Islamic viewpoints on climate change and environmental responsibilities.

Mausamati Tabdeeli aur Maholiyati Zimmedaari par Islami Nazariya

अल्लाह सुभानहु व तआला ने हमें साल के 12 महीने अता किए, जिनमें सर्दी, गर्मी, बरसात, पतझड़ और बसंत जैसे अलग-अलग मौसम हैं। हर मौसम में अल्लाह ने इंसानों के लिए शिफा और नेमतें रखी हैं। सर्दियों में गर्माहट देने वाले फल, तो गर्मियों में ठंडक देने वाले फल और सब्जियां अता की गई हैं।

मौसम की तब्दीली से इंसान को बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अल्लाह ने इन बीमारियों का इलाज भी हर मौसम में रखा है। हर फल, सब्जी और जड़ी-बूटी में शिफा का खज़ाना छिपा है। ये मौसम न सिर्फ इंसानी जरूरतें पूरी करते हैं बल्कि अल्लाह की रहमत और हिकमत को भी बयान करते हैं।

Sansadhano Ka Fizul Istemal Na Kare : संसाधनों का फिजूल इस्तेमाल न करें।

हमारे माशरे में संसाधनों का फिजूल इस्तेमाल आम बात है, जो सही नहीं है। अल्लाह सुभानहु तआला ने हमें अपनी नेमतें दी हैं, जिनका इस्तेमाल ज़रूरत के मुताबिक करना चाहिए। फिजूलखर्ची न सिर्फ़ गलत है बल्कि अल्लाह की दी हुई नेमतों की नाशुक्री भी है। इसलिए हमें चाहिए कि अपनी ज़रूरतें समझें और संसाधनों का सही और सोच-समझकर इस्तेमाल करें। फिजूलखर्ची से बचना हमारी ज़िम्मेदारी है। और सेतान कहता है की फिजूलखर्च करने वाला मेरा भाई है। तो हमे चाहिए की हम जितना हो सके उतना काम खर्च करे।

Paido Aur Jangal Ki Hifazat Kare : पेड़ों और जंगलों की हिफाजत करें।

  • पेड़ और जंगल एक ऐसी नेमत हैं जो कुदरती तौर पर अल्लाह सुभानहु तआला ने हमें अता की हैं। इनकी हिफाज़त करना हमारा फर्ज़ है, क्योंकि पेड़ और जंगल से हमें कई तरह के फायदे मिलते हैं। अल्लाह ने इन दोनों चीज़ों में कई किस्म की नेमतें अता की हैं, मसलन साफ हवा, फल, लकड़ी और ज़मीन की हिफाज़त। इसलिए हमें चाहिए कि इन नेमतों की कद्र करें और इनका अच्छी तरह ख्याल रखें।

वैज्ञानिक फायदे:

  • ऑक्सीजन का उत्पादन: पेड़ और जंगल से हमें ताजगी से भरपूर ऑक्सीजन मिलती है, जो हमारे ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है।
  • प्राकृतिक संतुलन: पेड़ महोल में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और इससे ज़मीन का तापमान कंट्रोल में रहता है।
  • जलवायु नियंत्रण: जंगलों से वर्षा की प्रक्रिया में मदद मिलती है, जिससे जल चक्र का संतुलन बना रहता है।
  • जैव विविधता: जंगलों में लाखों तरह की वन्यजीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखती हैं।
  • मिट्टी का कटाव रोकना: पेड़ और पौधे मिट्टी की स्थिरता को बनाए रखते हैं और बारिश के पानी से मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करते हैं।

इस्लामिक फायदे:

  1. राहत और शिफा: इस्लाम में पेड़ और जंगलों को अल्लाह की नेमत माना गया है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने पेड़ लगाने को एक सदका का काम बताया है। उन्होंने कहा था कि जो भी इंसान पेड़ लगाता है, उससे जो भी फल, छाया या लकड़ी मिलती है, वह उसकी सदाका सवाब बन जाता है।
  2. जन्नत में पेड़ों की अहमियत: कुरआन और हदीस में जन्नत को एक बाग-बगिचे के रूप में स्पष्ट किया गया है, जहाँ पेड़-पौधे और हरे-भरे वातावरण का विश्राम दिया जाता है। इस्लाम में हरे-भरे बागों को अल्लाह की नेमत के रूप में देखा जाता है।
  3. खूबसूरती और ताजगी: इस्लाम में प्राकृतिक खूबसूरती का सम्मान किया गया है। पेड़ और जंगल न केवल हमारे शरीर की बल्कि हमारी रूह की ताजगी और शांति के लिए भी फायदेमंद हैं।

