Sehri Ki Niyat: Roza Rakhne Ki Dua Aur Tareeqa

Sehri Ki Niyet: सेहरी की नियत:

रमजान जो की इस्लामी महीने में सबसे अहम और फ़ज़ीलत के एतबार से बहुत बरकतों वाला है। 

रमजान के रोज़े हर एक मुसलमान पर फर्ज होता है, लिहाजा हर एक मुसलमान को चाहिए के वो रमजान के रोज़े का बिलकू भी तर्क न करे, और ये है की रमजान में की जानी वाले हर एक अच्छे अमल का अजर बरा आम बाकी महीनों के मुकाबले। तो इसी तराज एक मसला आता है की रोज़े रखने के सेहरी की नियत का तरीका क्या है। तो हमें चाहिए के जो हमारे नबी पाक सल्लेलाहू आलेही वस्सल्लम का तरीका था उसी तरीके पर अमल करे। 

Sehri Ki Niyet Ki Dua: सेहरी की नियत की दुआ:

सुन्नत से हमें कोई भी ऐसी खास दुआ नियत नहीँ मिलती जो तरीका हमें बताया गया है की हम सिर्फ नियत करे जैसे हमरे नबी पाक सल्लेलाहू आलेही वस्सल्लम किया करते है। और ये है सेहरी कि नियत जुबान से बोलना जरूरी नहीँ होती दिलसे नियत करना काफी होती है, हमारे नबी पाक सल्लेलाहू आलेही वसल्लम दिलसे नियत करते है, और है की नियत तभी हो जाती है जब अप सेहरी के लिए उठते है क्यूंकी हम क्यूँ उठ रहे जाहीर है , की हम रोजा रखने के लिए उठ रहे है तो बस यही नियत हो जाती थी। 

Sehri Roza Rakhne Ki Dua:  सेहरी रोज़ा रखने की दुआ:

सेहरी की नियत की कोई भी  दुआ नहीँ है, लिहिजा सिर्फ दिल से नियत करे, वैसे जब भी हम सेहरी के लिए उठते है तो इसीलिए उठते है की रोजा रखे तो जब हम उठेते है तो वो एक तरह से नियत हो जाती है । लेकिन ये अहम है की सेहरी के बाद दुआ बहुत कबुल होती है। तो हमे चाहिए के हम अल्लाह से दुआ करे। बहुत सी दुआ मिलती है क़ुरानों सुन्नत से वो दुआ करे,या जो भी आपको दुआ माँगनी है वो दुआ करे। कसरत से आप सल्लेलाहू आलेही वसल्लम पर दरूद भेजे।

Dua Jo Sunnato Quran Se Hai : दुआ जो सुन्नतो कुरान से है :

 1. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जो शख्स एक दिन में सौ मर्तबा कहे: उसके गुनाह समुंदर की झाग के बराबर भी हों तो माफ हो जाते हैं।”

    سُبْحَانَ اللّٰہِ وَبِحَمْدِہٖ

पाक है अल्लाह अपनी खूबियों समेत। 

2. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “अगर मैं ये (कलमात) कहूं, तो मुझे ये अमल उन तमाम चीज़ों से ज़्यादा महबूब है जिन पर सूरज निकलता है। (ये कलमात कहना सारी दुनिया की नेमतों से ज़्यादा महबूब है)।”

سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُلِلّٰہِ، وَلَآ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ، وَاللّٰہُ اَکْبَرُ

“अल्लाह पाक है और सब तारीफ अल्लाह ही के लिए है, और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, और अल्लाह सबसे बड़ा है।”

3. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जो शख्स दस बार ये दुआ पढ़े, वो उस शख्स की तरह होगा जिसने औलाद-ए-इस्माईल अलैहिस्सलाम में से चार ग़ुलाम आज़ाद किए। 

لَآ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَاشَرِیْکَ لَہٗ، لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ

**लाआ इलाहा इल्लल्लाहु वाहदहु लाशरीक लहू, लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुआ अला कुल्लि शैइन् क़दीर।**

“अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वो अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत है और उसी के लिए सब तारीफ है, और वो हर चीज़ पर कुदरत रखता है।”

