Sana Surah Arabic, English, Hindi aur Urdu Mein - Translation ke Saath"

Sana Surah: Arabic, English, Hindi aur Urdu Mein Tarjuma ke Saath

सुरह सना, जो के एक दुआ है, नमाज़ के आग़ाज़ में पढ़ा जाता है। इसका मकसद अल्लाह की तस्बीह और हम्द बयां करना है, और इसमें अल्लाह की अज़मत और वहदानियत का इज़हार होता है। “सुब्हानक अल्लाहुम्मा” के अल्फ़ाज़ से शुरू होती है, जो अल्लाह की पाकिज़गी और उसकी हम्द को वाज़ेह करती है। इस दुआ में अल्लाह के बारे में कहा जाता है के उसका नाम बरकत वाला, शान बुलंद, और सिर्फ़ वही इबादत के लायक़ है। सुरह सना हमें नमाज़ में अल्लाह के सामने अपनी बंदगी का इज़हार और उसकी तारीफ करने का तरीक़ा सिखाती है। सूरह सना नमाज़ के शुरू में आल्हुअकबर बोलकर सीने में हाथ बांधके पढ़ी जाती है।उसके बाद सूरह फातिहा पढ़ी जाती हैं ये सूरह पढ़ना सन्नाते मोक्कडा है।

Surah Sana Ke Bare Mein Hadishein: सूरह सना के बारे में हदीशें 

 तिरमीजी की हदीस नुमबेर  243 से रिवायत है कि) नबी अकरम (सल्ल०) जब नमाज़ शुरू करते तो ( سبحانك اللهم وبحمدك    اسمك وتعالى  جدك ولا  إلاه غيرك ) कहते।इमाम तिरमिज़ी कहते हैं : 1- आयशा (रज़ि०) की हदीस सिर्फ़ उसी सनद से जानते हैं  2- हारिसा के हाफ़िज़े के ताल्लुक़ से कलाम  किया गया है।

अबू दाऊद हदीस नंबर 775 से रिवायत है कि हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०)   बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ जब रात को क़ियाम फ़रमाते तो अल्लाहु-अकबर कहते फिर इस तरह कहते : ( سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلَا إِلَهَ غَيْرَكَ)  पाक है  तू ऐ अल्लाह! अपनी हम्द के साथ तेरा नाम बड़ी बरकत वाला है। तेरी शान बहुत बुलन्द है और  तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। फिर कहते : (لا إله إلا الله) तीन बार,  अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं  फिर कहते (لا إله إلا الله) तीन बार,  अल्लाह सब से बड़ा और  बहुत बड़ा है  ( أَعُوذُ بِاللَّهِ السَّمِيعِ الْعَلِيمِ مِنْ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ مِنْ هَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَنَفْثِهِ )  मैं अल्लाह सुनने वाले जानने वाले की पनाह चाहता हूँ कि शैतान मरदूद (रद्द किया हुआ) मुझ पर कोई जुनून का असर डाले या मुझे तकब्बुर पर आमादा करे ग़लत शेर और शाइरी की तरफ़ ले आए।  उस के बाद आप क़िरअत फ़रमाते। इमाम अबू-दाऊद (रह०) ने बयान  किया कि इस हदीस के बारे में अहले-हदीस कहते हैं कि ये अली-बिन-अली   हसन की सनद से मुरसल है और  ये वहम जाफ़र को हुआ है।

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Surah Sana In Arabic: सूरह साना इन अरबी 

سُبْحَانَكَ اللّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلَا إِلٰهَ غَيْرُكَ

Surah Sana In Hindi: सुराह सना हिंदी में 

सुब्हानक अल्लाहुम्मा वा बिहम्दिका वा तबारक अस्मुका वा तआला जद्दुका वा ला इलाहा घैरुका 

Surah Sana Tarjuma: सूरह सना तर्जुमा 

पाक है  तू ऐ अल्लाह! अपनी हम्द के साथ तेरा नाम बड़ी बरकत वाला है। तेरी शान बहुत बुलन्द है और  तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।

Surah Sana in English: सूरह सना इंग्लिश में 

subḥānaka l-lāhumma wa-bi-ḥamdika wa-tabāraka smuka wa-ta‘ālā jaddūka wa-lā ‘ilāha ghayruka 

Surah Sana Meaning in English: सूरह सना तारजुमा इन इंग्लिश 

You are pure, O Allah! With Your praise, Your name is full of blessings. Your majesty is very exalted, and there is no deity besides You.

