्लाह ऐसे ज़ालिमों को हिदायत (सही रास्ते और मंजिल) तक नहीं पहुँचाता।)

قُلۡ يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ هَادُوٓاْ إِن زَعَمۡتُمۡ أَنَّكُمۡ أَوۡلِيَآءُ لِلَّهِ مِن دُونِ ٱلنَّاسِ فَتَمَنَّوُاْ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِينَ (6)

कुल् या अय्युहल लज़ीना हादू, इन ज़अमतुम अन्नकुम औलिया-उ लिल्लाहि मिन दूनिन्नासि फ तमन्नवुल मौत इन कुंतुम सादिकीन

(ऐ पैगंबर! उनसे कहो कि अगर तुम्हारा दावा यह है कि तुम ही अल्लाह के दोस्त हो, तो मौत की तमन्ना करो, अगर तुम सच्चे हो।)

وَلَا يَتَمَنَّوۡنَهُ ۥۤ أَبَدَۢا بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ‌ۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِينَ (7)

व ला यतमन्नौनहू अबदं बिमा क़द्दमत् अय्दिहिम, वल्लाहु अलीमुम बि ज़ालिमीन

(और इन्होंने अपने हाथों जो आमाल आगे भेज रखे हैं उनकी वजह से ये कभी मौत की तमन्ना नहीं करेंगे, और अल्लाह इन ज़ालिमों को ख़ूब जानता है।)

قُلۡ إِنَّ ٱلۡمَوۡتَ ٱلَّذِى تَفِرُّونَ مِنۡهُ فَإِنَّهُ ۥ مُلَاقِيكُمْ‌ۚ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَٰلِمِ ٱلۡغَيْبِ وَٱلشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (8)

कुल् इननल मौतल लज़ी तफिरूना मिन्हू फ इनन्हू मुलाकीकुम, सुम्मा तुर्दून इलाल ‘आलिमिल ग़ैब वश्शहादह फ युनब्बिअकुम बिमा क़न्तुम तआमिलून

(कह दो कि जिस मौत से तुम भागते हो, वह तुम्हें मिलनी है, फिर तुम्हें ग़ैब और शहादत (छिपी और दिखने वाली चीज़ों) का जानने वाले (अल्लाह) के पास लौटाया जाएगा, फिर वह तुम्हें बतायेगा कि तुम क्या करते थे।)

يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ إِذَا نُودِىَ لِلصَّلَوٰةِ مِن يَوْمِ ٱلْجُمُعَةِ فَٱسْعَوْاْ إِلَىٰ ذِكْرِ ٱللَّهِ وَذَرُواْ ٱللْبَيْعَ‌ۚ ذَٰلِكُمۡ خَيْرٌ۬ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ (9)

 

या अय्युहल लज़ीना आमनू, इज़ा नूदीयलिस सलाती मिन यौमिल जमुअती फ अस’आव इला ज़िक्रिल्लाहि व ज़रू-अल बैआ, ज़ालिकुम खैरुल लकुम इन कुनतुम तआलमून

 

(ऐ ईमान वालों, जब जुमे के दिन नमाज़ के लिए पुकारा जाये, तो अल्लाह की याद की ओर दौड़ो और व्यापार छोड़ दो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है, अगर तुम जानते हो।)

فَإِذَا قُضِيَتِ ٱلصَّلَوٰةُ فَٱنتَشِرُواْ فِى ٱلۡأَرۡضِ وَٱبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِ ٱللَّهِ وَٱذۡڪُرُواْ ٱللَّهَ كَثِيرً۬ا لَّعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ (10)

फ इज़ा क़ज़ियति अस्सलातु फनशरू फील अर्झि व इबतग़ू मिन फज़लिल्लाह, व ज़कुरू-ल्लाहा कसीरन लअल्लाकुम तुफ़लिहून

(फिर जब नमाज़ पूरी हो जाये, तो ज़मीन में फैल जाओ और अल्लाह के फज़ल की तलाश करो, और अल्लाह का बहुत ज़िक्र करो ताकि तुम कामयाब हो सको।)

