जकात इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक अहम बुनियाद है। जकात देने से मुसलमान के दिल से माल-ओ-दौलत की मोहब्बत और लालच दूर होती है। अल्लाह का हुक्म सिर्फ बनी इस्राईल यानी यहूदियों के लिए नहीं था, बल्कि सबके लिए है। हज़रत उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हु) जब इन आयात को पढ़ते तो फरमाते कि बनी इस्राईल तो गुज़र गए, अब ये हुक्म हमारे लिए है कि अपने अंदर बुराई को जगह ना दें। ये चीजें हमें हक से दूर कर देती हैं, और अल्लाह का हुक्म है कि नमाज़ क़ायम करो और जकात दो। जकात देने से हमारे माल पाक होते है।
Zakat Dene Ki Fazilat : जकात देने की फ़ज़ीलत
- माल में इज़ाफा
- जकात देने से माल में बरकत होती है।
- माल की पाकीज़गी
- जकात हमारे माल को पाक करती है और इसे हराम से बचाती है।
- माल की मोहब्बत खत्म करना
- जकात देने से इंसान के अंदर से माल की मोहब्बत खत्म होती है।
- नफ्स की पाकीज़गी
- जकात नफ्स (आत्मा) को शुद्ध करती है और उसे बुराइयों से बचाती है।
- फर्ज़ अदा करना
- जकात देने से इंसान अपनी जिम्मेदारियां और अल्लाह के हुक्म को पूरा करता है।जकात देना एक फर्ज अमल जिससे हमे देना चैये जिससे हमारा फर्ज अदा होता है। फर्ज अदा करने से हम अल्लाह की फकड़ से निकाल जाते है।
- अल्लाह के बंदों से ताल्लुक
- जकात का रिश्ता अल्लाह के बंदों के हक को अदा करने से है।
- दीनी और दुनियावी फायदों का मेल
- जकात केवल दीनी हुक्म तक सीमित नहीं, बल्कि यह हमारी दुनिया को भी बेहतर बनाती है।
- माल खर्च करने से उसकी बरकत
- माल खर्च करने से वह कम नहीं होता, बल्कि अल्लाह के करम से बढ़ता है।
Zakat Kisko Dena Chahiye : जकात किसको देना चाहिए
सूरह तौबा सूरह नंबर 9 आयात नम्बर 60 से रिवायत है कि
اِنَّمَا الصَّدَقٰتُ لِلۡفُقَرَآءِ وَ الۡمَسٰکِیۡنِ وَ الۡعٰمِلِیۡنَ عَلَیۡہَا وَ الۡمُؤَلَّفَۃِ قُلُوۡبُہُمۡ وَ فِی الرِّقَابِ وَ الۡغٰرِمِیۡنَ وَ فِیۡ سَبِیۡلِ اللّٰہِ وَ ابۡنِ السَّبِیۡلِ ؕ فَرِیۡضَۃً مِّنَ اللّٰہِ ؕ وَ اللّٰہُ عَلِیۡمٌ حَکِیۡمٌ ﴿۶۰
सदक़ात तो दर असल हक़ है फ़क़ीरों का, मिस्कीनों का, और उन अहलकारों का जो सदक़ात की वसूली पर मुक़र्रर होते हैं,
Zakat Kisko Nahi Dena Chahiye : जकात किसको नहीं देना चाहिए
- गैर मुस्लिम को।
- गनी और तंदरुस्त इंसान को ।
- मैयत को कफ़न दफन के लिए जकात नहीं ले सकते ।
- कुरान की छपाई के लिए जकात का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
- जकात मस्जिद को नहीं दे सकते ।
- दुनियावी तालीम इदार को भी नहीं दे सकते।
- अपने पास कम करने वाले मुलाजिम को जकात नहीं दे सकते।सिवाय इसके
-
- ये उम्मीद न हो कि जकात दूंगा तो ये दिल लगाकर काम करेगा।
- ये उम्मीद न हो कि वो नौकरी नहीं छोड़ेंगे।
- इन्हें मुलाजिम रखते वक्त ये जिक्र नहीं करना की जकात देंगे।
- जकात एक इबादत है तो न किसी लालच न किसी दवाब न किसी दिखावे के लिए होना चाहिए ।
- पेशावर मांगने वाले को भी जकात नहीं दे सकते।
- बे नमाजी लोगों को बोड़दती लोगो को।
- फ़ाज़िर और फ़सीक लोगो को।
- आप के खानदान वाले को जकात नहीं दे सकते।
- ज़ैरेकीफलत { जिससे हम अपने घर में का कर रख लेते है } नहीं दे सकते।
Zakat Kitna Dena Chahiye : जकात कितना देना चाहिए
जकात एक साल में जो भी हमने बचाया हो, चाहे वह सोना हो या पैसा हो, उसका 2.5% हमें अपने माल से देना होता है। जकात देना एक फर्ज़ है जो हमारे माल की पाकिजगी और गरीबों की मदद के लिए है।
Zakat Ke Talluq Se Hadees : जकात के तालुक से हदीस
जकात एक साल में जो भी हमने बचाया हो, चाहे वह सोना हो या पैसा हो, उसका 2.5% हमें अपने माल से देना होता है। जकात देना एक फर्ज़ है जो हमारे माल की पाकिजगी और गरीबों की मदद के लिए है।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1395 से रिवायत है