4. अल्लाहुम्मा आफिनी फी बदनी, अल्लाहुम्मा आफिनी फी सम्अी, अल्लाहुम्मा आफिनी फी बसरी, ला इलाहा इल्ला अंता, अल्लाहुम्मा इन्नी औज़ुबिका मिनल कुफ़्रि वल फ़क़्र, अल्लाहुम्मा इन्नी औज़ुबिका मिन अज़ाबिल क़ब्र, ला इलाहा इल्ला अंता**

اَللّٰھُمَّ عَافِنِیْ فِیْ بَدَنِیْ، اَللّٰھُمَّ عَافِنِیْ فِیْ سَمْعِیْ، اَللّٰھُمَّ عَافِنِیْ فِیْ بَصَرِیْ، لَآ اِلٰہَ اِلَّآ اَنْتَ، اَللّٰھُمَّ اِنِّیْٓ اَعُوْذُبِکَ مِنَ الْکُفْرِ وَالْفَقْرِ اَللّٰھُمَّ اِنِّیْٓ اَعُوْذُبِکَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ، لَآ اِلٰہَ اِلَّآ اَنْتَ

“ऐ अल्लाह! मुझे मेरे बदन में आफियत दे। ऐ अल्लाह! मुझे मेरे कानों में आफियत दे। ऐ अल्लाह! मुझे मेरी आँखों में आफियत दे, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। ऐ अल्लाह! यकीनन मैं कुफ्र और गरीबी से तेरी पनाह में आता हूँ, और ऐ अल्लाह! यकीनन मैं अज़ाब-ए-क़ब्र से तेरी पनाह में आता हूँ, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।”

5. रब्बना आतीना फ़िद-दुनिया हसनाह वाफिल-आख़िरती हसनाह व क़िना अज़ाब अन-नार

رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ

   “हमारे रब! हमें इस दुनिया में अच्छा और आख़िरत में भी अच्छा दें और हमें आग के अज़ाब से बचा। इस दुआ को जितनी बार पढ़ना चाहे पढ़ सकते है। 

6. रब्बी ज़िद्नी ‘इल्मा

رَبِّ زِدْنِي عِلْم

ए मेरे रब हमें इल्म अता फरमा

उपर कुछ दुआएं दिए गए है जो की सुन्नतों कुरान से साबित  है तो इन दुआओं को सेहरी में पर सकते है, सिर्फ सेहरी में ही कभी भी पर सकते है नमाजों के बाद, सुबहो साम भी पर सकते है। और अगर ये दुआएं याद न हो जो भी दुआ याद हो उसे पढ़ सकते है । तसबीह पढ़ सकते है। कसरत से आप सल्लेलाहू आलेही वसल्लम पर दरूद भेज सकते है। 

Conclusion: 

रमजान के महीने में रोजा रखना हर मुसलमान पर फर्ज है और इसमें हर एक अमल का अज्र बेशुमार बढ़ जाता है। सेहरी की नियत के लिए कोई खास दुआ सुन्नत से साबित नहीं है। नियत का मकसद यह है कि दिल से रोजा रखने का इरादा किया जाए, जो सेहरी के लिए उठते ही हो जाता है। जरूरी नहीं कि इसे जुबान से कहा जाए। सेहरी के बाद दुआएं कबूल होती हैं, इसलिए अल्लाह से अपने लिए दुआ करें और सुन्नत में दी गई दुआओं को पढ़ सकते हैं। कसरत से अल्लाह की तसबीह और दरूद पढ़ना फज़ीलत वाला अमल है, जिसे हम हर वक्त कर सकते हैं।l

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Sehri Ke Baare Mein Ahem Sawalat: सहरी के बारे में अहम सवालात

1. सहरी की नियत क्या होती है?

सहरी की नियत वो इरादा है जो रोज़े से पहले किया जाता है। ये दिल से होती है और इसका मकसद रोज़ा रखना और अल्लाह की इबादत करना होता है। नियत बिना रोज़ा नहीं होता, इसलिए ये इबादत का पहला कदम है। आप कह सकते हैं, “मैं रोज़े की नियत करता हूँ” और इसे समझना चाहिए कि ये अल्लाह के लिए है।

2. सहरी की नियत की दुआ क्या है?

सहरी की नियत की कोई खास दुआ नहीं है, लेकिन आप ये कह सकते हैं: “अल्लाहुम्मा इन्नी नवल्तु सव्मा घदी मिन रमजान।” इस दुआ का मकसद अल्लाह से मदद और बरकत मांगना है। आप इस दुआ को सहरी से पहले दिल से कर सकते हैं। ये दुआ आपकी नियत को बेहतर बनाती है और आपकी इबादत को अल्लाह के करीब कर देती है।

3. सहरी रोज़ा रखने की दुआ क्या है?

