Roza Roza Rakhne aur Kholne Ki Dua

Roza Rakhne aur Kholne Ki Dua Arabic, Hindi, English Aur Tarjuma

Roza Rakhne Aur Kholne Ki Dua: रोजा रखने और खोलने की दुआ:

रोजा रखने की कोई भी दुआ हमें आप صلى الله عليه وسلم की सुन्नत से नहीं मिलती। उसी तरह रोजा खोलने के लिए भी कोई खास दुआ हमें नहीं मिलती, बहरहाल अल्लाह का नाम लेकर खोलने का हुक्म है क्योंकि रोजा सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के लिए रखा जाता है। तो जब रोजा खोले तो अल्लाह का नाम लेकर खोले।

Roza Rakhne Ki Dua: रोजा रखने की दुआ:

सुन्नत से साबित रोजा रखने की कोई भी दुआ नहीं है, नियत करने का हुक्म है। तो सिर्फ नियत करें, अल्लाह को गवाह बनाएं और रोजा रखें। रोजा रखते वक्त दिल से नियत करें के आप सिर्फ अल्लाह के लिए रोजा रख रहे हैं।

Roza Rakhne Ki Niyat Ki Dua: रोजा रखने की नियत की दुआ:

  • रोजा रखने की नियत के भी कोई दुआ नहीं है, बस चाहिए कि अल्लाह को गवाह बनाएं और सच्चे दिल से नियत करें कि सिर्फ अल्लाह के लिए रोजा रख रहा हूँ।
  • फर्ज रोजा का नियत चाहिए कि फजर से पहले की जाए, हदीस से मिलता है कि जिसने फजर से पहले नियत नहीं की, तो उसका रोजा ही नहीं हुआ।
  • नफली रोजा का नियत फजर के बाद भी कर सकते हैं और उसी तरह नफली रोजा को कभी भी तोड़ा जा सकता है।
  • लेकिन फर्ज रोजा नहीं तोड़ा जा सकता, फर्ज रोजा तोड़ना कबीरह गुनाह में आता है।

Roza Rakhne Ki Dua in Arabic: रोजा रखने की दुआ अरबी में:

रोज़ा रखने की दुआ अरबी में कोई भी सुन्नत से साबित नहीं है। इसलिए, रोजा रखते वक्त सिर्फ नियत करना जरूरी है। आप दिल से नियत करें के आप सिर्फ अल्लाह के लिए रोजा रख रहे हैं। फज्र से पहले नियत करना फ़र्ज़ है। रोज़ा रखने का अमल और नियत अल्लाह की रज़ा के लिए है, और इसमें किसी खास दुआ की ज़रूरत नहीं है। रोजा रखने की दुआ अरबी में सिर्फ ये मतलब है कि नियत जरूरी है।

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Roza Rakhne Ki Dua Sehri: रोजा रखने की दुआ सहरी:

रोजा रखने की दुआ सहरी के वक्त नियत करनी होती है। सहरी के वक्त नियत करें जो सुन्नत से साबित है, इसके इलावा कोई भी दुआ सुन्नत से हमें नहीं मिलती। रोजा रखते वक्त सिर्फ दिल से नियत करनी जरूरी है कि आप अल्लाह के लिए रोजा रख रहे हैं। हर रोजा को अल्लाह की रजा के लिए रखना चाहिए, और सहरी के वक्त नियत करने से रोजा कबूल होता है।

Shab E Barat Ka Roza Rakhne Ki Dua: शब-ए-बरात का रोजा रखने की दुआ:

शब-ए-बरात का रोजा दो नफली रोजा है, जैसे कि हमने बताया, सुन्नत से कोई भी दुआ नहीं है, रोजा रखने की बल्कि नियत का हुक्म है। शब-ए-बरात का कोई खास रोजा नहीं है, बल्कि पूरे शाबान का महीना ही बरकत वाला है, तो पूरे महीने में जब चाहें रख सकते हैं। और सिर्फ नियत करें। क्योंकि कोई भी दुआ नहीं है। लेकिन जब आप रोजा खोलें तो अल्लाह का नाम लेकर खोलें।

Nafli Roza Rakhne Ki Dua: नफली रोजा रखने की दुआ

नफ़ली रोज़ा रखने की कोई खास दुआ नहीं है। नफ़ली रोज़ा रखते वक़्त, आपको सिर्फ दिल से नियत करनी चाहिए के आप अल्लाह के लिए रोज़ा रख रहे हैं। आप कह सकते हैं, “अल्लाह के लिए रोज़ा रख रहा हूँ,” और फिर रोज़ा रखें। रोज़ा की नियत फ़ज्र से पहले की जाए, और जब ख़त्म करें, तो अल्लाह का नाम लेकर रोज़ा खोलें। इस से रोजा मकबूल होता है.

