Jumma Ki Namaz Ki Fazilat, Rakat Aur Niyat | Jumma Mubarak Dua

जुम्मा की नमाज हर हफ्ता जुम्मा के दिन अदा की जाती है और ये इस्लाम में एक खास इबादत है। हर मुसलमान मर्द पर ये नमाज फ़र्ज़ है, जबके औरतों के लिए ये ज़रूरी नहीं। जुम्मा की नमाज में दो रकअत फर्ज नमाज के साथ खुतबा भी होता है, जो इस दिन को और भी खास बनता है।

Jumma Ki Namaz: जुम्मा की नमाज़

जुम्मा की नमाज़ इस्लामी तालीमात का एक अहम हिस्सा है, जो हर मुसलमान मर्द पर फ़र्ज़ है। ये नमाज़ हर जुम्मा को दोपहर के वक्त अदा की जाती है, और इससे पहले इमाम ख़ुतबा देता है जो हिदायत और नसीहत पर जरिया होता है। जुम्मा की नमाज़ की अहमियत रोज़ मर्रा की नमाज़ों से ज़्यादा है, क्योंकि इस दिन का खास रुतबा है। ये दिन मुसलमानों के लिए एक इज्तेमाई इबादत का मौका फराहम करता है, जहाँ वो एक दूसरे से मिलते हैं और दीन की बातें सीखते हैं।

Jumma Ki Namaz Ki Rakat: जुम्मा की नमाज़ की रकात

जुम्मा की नमाज़ में कुल 14 रकात नमाज़ होती है

जुम्मा की नमाज में कुल 14 रकात होती हैं:

  • 4 रकात सुन्नत (सुन्नत-ए-मुअक्कदा) जुम्मा से पहले
  • 2 रकात फर्ज जुम्मा की नमाज
  • 4 रकात सुन्नत (सुन्नत-ए-मुअक्कदा) फर्ज के बाद
  • 2 रकात सुन्नत
  • 2 रकात नफ्ल

जुम्मा की नमाज़ से पहले 4 रकअत सुन्नत पढ़ना मुस्तहब है। इस के बाद इमाम के पीछे 2 रकअत फ़र्ज़ नमाज अदा की जाती है। फ़र्ज़ के बाद 4 रकात सुन्नत और फिर 2 रकात सुन्नत पहनना होता है। कुछ उलमा कहते हैं कि फ़र्ज़ के बाद 4 रकअत सुन्नत पढ़ना चाहिए, जबके कुछ कहते हैं 2 रकअत काफ़ी हैं। इख्तिलाफ से बचने के लिए पहले 4 रकात सुन्नत, फिर 2 रकात सुन्नत, और उसके बाद 2 रकात नफिल नमाज पढ़नी चाहिए।

Jumma Ka Namaz Ka Samai: जुम्मा का नमाज़ का समय

जुमे की नमाज का वक्त जुहर के वक्त के बाद, ज्वल के खत्म होने के बाद शुरू होता है और असर की नमाज से पहले तक खत्म हो जाता है। जुम्मा की नमाज एक खास नमाज है जो सिर्फ जुम्मा के दिन अदा की जाती है और ये बा-जमात परही जाती है। इस वक्त को खास तौर पर मस्जिद में अज़ान के लिए जरूरी किया जाता है, और हर मुसलमान मर्द पर ये फर्ज है के इस वक्त पर जुम्मा की नमाज अदा करे।

Jumma Ki Namaz Ki Fazilat: जुम्मा की नमाज़ की फ़ज़ीलत

  • जुम्मा की नमाज हर मुसलमान मर्द पर फर्ज है, इसलिए जुम्मा के आने के बाद तिजारत हराम कर दी गई है।

  • आप फरमाते हैं: “जुम्मे की नमाज़ छोड़ने से बाज़ आजाओ, वरना अल्लाह उनके दिलों पर मोहर लगा देगा और वो गफ़िलों में से हो जायेंगे।” (रवायत सही मुस्लिम)