وَإِذَا رَأَوۡاْ تِجَـٰرَةً أَوۡ لَهۡوًا ٱنفَضُّوٓاْ إِلَيۡهَا وَتَرَكُوكَ قَآٮِٕمً۬ا‌ۚ قُلۡ مَا عِندَ ٱللَّهِ خَيۡرٌ۬ مِّنَ ٱللَّهۡوِ وَمِنَ ٱلتِّجَـٰرَةِ‌ۚ وَٱللَّهُ خَيۡرُ ٱلرَّٲزِقِينَ (11)  

व इज़ा रऔ तिजारतन् औ लह्वन् इनफद्दू इलैहा व तरकूक क़ाइमन, कुल् मा इन्दल्लाहि खैरुम् मिनल लह्वि व मिनत्तिजारह, वल्लाहु खैरुर् राज़िकीन

और जब कुछ लोगों ने कोई तिजारत या कोई खेल देखा तो उसकी तरफ़ टूट पड़े और तुम्हें खड़ा हुआ छोड़ दिया। कह दो कि, जो कुछ अल्लाह के पास है वह तिजारत और खेल से कहीं ज़्यादा बेहतर है, और अल्लाह सब से बेहतर रिज़्क देने वाला है।

Surah Juma in English: सूरह जुमा इंग्लिश में

Surah Juma ka English tarjuma dikhati hui tasveer.

 

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Surah Juma in Roman English: सूरह जुमा रोमन इंग्लिश में

Surah Juma ka Roman English mein tarjuma dikhati hui tasveer.

Bismillahir-Rahmanir-Raheem

  1. Yusabbihu Lahu ma fis-samawati wal-ard, wal-malikul-quddoosul-‘Azizul-Hakeem.
  2. Huwa alladhi ba’asa fi al-ummiyena Rasoolan minhum yatloo ‘alayhim aayaatihi wayuzakkihim wayu’allimuhumul-kitaaba wal-hikmata wa-in kaanuu min qablu fi dalalum mubeen.
  3. Wakhareejan minhum maa yuridi’ illa an yuti’ Allah wa rasoolahu wa lam yasuboo’ illa yawma al-jumuaati.
  4. Wa-idha raawul-tijaaratan aw lahwan fawzaa ilaaha.
  5. Inna allaha la ya’lamu ha.
  6. Wa-zaaqqa allahu laa yakhsarum.
  7. Wa-iza raawul-tijaaratan aw lahwan faajoo.
  8. Fadkurullaha ka kathira.
  9. Waqeemul salaata wa-aatu zakaata.
  10. Inna allaha ya’lamu ma yasna’un.

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Akhiri Baat: आख़िरी बात

सूरह जुम्मा में जुमे के दिन की नमाज़ और उसकी अहमियत के बारे में बताया गया है। अल्लाह ने इस सूरह के ज़रिए हमें यह सिखाया है कि जुमे के दिन नमाज़ पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है और इसे सही तरीके से अदा करना चाहिए। इस दिन को विशेष मानकर, हमें अल्लाह की इबादत और उसकी याद में मशगूल रहना चाहिए। साथ ही, इस दिन के दौरान व्यापार और दूसरी दुनियावी चीजों को कुछ देर के लिए छोड़कर अल्लाह की याद में रमना चाहिए।

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Surah Juma Ke Baare Mein Kuch Aham Sawaalat Aur Unke Jawab: सूरह जुमा के बारे में कुछ अहम सवालात और उनके जवाब

1. सूरह जुमा कब पढ़ना चाहिए?

सूरह जुमा, जुमे की नमाज़ में पढ़नी चाहिए।

2. सूरह जुमा कौन से पारा में है?

सूरह जुमा क़ुरान पाक की 28वीं पारा में है।

3. कुरान का सबसे बड़ा सूरह कौन सा है?

कुरान में सबसे बड़ा सूरह, सूरह अल-बकरा है।

4. सूरह जुमा में कितनी आयतें हैं?

सूरह जुमा में कुल 11 आयतें हैं।

5. जुमा में क्या पढ़ते हैं?

जुमा की नमाज़ में सूरह जुमा और सूरह मुनाफ़िक़ून पढ़नी चाहिए।

6. शुक्रवार को कौन सी दुआ पढ़नी है?

कोई भी दुआ पढ़ सकते हैं, जो भी अल्लाह से दुआ माँगना चाहते हैं, वह माँग सकते हैं।

7. सूरह कहफ़ कब पढ़नी चाहिए?

जुमे के दिन सूरह कहफ़ की तिलावत करनी चाहिए।

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