वुजू करना हर मुसलमान के लिए नमाज़ से पहले फर्ज़ है, क्योंकि यह इबादत के लिए पाकीज़गी का पहला कदम है। वुजू से न सिर्फ़ बदन की सफाई होती है बल्कि रूहानी पाकीज़गी भी हासिल होती है। यह एक अहम अमल है जिस पर क़ुरआन और हदीस में ज़ोर दिया गया है। वुजू का सही तरीका समझना और उस पर अमल करना हर मुसलमान का फर्ज़ है, ताकि इबादत मकबूल हो। इसमें हाथों, मुँह, और पैरों को धोना और साफ-सफाई का खयाल रखना शामिल है। आइए, वुजू करने का सही तरीका सीखें और अपनी इबादत को मकबूल बनाएं।
Wazu Karne Ki Ahmiyat: वुजू करने की अहमियत
- वुजू करने से छोटे-छोटे गुनाह माफ हो जाते हैं। जैसे पानी के कतरे गिरते हैं, वैसे ही गुनाह भी धूल जाते हैं।
- वुजू के बिना इबादत मकबूल नहीं होती, इसलिए हर इबादत से पहले, चाहे वह नमाज़ पढ़ना हो, कुरआन की तिलावत हो, इल्म सीखना हो या पढ़ाना हो, वुजू करना बहुत ज़रूरी है।
- नमाज़ से पहले वुजू करना फर्ज़ है, लिहाज़ा बिना वुजू के नमाज़ नहीं होती।
- वुजू करने से रूहानी पाकीज़गी का एहसास होता है।
- जिसने अच्छी तरह वुजू किया और फिर वुजू के बाद की दुआ पढ़ी, उसके लिए जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं।
- वुजू करने वाले के चेहरे और हाथों-पैरों से नूर का इज़हार होता है, जो क़यामत के दिन पहचान बनेगा।
- वुजू शैतान के वस्वसे और बुरे असरात से हिफाज़त करता है।
Wazu Karne Ka Tarika: वुजू करने की तरीका
- नीयत करें:
वुजू शुरू करने से पहले नीयत करें कि आप इबादत के लिए पाक होंगे। - बिस्मिल्लाह पढ़ें:
वुजू शुरू करते वक्त “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” पढ़ें। - हाथों को धोना:
दोनों हाथ कलाई तक तीन बार धोएं और अच्छे से साफ करें। - मुँह धोना:
मुँह में पानी लेकर अच्छे से कुल्ला करें और तीन बार मुँह धोएं। - नाक में पानी डालना:
नाक में पानी डालें और अच्छे से साफ करें। यह अमल भी तीन बार करें। - चेहरा धोना:
पेशानी से लेकर ठोड़ी तक और एक कान से दूसरे कान तक पूरा चेहरा तीन बार धोएं। - हाथ धोना:
दोनों हाथ कोहनी तक तीन बार धोएं। पहले दायां हाथ और फिर बायां। - मसह करना:
गीले हाथ अपने सिर पर फिराएं और एक बार मसह करें। - कान का मसह:
हाथ के गीलेपन से दोनों कानों का मसह करें, अंदर और बाहर दोनों। - पैर धोना:
दोनों पैर का पंजा और उंगलियां अच्छे से धोएं। पहले दायां पैर और फिर बायां। यह अमल तीन बार करें।
नोट:
वुजू के तमाम अरकान को तहक़ीक़ के साथ करें और पाकीज़गी का ख़याल रखें।
वुजू के बाद की दुआ पढ़ें:
“अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाह वाहदहु ला शरीक लह, व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह।”
अल्लाह तआला हम सभी की इबादत को कुबूल करे। आमीन।
Wazu Karne Ki Baad Ki Dua: वज़ू करने की बाद की दुआ
اَشْھَدُ اَنْ لَّآ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَاشَرِیْکَ لَہٗ وَاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرَسُوْلُہٗ
अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीक लहु वअशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुह।
तर्जुमा: ”मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई (सच्चा) माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके बंदे और उसके रसूल हैं।”
أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلٰهَ إِلَّا اللَّهِ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ، اللّهُمَّ اجْعَلْنِي مِنَ التَّوَّابِينَ وَاجْعَلْنِي مِنَ الْمُتَطَهِّرِينَ
अशहदु-अंला इला-ह इल्लल्लाह वह्दहू ला शरीक-लह, व अन्न मुहम्मद अब्दहू व-रसूलुह, मिनत-तव्वाबी-न व-मिनल-मुत-तह्हेरीन”