नबी करीम (सल्ल०) ने जब मुआज़ (रज़ि०) को यमन (का हाकिम बना कर) भेजा तो फ़रमाया कि तुम उन्हें इस कलिमे की शहादत की दावत देना कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और ये कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ। अगर वो लोग ये बात मान लें तो फिर उन्हें बताना कि अल्लाह तआला ने उन पर रोज़ाना पाँच वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ की हैं। अगर वो लोग ये बात भी मान लें तो फिर उन्हें बताना कि अल्लाह तआला ने उन के माल पर कुछ सदक़ा फ़र्ज़ किया है जो उन के मालदार लोगों से ले कर उन्हें के मोहताजों मैं लौटा दिया जाएगा।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1396 से रिवायत है
एक शख़्स ने नबी करीम (सल्ल०) से पूछा कि आप मुझे कोई ऐसा अमल बताइये जो मुझे जन्नत में ले जाए। इस पर लोगों ने कहा कि आख़िर ये किया चाहता है। लेकिन नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि ये तो बहुत अहम ज़रूरत है। (सुनो) अल्लाह की इबादत करो। और उसका कोई शरीक न ठहराओ। नमाज़ क़ायम करो। ज़कात दो और सिला रहमी करो। और बह्ज़ ने कहा कि हम से शोबा ने बयान किया कि हम से मुहम्मद -बिन-उस्मान और उन के बाप उस्मान-बिन-अब्दुल्लाह ने बयान किया कि उन दोनों साहिबान ने मूसा-बिन-तलहा से सुना और उन्होंने अबू-अय्यूब से और उन्होंने नबी करीम (सल्ल०) से उसी हदीस की तरह (सुना) अबू-अब्दुल्लाह (इमाम बुख़ारी (रह०)) ने कहा कि मुझे डर है कि मुहम्मद से रिवायत ग़ैर महफ़ूज़ है और रिवायत अम्र -बिन-उस्मान से (महफ़ूज़ है)।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1397 से रिवायत है
एक देहाती नबी करीम (सल्ल०) की ख़िदमत में आया और कहा कि आप मुझे कोई ऐसा काम बताएँ जिस पर अगर मैं हमेशगी करूँ तो जन्नत में दाख़िल हो जाऊँ। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि “अल्लाह की इबादत कर उसका किसी को शरीक न ठहरा फ़र्ज़ नमाज़ क़ायम कर फ़र्ज़ ज़कात दे और रमज़ान के रोज़े रख। देहाती ने कहा, उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है इन कामों पर मैं कोई ज़्यादती नहीं करूँगा। जब वो पीठ मोड़ कर जाने लगा तो नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि अगर कोई ऐसे शख़्स को देखना चाहे जो जन्नत वालों में से हो तो वो उस शख़्स को देख ले।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1398 से रिवायत है
क़बीला अब्दुल-क़ैस का वफ़द नबी करीम (सल्ल०) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और कहा कि या रसूलुल्लाह! हम क़बीला रबीआ की एक शाख़ हैं और क़बीला मुज़र के काफ़िर हमारे और आप (सल्ल०) के बीच पड़ते हैं। इसलिये हम आप (सल्ल०) की ख़िदमत में सिर्फ़ हुरमत के महीनों ही में हाज़िर हो सकते हैं (क्योंकि उन महीनों में लड़ाइयाँ बन्द हो जाती हैं और रास्ते पुर-अम्न हो जाते, हैं) आप (सल्ल०) हमें कुछ ऐसी बातें बता दीजिये जिस पर हम ख़ुद भी अमल करें और अपने क़बीले के लोगों से भी उन पर अमल करने के लिये कहें जो हमारे साथ नहीं आ सके हैं। नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि मैं तुम्हें चार बातों का हुक्म देता हूँ और चार चीज़ों से रोकता हूँ। अल्लाह तआला पर ईमान लाने और उसकी यकताई की शहादत देने का (ये कहते हुए) आप (सल्ल०) ने अपनी उँगली से एक तरफ़ इशारा किया। नमाज़ क़ायम करना फिर ज़कात अदा करना और माले-ग़नीमत से पाँचवाँ हिस्सा अदा करने (का हुक्म देता हूँ) और मैं तुम्हें कद्दू के तोंबे से और हन्तम (हरा रंग का छोटा सा मर्तबान जैसा घड़ा) नक़ीर (खजूर की जड़ से खोदा हुआ एक बर्तन) और ज़िफ़्त (चीड़ का गोंद) लगा हुआ बर्तन (ज़िफ़्त (चीड़ का गोंद) बसरा में एक क़िस्म का तेल होता था) के इस्तेमाल से मना करता हूँ। सुलैमान और अबू-नोमान ने हम्माद के वास्ते से यही रिवायत इस तरह बयान की है। (الإيمان بالله شهادة أن لا إله إلا الله) यानी अल्लाह पर ईमान लाने का मतलब (ला इला-ह इल्लल्लाह) की शहादत देना।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1400 से रिवायत है