  • नबी करीम ﷺ ने फरमाया: “जुम्मा जमात के साथ हर मुसलमान पर हक़ और वाजिब है।” (सूरह अबू दाऊद की रिवायत)

  • जुम्मा के दिन एक खास वक्त होता है जब दुआ कुबूल होती है, जो असर से मगरिब शुरू होने तक का वक्त होता है।

  • इस दिन गुनाहों को बख्शा जा सकता है, मगर सिर्फ सग़ीरा गुनाह। अगर कबीरा गुनाह भी है, तो आप तौबा करें क्योंकि अल्लाह ताला बुहत मेहरबान और बार-बार तौबा कुबूल करने वाला है। अगर उसने हमें तौबा की तौफीक दी है, तो वो माफ कर देगा। अपने अल्लाह से कभी मायुस न होना, वो हर चीज़ पर कादिर है।

Jumma Ki Namaz Kis Kis Par Farz Hai: जुम्मा की नमाज़ किस किस पर फर्ज है

जुमे की नमाज़ हर मुसलमान मर्द पर फ़र्ज़ है, जो बली और अक़ील हो। यानि, जो मर्द शरीयत तोर पर जवान और अक़लमंद है, उस पर जुम्मा की नमाज लज़्मी है। इस नमाज का छोड़ना गुनाह है, और अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.) ने इस दिन को खास तोर पर इबादत के लिए मुकर्रर किया है। लेकिन औरतों, बीमार लोगों, सफ़र में रहने वालों और नबालि बच्चों पर जुम्मा की नमाज फ़र्ज़ नहीं है। जुम्मा का दिन एक इज्तेमाई इबादत का दिन है, जो मुसलमान मर्दों के लिए एक शानदार इबादत का मौका फराह्म करता है।

Jumma Ki Namaz Kis Par Farz Nahin Hai: जुम्मा की नमाज़ किस पर फर्ज नहीं हैगुलाम

जुमे की नमाज़ हर मुसलमान मर्द पर फ़र्ज़ है, लेकिन कुछ लोगों के लिए इसे पहनना फ़र्ज़ नहीं है। जुम्मा की नमाज उन लोगों पर फर्ज नहीं होती जो गुलाम हैं, यानी जो किसी और के कानून हिफाजत में हैं। इसी तरह, औरतों के लिए भी जुम्मा की नमाज फ़र्ज़ नहीं है, लेकिन अगर वो चाहें तो पढ़ सकती हैं। नबालिघ (जिन्हों ने बुलाओघ का उमर नहीं पोहांची) और वो लोग जो बीमार हैं या जिनहें मस्जिद जाने में मुश्किल होती है, उन पर भी जुम्मा की नमाज फ़र्ज़ नहीं होती।

Jumma Ke Din Ki Fazilat: जुम्मा के दिन की फ़ज़ीलत

जुम्मा का दिन तमाम दिनों से अफजल है तमाम दिन जिस पर सूरज तुलु होता है उन्मे से सबसे अफजल दिन जुम्मा है
सही मुस्लिम से रिवायत है की आप स अ व ने फरमाया जुम्मा के दिन ही अल्लाह पाक ने आदम अ स की टखलीक की यानि इंसानियत को पैदा किया जुम्मा का ही दिन था जब आप जन्नत मे दाखिल हुवे और जुम्मे की दिन ही जन्नत से निकाले गए
कयामत जिस दिन आएगा वो दिन भी जुम्मा होगा

Jumma Ki Namaz Ki Niyat: जुम्मा की नमाज़ की नियत

4 रकत नमाज़ सुन्नत

सबसे बुनियादी चीज ये है की नियत नियत दिल के इरादे का नाम है अगर आप जुम्मे की नमाज़ के पहले की सुन्नत पढ़ रहे है तो नियत दिल मे है उसके बाद अल्लाह हु अकबर करके पढे इसी तरह जुम्मे की नमाज़ के बाद की सुन्नत का नियत दिल मे करे फिर अल्लाह हु अकबर लेकिन अगर जबान से करना करना हो तो इस तरह करे नियत की मैंने 4 रकत नमाज़ सुन्नत कबले जुम्मा वास्ते अल्लाह ताल के मुह मेरा कब शरीफ की तरफ अल्लाह हु अकबर