Zamin Aur Pani Ko Pardushit Se Bachayen : जमीन और पानी को प्रदूषण से बचाएं।

जमीन और पानी हमारे लिए एक ऐसी नेमत हैं जो अल्लाह सुभानहु ताला ने कुदरती तौर पर हमारे लिए बनाई हैं। इस लिए हमें इनकी हिफाज़त करनी चाहिए। पानी वो नेमत है जिसके बिना इंसान जिन्दा नहीं रह सकता, इसलिए हमें पानी को बिल्कुल भी गंदा नहीं करना चाहिए। ज़मीन को भी जितना हो सके कम गंदा करें, क्योंकि सफाई की अहमियत हमारे नबी (SAW) ने समझाई है। सफाई और तहरत हमारे लिए बहुत ज़रूरी हैं, चाहे वो इंसान की हो, ज़मीन की हो, या पानी की। हमेशा सफाई रखनी चाहिए।

Maholiyati Zimmedari Par Islami Nazriya : मोहोलियाती जिम्मेदारी पर इस्लामी नजरिया 

बुखारी हदीस नंबर 2320 से रिवायत है

حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ بْنُ سَعِيدٍ ، حَدَّثَنَا أَبُو عَوَانَةَ . ح وحَدَّثَنِي عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ الْمُبَارَكِ ، حَدَّثَنَا أَبُو عَوَانَةَ ، عَنْ قَتَادَةَ ، عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ :    مَا مِنْ مُسْلِمٍ يَغْرِسُ غَرْسًا أَوْ يَزْرَعُ زَرْعًا فَيَأْكُلُ مِنْهُ طَيْرٌ أَوْ إِنْسَانٌ أَوْ بَهِيمَةٌ إِلَّا كَانَ لَهُ بِهِ صَدَقَةٌ    . وَقَالَ لَنَا مُسْلِمٌ : حَدَّثَنَا أَبَانُ ، حَدَّثَنَا قَتَادَةُ ، حَدَّثَنَا أَنَسٌ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ .

और (सूरा वाक़ियआ में) अल्लाह तआला का फ़रमान أفرأيتم ما تحرثون * أأنتم تزرعونه أم نحن الزارعون * لو نشاء لجعلناه حطاما”ये तो बताओ जो तुम बोते हो क्या उसे तुम उगाते हो  या उसके उगाने वाले हम हैं, अगर हम चाहें तो इसे चूरा-चूरा बना दें।”

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया,  कोई भी मुसलमान जो एक पेड़ का पौधा लगाए या खेती मैं बीज बोए  फिर उसमें से परिन्दा या इन्सान या जानवर जो भी खाते हैं वो उसकी तरफ़ से सदक़ा है मुस्लिम ने बयान किया कि हम से अबान ने बयान किया  उन से क़तादा ने बयान किया  और उन से अनस (रज़ि०) ने नबी करीम (सल्ल०) के हवाले से।

 

अबू दाऊद हदीस नंबर 5239 से रिवायत है 

حَدَّثَنَا نَصْرُ بْنُ عَلِيٍّ،‏‏‏‏ أَخْبَرَنَا أَبُو أُسَامَةَ عَنِ ابْنِ جُرَيْجٍ عَنْ عُثْمَانَ بْنِ أَبِي سُلَيْمَانَ،‏‏‏‏ عَنْ سَعِيدِ بْنِ مُحَمَّدِ بْنِ جُبَيْرِ بْنِ مُطْعِمٍ،‏‏‏‏ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ حُبْشِيٍّ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ قال رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ مَنْ قَطَعَ سِدْرَةً صَوَّبَ اللَّهُ رَأْسَهُ فِي النَّارِ ،‏‏‏‏ سُئِلَ أَبُو دَاوُدَ عَنْ مَعْنَى هَذَا الْحَدِيثِ،‏‏‏‏ فَقَالَ:‏‏‏‏ هَذَا الْحَدِيثُ مُخْتَصَرٌ،‏‏‏‏ يَعْنِي:‏‏‏‏ مَنْ قَطَعَ سِدْرَةً فِي فَلَاةٍ يَسْتَظِلُّ بِهَا ابْنُ السَّبِيلِ وَالْبَهَائِمُ عَبَثًا وَظُلْمًا بِغَيْرِ حَقٍّ يَكُونُ لَهُ فِيهَا،‏‏‏‏ صَوَّبَ اللَّهُ رَأْسَهُ فِي النَّارِ. 

हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-हुबशी (रज़ि०) से रिवायत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:  जिसने बेरी का पेड़ काटा  अल्लाह  उसके सिर को जहन्नम में उल्टा लटकाएगा।इमाम अबू-दाऊद (रह०) से इस हदीस की तौज़ीह पूछी गई  तो उन्होंने फ़रमाया: ये हदीस मुख़्तसर है। इससे मुराद ये है कि जंगल में लगी बेरी का पेड़ जो आने-जानेवाले मुसाफ़िरों और जानवरों के लिये साए का काम देता हो और कोई शख़्स बे-मक़सद ज़ुल्म से उसे काट डाले  तो अल्लाह उसे जहन्नम में उल्टा लटकाएगा।  

 

सूरह अल अराफ सूरह नम्बर 7 आयात नम्बर 56 से रिवायत है 

وَ لَا تُفۡسِدُوۡا فِی الۡاَرۡضِ بَعۡدَ اِصۡلَاحِہَا وَ ادۡعُوۡہُ خَوۡفًا وَّ طَمَعًا ؕ اِنَّ رَحۡمَتَ اللّٰہِ قَرِیۡبٌ مِّنَ الۡمُحۡسِنِیۡنَ ۵۶﴾

اور  زمین  میں اس کی اصلاح کے بعد  فساد  برپا نہ کرو ، ( ٣١ ) اور اس کی  عبادت  اس طرح کرو کہ  دل  میں خوف بھی ہو اور  امید  بھی ۔ ( ٣٢ ) یقینا اللہ کی رحمت  نیک  لوگوں سے قریب ہے ۔

और ज़मीन में उसकी इस्लाह (सुधार व दुरुस्ती) के बाद फ़साद (ख़राबी और बिगाड़) बरपा न करो, (31) और उसकी इबादत इस तरह करो कि दिल में ख़ौफ़ भी हो और उम्मीद भी। (32) यक़ीनन अल्लाह की रहमत नेक लोगों से क़रीब है।

 

सूरह 25 आयात नम्बर 63 से रिवायत है 

وَ عِبَادُ  الرَّحۡمٰنِ الَّذِیۡنَ  یَمۡشُوۡنَ عَلَی الۡاَرۡضِ ہَوۡنًا وَّ اِذَا خَاطَبَہُمُ الۡجٰہِلُوۡنَ  قَالُوۡا سَلٰمًا ﴿۶۳﴾

اور رحمن کے بندے وہ ہیں جو  زمین  پر  عاجزی  سے چلتے ہیں ، اور جب جاہل لوگ ان سے ( جاہلانہ ) خطاب کرتے ہیں تو وہ سلامتی کی  بات  کہتے ہیں ۔ ( ٢٣ )

और रहमान के बन्दे वे हैं जो ज़मीन पर अ़ाजिज़ी (विनम्रता) से चलते हैं, और जब जाहिल लोग उनसे (जाहिलाना) ख़िताब करते हैं तो वे सलामती की बात करते हैं। 

Conclusion : आखिरी बात 

मोसमी तबदीली अल्लाह की एक अज़ीम नेमत है जो हमें हर मौसम में अलग-अलग फायदे और हिकमत का इज़हार करती है। हमें चाहिए कि अपने माहौल को साफ़ रखें, ज़खाइर का फ़ज़ूल इस्तेमाल न करें और दरख़्त और जंगलात की हिफ़ाज़त करें। इस्लाम हमें ज़मीन और पानी को गंदा करने से मना करता है और साफ़-सफ़ाई को दीन का हिस्सा क़रार देता है। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो अल्लाह की दी हुई नेमतों की क़दर करें और माहौलियत की हिफ़ाज़त में अपना किरदार अदा करें। ये सब सिर्फ़ दुनिया में नहीं, आख़िरत में भी सवाब और बरकत का सबब बनेगा।

 

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