Muharram Ka Roza Rakhne Ki Dua: मुहर्रम का रोजा रखने की दुआ

मुहर्रम का रोजा जो बहुत बरकत वाला है। इसमें 9 और 10 का रोजा रखना बहुत फज़ीलत वाला है। यह नफली रोजा होता है, इससे पिछले 1 साल के गुनाह का कफ्फारा होता है। इसे रखना बहुत अहम है लेकिन इसके लिए भी कोई दुआ नहीं है, बस चाहिए कि नियत करें, अल्लाह को गवाह बनाएं और रोजा रखें।

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Roza Kholne Ki Dua: रोजा खोलने की दुआ

रोजा खोलने की कोई खास दुआ नहीं है, बस हुक्म है कि अल्लाह का नाम लेकर खोला जाए। जब आप रोज़ा खोलें, तो “बिस्मिल्लाह हिर-रहमान इर-रहीम” परहेन। ये आसान अमल अल्लाह की रज़ा और रोज़ा के क़बूल होने का ज़रिया है। रोजा खोलने के वक्त अल्लाह का नाम लेना जरूरी है, और इसका रोजा मुकम्मल होता है।

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

Bismillah hir-Rahman ir-Rahim

ترجمه: शुरू करती हूँ अल्लाह के नाम के साथ जो मेहरबान है और बार-बार रहम करने वाला है।

रोजा खोलने के बाद हमें एक दुआ मिलती है, जो नीचे दी गई है। इस दुआ को पढ़कर हमें अल्लाह ताला से यह दुआ करनी चाहिए:
“जमाऊ वब्तलति उरुकु वसबतल अज्रु इन्शा अल्लाह”
ترجمه: प्यास बुझ गई, रगें तर हो गईं और अगर अल्लाह ने चाहा तो रोजे का अज्र हमारे आमाल में लिख दिया गया।

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Roza Kholne Ki Niyat: रोजा खोलने की नियत:

सुन्नत से साबित कोई भी रोजा खोलने की दुआ नहीं है। रोजा हम जब खोल रहे होते हैं तो हमारे दिल को पता होता है कि हम रोजा खोलने जा रहे हैं, तो वह एक तरह की नियत ही हो गई। रोजा जब खोला जाए तो अल्लाह का नाम जरूर लेना चाहिए। वरना रोजा मुकम्मल नहीं होता।

Roza Kholne Ki Dua Hindi Me: रोजा खोलने की दुआ हिंदी में:

रोजा खोलने के लिए बस चाहिए कि अल्लाह का नाम लें। बिस्मिल्लाह हिर-रहमान इर-रहीम पढ़ें और रोजा खोलें।
अल्लाह ताला का रज़ा हासिल होगा इससे और इंशा अल्लाह हमारा रोजा कबूल होगा।

Roza Kholne Ki Time: रोजा खोलने का समय:

रोजा चाँद के दिखने के बाद शुरू होता है, रोजा खोलने का वक्त जब मग़रिब की अज़ान सुनाई दे जाए तो तुरंत रोजा खोल लेना चाहिए।

रोजा रखने और खोलने की दुआओं का असल मकसद अल्लाह की रजा हासिल करना है। हमें ये याद रखना चाहिए कि कोई खास दुआ सुन्नत से साबित नहीं है, लेकिन नियत और अल्लाह का नाम लेना जरूरी है। रोजा रखें वक्त दिल से नियत करें और अल्लाह को गवाह बनाएं। रोज़ा खोलते वक़्त “बिस्मिल्लाह हिर-रहमान इर-रहीम” पढ़ें और फिर दुआ करें के अल्लाह तआला हमारे रोज़ो को क़बूल करें। ये अमल अल्लाह के क़ुर्ब को हासिल करने का ज़रिया है और इंशाअल्लाह हमारे सारे रोज़ा उसके हुज़ूर में मक़बूल होंगे।

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Roza Rakhne Aur Kholne Ki Dua Ke Baare Mein Ahem Sawalat। रोजा रखने और खोलने की दुआ के बारे में अहम सवालात:

1. रोजा रखने की दुआ क्या है?
रोजा रखने की कोई भी सुन्नत से साबित दुआ नहीं है, बस चाहिए की नियत करें। रोजा के लिए सिर्फ दिल से नियत करना जरूरी है कि आप सिर्फ अल्लाह के लिए रोजा रख रहे हैं।

2. रोजा कैसे रखना चाहिए?
फजर से पहले उठें, सहरी करें और फिर नियत करें रोजा रखने की, फिर फजर होते ही सहरी छोड़ दें क्योंकि फजर तक ही वक्त होता है सहरी की।

3. रोजा कौन रख सकता है?
हर मुसलमान रख सकता है, लड़की पर रोजा फर्ज तब होता है जब उसे हेज आना शुरू हो जाए। और लड़कों पर रोजा तब फर्ज होता है जब उसका सफेद डिस्चार्ज हो जाए।

4. सहरी से पहले क्या कहना है?
कुछ भी नहीं कहना है, जब आप उठ रहे हैं तो आपको पता है कि आप किसलिए उठ रहे हैं, इसलिए नियत दिल से ही हो जाएगी।

5. रोजा कब नहीं रखना चाहिए?
जब लड़की हेज में हो तब नहीं रखना चाहिए। और अगर कोई शख्स बीमार हो और रोजा रखने की इस्तितात न रखता हो तो वो न रखें।

6. सहरी कैसे करते हैं?
फजर से पहले उठें और जो भी खाना चाहें खाएं लेकिन फजर से पहले सहरी पूरी कर लें। क्योंकि सहरी का वक्त फजर तक होता है।

7. रोजा रखने से पहले दुआ करनी है क्या?

नहीं, बस नियत कर लें काफी है। रोजा रखने से पहले कोई खास दुआ करना ज़रूरी नहीं है, सिर्फ दिल से नियत करें कि आप अल्लाह के लिए रोजा रख रहे हैं।

8. रोजा खोलते समय क्या पढ़ना चाहिए?

रोज़ा खोलते समय “بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ” (Bismillah hir-Rahman ir-Rahim) पढ़ना चाहिए। बस बिस्मिल्लाह पढ़कर रोज़ा खोल लें, इससे रोज़ा मुकम्मल होता है और अल्लाह की रज़ा हासिल होती है।

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