तर्जुमा: (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूदे-बर-हक़ नहीं वो अकेला है। उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके बन्दे और रसूल हैं। ऐ अल्लाह! मुझे तौबा करने वालों और पाक रहने वालों में से बना दे।”
سُبْحٰنَکَ اللّٰھُمَّ وَبِحَمْدِکَ، اَشْھَدُ اَنْ لَّآ اِلٰہَ اِلَّآ اَنْتَ، اَسْتَغْفِرُکَ وَاَتُوْبُ اِلَیْکَ
“सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दिका, अश्हदु अन्ना लाअ इलाहा इल्ला अन्त, अस्तग़फ़िरुका व अतूबु इलेका”
तर्जुमा: ”पाक है तू ऐ अल्लाह! अपनी तहरीफों के साथ, मैं गवाही देता हूँ कि तुझसे सिवा कोई माबूद नहीं, मैं तुझसे माफी मांगता हूँ और तेरे पास तौबा करता हूँ।’’
वुज़ू करना हर मुसलमान के लिए एक ज़रूरी और इबादती अमल है जो न सिर्फ़ बदन की सफाई के लिए, बल्कि रूहानी पाकीज़गी के लिए भी ज़रूरी है। वुज़ू करने से न सिर्फ़ गुनाह माफ़ होते हैं, बल्कि इंसान को अल्लाह की रज़ा और बरकत भी मिलती है। वुज़ू से इबादत क़बूल होती है और इसके बाद की दुआ से अल्लाह की रहमत मिलती है। हर मुसलमान को वुज़ू का सही तरीका समझना चाहिए ताकि उनकी इबादत सही हो और उन्हें अल्लाह की हिदायत मिल सके। वुज़ू का अमल हमारे ज़िन्दगी में बरकत लाता है।
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Wuzu Se Jude Sawal aur Jawab: वुज़ू से जुड़े सवाल और जवाब
1. वुज़ू क्या है?
वुज़ू एक इबादत है जो नमाज़ से पहले किया जाता है। इस से बदन की सफाई होती है और रूहानी पाकीज़गी भी मिलती है। वुज़ू करना नमाजों और दूसरी इबादतों के लिए फर्ज़ है।
2. वुज़ू कैसे किया जाता है?
वुज़ू में हाथ, मुँह, कान, और पैर धोने होते हैं। सबसे पहले नीयत करनी होती है, फिर बिस्मिल्लाह पढ़ कर वुज़ू के अरकान को ठीक से अंजाम देना होता है, जैसे मुँह, हाथ, और पैर धोना।
3. वुज़ू के बाद कौन सी दुआ पढ़नी चाहिए?
वुज़ू के बाद “अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाह वाहदाहू ला शरीक लहू व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह” पढ़नी चाहिए। इससे अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है।
4. अगर वुज़ू में कुछ गलत हो जाए तो क्या करें?
अगर वुज़ू में कोई गलती हो जाए तो फिर से वुज़ू करना चाहिए। अगर वुज़ू के अरकान की पाबंदी न हो, तो नमाज़ क़ाबिल-ए-क़ुबूल नहीं होती। हमें अच्छी तरह वुज़ू करना चाहिए ताकि हमारे नमाज़ अच्छे से हो सके।
5. वुज़ू की अहमियत क्या है?
वुज़ू से बदन की सफाई होती है और छोटे छोटे गुनाह माफ़ हो जाते हैं। और वुज़ू के बाद की दुआ पढ़ लई जाए तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते है । इस से रूहानी पाकीज़गी मिलती है और इबादत में बरकत होती है।
6. वुज़ू करते वक्त क्या चीज़ें मन में रखनी चाहिए?
वुज़ू करते वक्त नीयत साफ और दिल से हो, ये सोचके करने चाहिए के हम अपने गुनाह धोने जा रहे हो। और अल्लाह की याद रखनी चाहिए। वुज़ू में शौक और पाकीज़गी का ख्याल रखना जरूरी है।
7. वुज़ू करने से पहले क्या पढ़ना चाहिए?
वुज़ू करने से पहले अल्लाह का नाम लेना चाहिए यानि “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” पढ़ना चाहिए, ताकि वुज़ू का अमल अल्लाह के नाम से शुरू हो।
8. वुज़ू करने से क्या फायदा होता है?
वुज़ू करने से न सिर्फ़ बदन ही नही साफ़ होता है, बल्कि रूहानी पाकीज़गी मिलती है, जो इबादत को क़ुबूल करने में मददगार होती है। वुज़ू से गुनाह भी माफ़ हो जाते हैं।
9. क्या वुज़ू के बगैर नमाज़ हो सकती है?
नहीं, वुज़ू के बगैर नमाज़ नहीं हो सकती। वुज़ू नमाज़ का एक फर्ज़ है, और उसके बगैर नमाज़ अदा नहीं होती।
10. वुज़ू में किस चीज़ का ख्याल रखना चाहिए?
वुज़ू करते वक्त पाकीज़गी का ख्याल रखना चाहिए। हर अमल को ठीक से अंजाम देना चाहिए, जैसे हाथ, पैर और मुँह को धोना। कोई भी जगह खुस्क नही रहना चाहिए।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.