सहरी रोज़ा रखने के लिए खास दुआ की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन आप अपने दिल से दुआ कर सकते हैं। नियत करने के बाद, अल्लाह से ताकत और मदद की दुआ करें। आप कह सकते हैं, “या अल्लाह, मुझे इस रोज़े में मदद फरहम फरमा।” ये आपकी इबादत को बेहतर बनाने और आपको सही रुख पर चलने में मदद करेगी।

4. नियत से रोज़ा रखने की अहमियत क्या है?

नियत से रोज़ा रखना इबादत का एक अहम हिस्सा है। ये सिर्फ एक इरादा नहीं, बल्कि अल्लाह की तरफ इख्लास का इज़हार है। नियत बिना, रोज़े का असल मकसद खत्म होता है। नियत करने से आपके रोज़े का दर्जा बढ़ता है और अल्लाह से बरकत मिलने का इमकान भी ज्यादा होता है, इसलिए इसे समझना और करना बहुत ज़रूरी है।

5. दुआ जो सुन्नत और क़ुरआन से है, क्या है?

दुआ जो सुन्नत और क़ुरआन से है, वो हर वक्त की जा सकती है। रोज़े के लिए कोई खास दुआ नहीं है, लेकिन आप अल्लाह से अपनी ख्वाहिशात और दुआ मांग सकते हैं। क़ुरआन में कई ऐसे आयात हैं जो दुआ करने में मददगार होती हैं। अपने लिए और दूसरों के लिए दुआ करना, अल्लाह की रहमत हासिल करने का बेहतरीन तरीका है।

6. क्या सहरी करना फरज़ है?

सहरी करना फरज़ नहीं है, लेकिन ये सुन्नत है। ये आपको दिन भर की इबादत के लिए ताकत दे सकता है और अल्लाह की रहमत का ज़रिया बन सकता है। अक्सर लोग सहरी करके बेहतर महसूस करते हैं। इसलिए, सहरी करना छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि इसे अपनी इबादत का हिस्सा बनाना चाहिए।

7. क्या सहरी बिना रोज़ा रखा जा सकता है?

हाँ, आप सहरी बिना भी रोज़ा रख सकते हैं, लेकिन सहरी करना बेहतरीन है। ये आपको दिन भर की इबादत के लिए ज़रूरी ताकत फराहम करता है। अगर आप सहरी नहीं करते, तो आपको थकान महसूस हो सकती है। इसलिए, सहरी करना हमेशा बेहतर है और इसे अपनी इबादत का एक हिस्सा बनाना चाहिए।

8. सहरी का वक्त क्या होता है?

सहरी का वक्त सुबह से पहले होता है, जब फ़ज्र की अज़ान से पहले खाना खाना होता है। ये वक्त हर मकाम पर थोड़ा अलग होता है, इसलिए अपने इलाके की सहरी का वक्त देखना ज़रूरी है। अक्सर लोग इस वक्त से पहले तैयारी करते हैं ताकि वो वक्त पर खाना खाना न भूलें और अपने रोज़ा रखने की नियत कर सकें।

9. सहरी में क्या खाना चाहिए?

सहरी में ऐसे खाने चाहिए जो आपको ताकत दे और देर तक भूख से दूर रखें। आप दही, रोटी, दाल, और फल खाने में शामिल कर सकते हैं। ये खाने आपको दिन भर की इबादत में मदद करते हैं। थोड़ा पानी भी पीना नहीं भूलना चाहिए ताकि हाइड्रेशन बनाए रखें। अच्छा खाना आपकी सेहत और इबादत दोनों के लिए ज़रूरी है।

10. सहरी का मकसद क्या है?

सहरी का मकसद रोज़ा रखने के लिए तैयारी करना और अल्लाह की इबादत के लिए ताकत इकट्ठा करना है। ये आपको दिन भर की इबादत को आसान बनाता है। सहरी करने से आपकी इबादत की ख्वाहिश और इमान बढ़ता है, जो आख़िरत के लिए बेहतर होता है। इसलिए, सहरी को अपनी इबादत का अहम हिस्सा समझना चाहिए।

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