2 रकात नमाज़ फर्ज़ जुम्मा की नियत

नियत की मैने 2 रकात नमाज़ फर्ज़ जुम्मा पढ़ने की वास्ते अल्लाह ताला के पीछे इस इमाम के मुंह मेरा काबा शरीफ की ओर अल्लाह हु अकबर उसके बाद 2 रकात नमाज़ सुन्नत और 2 रकात नमाज़ नाफिल अदा करेंगे

Alvida Jumma: अलविदा जुम्मा

इस्लाम में जुम्मा के दिन की अहमियत सभी दिनों से ज़्यादा है और रमज़ान के आख़िरी जुम्मे को अलविदा जुम्मा या विदा-ए-जुम्मा कहते हैं, लेकिन ऐसे अल्फाज़ बोलना सुन्नत या हदीस से साबित नहीं है। कुछ मुसलमान इस दिन नए-नए कपड़े पहनते हैं और अच्छा खाना घर में बनाते हैं। इस दिन मस्जिदों को सजाते हैं और इबादत करते हैं। इस दिन के बाद ईद की तैयारी जोर-शोर से बढ़ जाती है, जबकि मुसलमानों को चाहिए कि रमज़ान के आख़िरी अशरे में अल्लाह तआला को राज़ी करें और अल्लाह से बहुत सी दुआएं मांगें और अपने हर गुनाह की बख्शीश करवाएं।

Jumma Ke Din Kiye Jane Wale Ibadat: जुम्मा के दिन किए जाने वाले इबादत

सही बुखारी हदीस नंबर 883 से रिवायत है की नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, जो शख़्स जुमा के दिन ग़ुस्ल करे और ख़ूब अच्छी तरह से पाकी हासिल करे और तेल इस्तेमाल करे या घर में जो ख़ुशबू मुयस्सर हो इस्तेमाल करे फिर जुमा कि नमाज़ के लिये निकले और मस्जिद में पहुँच कर दो आदमियों के बीच न घुसे, फिर जितनी हो सके नफ़ल नमाज़ पढ़े और जब इमाम ख़ुतबा शुरू करे तो ख़ामोश सुनता रहे तो उसके इस जुमा से ले कर दूसरे जुमा तक सारे गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।

Jumma Ke Din Padhi Jane Wali Dua: जुम्मा के दिन पढ़ी जाने वाली दुआ

1. Durood Shareef:

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَعَلَىٰ آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَعَلَىٰ آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ

अल्लाहुम्मा सल्लि ‘अला मुहम्मदिं व ‘अला आली मुहम्मदिं कमा सल्लैत ‘अला इब्राहीमा व ‘अला आली इब्राहीमा इन्नका हमीदुम मजीद।

“ऐ अल्लाह! हज़रत मुहम्मद (ﷺ) और उनकी आल (परिवार) पर रहमत नाजिल फरमा, जैसे तूने हज़रत इब्राहीम (अ.स) और उनकी आल पर रहमत भेजी, बेशक तू तारीफ के काबिल और बड़ा अज़ीम है।”

2. Astaghfar:

 أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ رَبِّي مِنْ كُلِّ ذَنْبٍ وَأَتُوبُ إِلَيْهِ

अस्तग़फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली धंबिन व अतूबु इलैह।

“मैं अल्लाह से अपने तमाम गुनाहों की माफी मांगता हूँ और उसी की तरफ पलट कर तौबा करता हूँ।”

3. Jahannum Se Hifazat Ki Dua:

اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنَ النَّارِ

अल्लाहुम्मा अजिरनी मिनन नारी।

“ऐ अल्लाह! मुझे जहन्नम की आग से बचा ले।”

4. Maghfirat Ki Dua

رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الْأَبْرَارِ

रब्बना इग़फिर लना धुनूबना व कफ्फिर ‘अन्ना सय्यिआतिना व तवफ्फना मा’ल अब्रार।

“ऐ हमारे रब! हमारे गुनाहों को माफ फरमा, हमारे बुरे आमाल को मिटा दे, और हमें नेक लोगों के साथ मौत दे।”