Conclusion:

सुरह सना एक अहम दुआ है जो नमाज़ के आग़ाज़ में पढ़ी जाती है, और ये हमें अल्लाह की तस्बीह और हम्द करने का तरीक़ा सिखाती है। इस दुआ के ज़रिए हम अपनी बंदगी का इज़हार करते हैं और अल्लाह की अज़मत, वहदानियत, और उसकी बरकत को तस्लीम करते हैं। ये हमें याद दिलाती है के सिर्फ़ अल्लाह ही इबादत के लायक़ है और उसकी शान बुलंद है। सुरह सना का पढ़ना नमाज़ का एक ज़रूरी हिस्सा है, और इस से अल्लाह के सामने अपने अक़ली और रूहानी ताल्लुक़ को मज़ीद मज़बूत बनाया जाता है।

Kuch Aham Surahain Quran Se
Surah Yaseen Surah Mulk Surah Baqarah Last 2 Ayat
Surah Fatiha Surah Falaq Surah Al Nasrah
Surah Fajr Surah Tariq Tabbat Yada Surah

 

Rozana Zindagi Mein Kuch Aham Duaein
Dua E Qunoot Tahajjud Ki Dua Barish Ki Dua
Rabbana Atina Istikhara Ki Dua Aqiqah Ki Dua
Nazar Ki Dua Doodh Peene Ki Dua Chand Dekhne Ki Dua

 

Sana Surah Ke Bare Mein Aham Sawalat: सना सूरह के बारे में अहम सवालात 

1. सना सूरह क्या है और इसका क्या मकसद है?
सना सूरह का मकसद अल्लाह की हम्द और तारीफ बयान करना है। यह सूरह हमें नमाज़ में अल्लाह की अज़मत और बरकतों का शुक्र अदा करने का तरीका सिखाती है। यह सूरह का इस्तेमाल सिर्फ अल्लाह की रज़ा और इबादत के लिए है जो ईमान को मज़ीद मज़बूत बनाता है।

2. सना सूरह का तालीमी मकाम क्या है?
सना सूरह नमाज़ का एक अहम हिस्सा है जो अल्लाह के सामने हमेशा शुक्र गुज़ार रहने का पैगाम देती है। यह सूरह हमें यह भी याद दिलाती है कि अल्लाह तआ’ला सब कुछ देखने वाला और सुनने वाला है, और हमारी इबादत उसके सामने काबिल-ए-कुबूल है।

3. सना सूरह नमाज़ में कब और कैसे पढ़ी जाती है?
सना सूरह नमाज़ में सूरह अल-फातिहा से पहले पढ़ी जाती है। यह कयाम में अल्लाह की तारीफ के तौर पर पढ़ी जाती है। इसमें अल्लाह की बड़ाई और वहदनियत को बयान किया जाता है जो नमाज़ की अहम इबादत का हिस्सा है।

4. सना सूरह की फज़ीलत क्या है?
सना सूरह की फज़ीलत यह है कि इसमें अल्लाह की अज़मत और तारीफ का ज़िक्र है जो इंसान का दिल और ईमान मज़ीद मज़बूत बनाता है। यह सूरह हमें याद दिलाती है कि अल्लाह की इबादत और उसके शुक्र गुज़ार होने में सुकून और बरकत है।

5. क्या हर नमाज़ में सना सूरह पढ़ना ज़रूरी है?
जी हां, सना सूरह नमाज़ के कयाम में पढ़ी जाती है लेकिन वाजिब नहीं है। यह सुन्नत है जो अल्लाह के शुक्र और तारीफ का इज़हार करती है। इसका पढ़ना सवाब का सबब है लेकिन अगर छोड़ दी जाए तो नमाज़ में कोई कमी नहीं आती।

6. सना सूरह के अल्फाज़ और तर्जुमा क्या है?
सना सूरह के अल्फाज़ हैं “सुब्हानका अल्लाहुमा व बिहमदिका व तबारकस्मुका व तआ’ला जद्दुका व ला इलाहा ग़ैरुक,” जिसका तर्जुमा है, “ऐ अल्लाह, तू पाक है, तेरे लिए हम्द है, तेरा नाम मुबारक है, तेरी शान बुलंद है और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।”

7. सना सूरह क्यों पढ़ी जाती है?
सना सूरह अल्लाह की तारीफ और अज़मत का इज़हार करने के लिए पढ़ी जाती है। यह सूरह अल्लाह के शुक्र और उसकी बरकतों का इज़हार है, जो इंसान को अल्लाह से क़रीब करती है और ईमान को मज़ीद मज़बूत बनाती है।

8. सना सूरह और तस्बीह का तअल्लुक क्या है?
सना सूरह और तस्बीह का तअल्लुक यह है कि दोनों में अल्लाह की अज़मत और तारीफ का इज़हार होता है। सना सूरह में अल्लाह को पाक और तआ’ला क़रार दिया जाता है जो तस्बीह की शकल में अल्लाह के नामों का ज़िक्र है।

9. सना सूरह में कौन से अहम लफ्ज़ हैं जो अल्लाह की तारीफ बयान करते हैं?
सना सूरह में “सुब्हानका अल्लाहुमा व बिहमदिका” के अल्फाज़ अल्लाह की तारीफ का इज़हार करते हैं, जिसमें उसकी पाकीज़गी और अज़मत का बयान है। यह अल्फाज़ नमाज़ में अल्लाह की शान और उसके अज़ीम ओ शान मकाम को याद दिलाते हैं।

10. सना सूरह को नमाज़ में पढ़ने से क्या फायदा होता है?
नमाज़ में सना सूरह पढ़ने से दिल में अल्लाह का शुक्र और इज़हार होता है, जो इंसान को उसके क़रीब लाता है। इससे ईमान मज़बूत होता है और अल्लाह की बरकत और रहम को हासिल करने में मदद मिलती है। यह सूरह इंसान को सुकून और इत्मीनान बख्श देती है।

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