क़सम अल्लाह की मैं हर उस शख़्स से जंग करूँगा जो ज़कात और नमाज़ में फ़र्क़ करेगा। (यानी नमाज़ तो पढ़े मगर ज़कात के लिये इनकार कर दे) क्योंकि ज़कात माल का हक़ है। अल्लाह की क़सम! अगर उन्होंने ज़कात मैं चार महीने के (बकरी के) बच्चे को देने से भी इनकार किया जिसे वो रसूलुल्लाह (सल्ल०) को देते थे तो मैं उन से लड़ूँगा। उमर (रज़ि०) ने फ़रमाया कि ख़ुदा की क़सम ये बात इसका नतीजा थी कि अल्लाह तआला ने अबू-बक्र (रज़ि०) का सीना इस्लाम के लिये खोल दिया था और बाद में मैं भी इस नतीजा पर पहुँचा कि अबू-बक्र (रज़ि०) ही हक़ पर थे।
शहीही बुखारी हदीस नंबर 1400 से रिवायत है
मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से नमाज़ क़ायम करने ज़कात देने और हर मुसलमान के साथ ख़ैर चाहने पर बैअत की थी।
Dua Se Jude Sawal Aur Jawab: जकात से जुड़े सवाल और जवाब
1. जकात क्या है?
जकात इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक अहम बुनियाद है। जकात देने से मुसलमान के दिल से माल-ओ-दौलत की मोहब्बत और लालच दूर होती है। अल्लाह का हुक्म सिर्फ बनी इस्राईल यानी यहूदियों के लिए नहीं था, बल्कि सबके लिए है। हज़रत उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हु) जब इन आयात को पढ़ते तो फरमाते कि बनी इस्राईल तो गुज़र गए, अब ये हुक्म हमारे लिए है कि अपने अंदर बुराई को जगह ना दें।
2. जकात देना क्यों जरूरी है?
जकात देना इस्लाम में फर्ज है और यह इंसानियत की मदद करने का एक तरीका है। इसका उद्देश्य गरीबी को कम करना, फक्र (गरीबी) को दूर करना और माल में बरकत लाना है। जकात देने से आप अपनी माल और दौलत को पाक करते हैं और अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल करते हैं।
3. जकात किस पर फर्ज है?
जकात देना उन मुसलमानों पर फर्ज है जो जकात देने की इस्तेतात रखते है। मुसलमानों को ये होना चाहिए के वो जरूरतमंदों की मदद करे। ताकि वो भी अपना ज़िन्दगी अच्छे से गुजर सके।
4. जकात किस-किस चीज पर देनी होती है?
जकात पैसे, सोने, चांदी, और माल और दौलत पर दी जाती है। इसके अलावा, अगर आपके पास व्यापार, या कोई ऐसी चीज हो जिसे आप बेचने वाले हों, तो उस पर भी जकात देना जरूरी होता है।
5. जकात किसे दी जा सकती है?
जकात उन लोगों को दी जा सकती है जो गरीब, यतीम, और मोहताज हैं। जकात देने वाले को यह पता करना चाहिए कि जो व्यक्ति पैसे ले रहा है, वह सच में मोहताज है। जकात का मकसद उन लोगों की मदद करना है जो जरूरतमंद हैं।
6. जकात का रेट कितना है?
जकात का रेट 2.5% है, यानी अगर आपके पास एक साल तक माल पड़ा हो, तो उसका 2.5% आपको जकात के तौर पर देना होता है। अगर आपका माल निसाब से कम है, तो आप पर जकात फर्ज नहीं है।
7. जकात देना किस समय फर्ज है?
जकात का वक्त एक साल पूरा होने पर आता है। अगर आपके पास माल एक साल तक निसाब के बराबर हो, तो आपको उस माल का 2.5% जकात के तौर पर देना होता है। यह एक वार्षिक फर्ज इबादत है।
8. जकात से माल में बरकत कैसे आती है?
जकात देने से माल में बरकत आती है, क्योंकि यह अल्लाह की रहमत और मदद का एक तरीका है। जब आप अपना माल गरीबों के साथ बांटते हैं, तो आपका माल पाक होता है और उसमें बरकत आती है। जकात देने से अल्लाह की ओर से रिज़्क का रास्ता खुलता है।
9. अगर कोई जकात देने से इनकार करे तो क्या होता है?
अगर कोई व्यक्ति जकात देने से इनकार करता है, तो वह इस्लाम के फर्ज को न मानने। जकात न देने से अल्लाह की रहमत से दूर होने और माल में कमी आ सकती है। यह एक गलत काम है जो इस्लाम में मना किया गया है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.