5. Surah Al-Kahf Ki Tilawat

जुम्मा के दिन सूरह अल कहफ पढ़ना भी मुस्तहब .हजरत मोहम्मद स अ स ने फरमाया की जो शख्स जुम्मा के दिन सूरह अल कहफ

Jumma ke din Surah Al-Kahf padhna bhi mustahab hai. Hazrat Muhammad (ﷺ) ne farmaya ke jo shakhs Jumma ke din Surah Al-Kahf ki tilawat karega, Allah uske liye noor ata farmaega jo agle Jumma tak rahega.

इन दुवाओ को जुम्मा के दिन की फजीलत और बरकत को हासिल करने के लिए पढ़ना चाहिए

Jumma Mubarak Quotes

Jumma Mubarak!
Aaj ka din rehmaton ka hai,
Dil se dua karo, Allah qubool karega,
Gunah maaf honge, fazeelat ka din hai,
Har waqt apne Rab ko yaad rakho.”

“जुम्मा मुबारक!
आज का दिन रहमतों का है,
दिल से दुआ करो, अल्लाह कबूल करेगा,
गुनाह माफ होंगे, फज़ीलत का दिन है,
हर वक्त अपने रब को याद रखो।”

“Jumma ka din hai barkat ka,
Ibadat aur duaon ka.
Apni zindagi ko sukoon do,
Allah ke raaste par chalo, Jumma Mubarak!”

“जुम्मा का दिन है बरकत का,
इबादत और दुआओं का।
अपनी ज़िन्दगी को सुकून दो,
अल्लाह के रास्ते पर चलो, जुम्मा मुबारक!”

“Jumma Mubarak!
Allah ki rehmat tumhare har qadam par ho,
Is din dua qubool hoti hai,
Sirf yaqeen aur dua ki zaroorat hai.”

“जुम्मा मुबारक!
अल्लाह की रहमत तुम्हारे हर कदम पर हो,
इस दिन दुआ कबूल होती है,
सिर्फ यकीन और दुआ की ज़रूरत है।”

“Jumma ka din hai khair aur barkat ka,
Dua karo, har mushkil hal ho,
Rab ki raza se dil ko sukoon mile,
Jumma Mubarak ho tum sab ko.”

“जुम्मा का दिन है खैर और बरकत का,
दुआ करो, हर मुश्किल हल हो,
रब की रज़ा से दिल को सुकून मिले,
जुम्मा मुबारक हो तुम सब को।”

“Jumma Mubarak!
Zindagi mein khushiyan ho,
Allah ka fazl aur karam sada tumhare saath ho,
Aaj ka din dua aur ibadat mein guzaro.

“जुम्मा मुबारक!
ज़िन्दगी में खुशियाँ हो,
अल्लाह का फ़ज़ल और करम सदा तुम्हारे साथ हो,
आज का दिन दुआ और इबादत में गुज़ारो।”

आखिरी बात

जुम्मा की नमाज जुम्मा की नमाज हर मुसलमान के लिए एक बेहतर मौका है अपनी इबादत को और बेहतर बनाने का। इस दिन की नमाज़ और इबादत का फ़ज़ाइल बुहत ज़्यादा है। हर मुसलमान मर्द पर ये नमाज फ़र्ज़ है, और इस दिन का खुतबा सुनना और दुआ करना बहुत बरकत वाला होता है। जुम्मे की नमाज़ एक इज़्तेमाई इबादत है जो मुसलमानों को एक जगा इकत्था कर के दीन और इबादत में और मज़ीद मज़बूती देता है

Jumma Ki Namaz Ke Bare Mein Aham Sawalat: जुम्मा की नमाज़ के बारे में अहम सवालात

1. जुम्मा की नमाज कब पढ़नी चाहिए?
जुम्मे की नमाज का वक्त, ज़ोहर की नमाज का वक्त होता है, यानि दोपहर का वक्त। ये नमाज़ जुम्मा के दिन ज़ोहर के वक़्त के बाद आती है, लेकिन इस का ख़ुसूसी वक़्त होता है जो मस्जिद में अज़ान के ज़रिये मालूम होता है।

2. जुम्मा की नमाज कितनी रकात होती है?
जुम्मा की नमाज़ में दो रकअत फ़र्ज़ होती हैं जो ख़तीब के ख़ुत्बे के बाद ख़त्म होती हैं। इस के इलावा 4 रकात सुन्नत नमाज खुतबा से पहले और 4 रकात सुन्नत खुतबा के बाद पढ़ना मुस्तहब है।

3. क्या जुमे की नमाज़ ज़ोहर की जगह पढ़ना चाहिए?
हां, जुम्मा की नमाज ज़ोहर की जगह पर जाती है। जुम्मा के दिन ज़ोहर की नमाज़ नहीं होती, हमें वक़्त मिलता है जुम्मा की 2 रकअत फ़र्ज़ पर जाती है जो ज़ोहर की नमाज़ का बदल जाती है।

4. जुम्मा की नमाज का अहमियत क्या है?
जुम्मा की नमाज़ का इस्लाम में बुहत ज़्यादा अहमियत है। ये एक फर्ज नमाज है जो सिर्फ जुम्मा के दिन परही जाती है। जुम्मा का दिन इस्लामी तकवीम में एक ख़ुसूसी मक़ाम रखा है और इस दिन के इबादत का ज़्यादा सवाब होता है।

5. जुम्मे की नमाज का खुतबा किस वक्त होता है?
जुम्मा का खुतबा नमाज से पहले दिया जाता है। इमाम या खतीब मस्जिद में जुम्मा के वक्त अज़ान के बाद खुतबा देता है। खुतबा सुन्ना फर्ज है और इस दौरन चुप रहना जरूरी है।

6. क्या जुमे की नमाज़ हर शख़्स पर फ़र्ज़ है?
जुमे की नमाज़ हर मुस्लिम मर्द पर फ़र्ज़ है जो बली और अक़ील है। औरत और बीमार लोगों पर ये नमाज फ़र्ज़ नहीं होती, मगर वो इसे पढ़ सकता है अगर मस्जिद में जाना चाहिए।

7. जुम्मा की नमाज कहां पढ़नी चाहिए?
जुम्मा की नमाज जमाअत के साथ मस्जिद में पढ़ना चाहिए। जुम्मा की नमाज़ के लिए जमाअत ज़रूरी है, इसके लिए इसे अकेला पढ़ना नहीं चाहिए। मस्जिद में जमाअत के साथ पढ़ना अफ़ज़ल होता है।

8. जुम्मा की नमाज की नियत कैसी है?
जुम्मा की नमाज की नियत ये होती है: “नीयत करता हूं 2 रकअत फर्ज नमाज जुम्मा की, अल्लाह के लिए, मुंह मक्का की तरफ, इस इमाम के पीछे।” नियत दिल में होती है और ज़ुबान से कहना ज़रूरी नहीं।

9. जुम्मा की नमाज में सूरत का तिलावत करना चाहिए?
जुम्मा की नमाज में कोई खास सूरत फर्ज नहीं, लेकिन सूरह अल-काहफ का तिलावत जुम्मा के दिन मुस्तहब माना जाता है। नमाज़ में हर सूरत जो आपको याद हो, पढ़ सकते हैं लेकिन ज़्यादा सवाब के लिए सूरह अल-काफ़ पढ़ना चाहिए।

10. जुम्मा का दिन किसके लिए खास है?
जुम्मा का दिन इस्लाम में बहुत खास है क्यों इस दिन को “सैय्यद-उल-अय्याम” यानि हफ्ता के सबसे अफजल दिन कहा गया है। इस दिन अल्लाह तआला का ख़ुसूसी फ़ज़ल होता है और इबादत का ज़्यादा सवाब होता है, इस लिए इस दिन को ख़ास इबादत के लिए रखा जाता है।

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