Changes and challenges in Islamic education and modern curricula.
Transformations and Challenges in Islamic Education and Curriculum.

Islami Taleem aur Naye Nisab mein Tabdeeliyan aur Challanges

नए निसाब में तब्दिलियां इस लिए ज़रूरी हैं के बच्चे दीन की बातों को पढ़ने, क़ुरान पढ़ने और हदीस में दिलचस्पी लें। आजकल के दौर में बच्चे ज़्यादातर खेल कूद, मोबाइल और दूसरी चीज़ों में मसरूफ़ रहते हैं, जिस की वजह से उनका ध्यान दीन की तरफ़ नहीं होता। इस्लामी तालीम मुसलमानों का मज़हबी तालीम है जो समझना और पढ़ना बहुत ज़रूरी है। नए निसाब का यही मक़सद है के बच्चे दीन की तरफ़ आएं और उस के बारे में मजीद पढ़ें और उस में दिलचस्पी लें। इसके ज़रिए, उन्हें अपने दीन की अहमियत और उस के असल मक़ासिद समझने में मदद मिलेगी, और वो मजीद बेहतर तरीक़े से अपने मज़हबी और अख़लाक़ी फ़र्ज़ समझ सकेंगे।

Modernization Aur Deeni Taleem Ke Challenges: जदीदियतऔर दीनी तालीम की चुनौतियाँ

आज के दौर में कई सारी चैलेंजेस हैं। आजकल के लोग दुनियावी तालीम और टेक्नोलॉजी का बहुत ज्यादा ख्याल रखते हैं, लेकिन कोई भी दीन की तरफ नहीं आना चाहता। हमें ये समझना चाहिए कि हमें कोई भी तालीम पढ़नी चाहिए, लेकिन उसका एक मकसद ये होना चाहिए कि उससे हमारी आखिरत भी आसान हो, ताकि हम दीन की तरफ रहें। दुनिया की तालीम ज़रूरी है, लेकिन दीन की तालीम उससे ज़्यादा ज़रूरी है, क्योंकि हमारा असली मकसद आखिरत को बेहतर बनाना है।

Taleemi Mawad Aur Resources Ki Kami : तालीमी मवाद और संसाधनों की कमी

हमें अपनी रोजाना ज़िंदगी  में, दीन की तालीम के साथ-साथ दुनिया की तालीम भी हासिल करनी चाहिए, लेकिन जितना हो सके, हमें ज़्यादा तवज्जो दीन की तालीम की तरफ देनी चाहिए। आजकल के वक्त में कई परेशान करने वाली चीज़े हैं, जिससे हम भटक सकते हैं, लेकिन हमें अपने यकीन को मज़बूत रखना होगा। चैलेंजेस बहुत आएंगे, लेकिन हमारे इमान और अपने मकसद पर यकीन होना चाहिए।

अगर हम दीन की तालीम को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करेंगे और दुनियावी चीजों को उसके साथ बैलेंस करेंगे, तो हमारी आखिरत भी आसान हो सकती है। हमारे लिए सबसे ज़रूरी बात ये है कि हम अपने इमान को मज़बूत रखें और अपनी ज़िन्दगी में दीन को पहले रखें।

 Waldain Ka Kirdar : वालिदेन का किरदार

वालिदैन का बच्चों को दीन की तालीम देने में बहुत बड़ा हिस्सा होता है। वालिदैन को चाहिए कि वो अपने बच्चों को दीन की बेहतरीन तालीम सिखाएं और पढ़ाएं। वालिदैन बच्चों की ज़िन्दगी में एक अहम हिस्सा होते हैं। बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं, अगर हम बच्चों को जैसा बनाना चाहते हैं, तो वो वैसे ही बनते हैं। सबसे ज़रूरी बात यह है कि वालिदैन पहले खुद दीन की तरफ तवज्जो दें, क्योंकि बच्चों का पहला तालीम देने वाले उनके वालिदैन ही होते हैं। अगर हम खुद दीन को फॉलो करेंगे, तभी हमारे बच्चे हमसे कुछ सीखेंगे।

बच्चों को हदीस को  कहानियों की तरह सुनाएं, ताकि वो उसमें दिलचस्पी लें और अपने सहाबियों से कुछ सीखें। उन्हें उनकी सुन्नतों पर अमल करने की तरफ रुझान देना ज़रूरी है। जब हम अपने बच्चों को दीन की अहमियत समझाएंगे और उन्हें अपने आमाल से दिखाएंगे, तो वो भी अपनी ज़िन्दगी में दीन को अपनाएंगे। वालिदैन का अपनी ज़िन्दगी में दीन पर अमल करना बच्चों के लिए सबसे बेहतरीन तालीम है।

Taleem Ka Maqsad : तालीम का मकसद

तालीम का असल मकसद ये है के हम दूसरों की खिदमत करें, ताकि इस अमल से तुम्हें आख़िरत में अज़हर मिले। तालीम का मकसद इंसान की मदद करना होना चाहिए, अगर उससे पैसे मिल रहे हैं, तो ये दुनिया और आख़िरत दोनों में फायदा देगा। तालीम हमेशा दूसरों की और अपनी भलाई के लिए होनी चाहिए, ताकि तुम्हारी दुनिया और आख़िरत दोनों बेहतर हो सकें।

Islami Taleem Ko Barqarar Rakhne Ka Paigham : इस्लामी तालीम को बरक़रार रखने का पैगाम

इस्लामी तालीम को बरकरार रखना बहुत ज़रूरी है। आज के दौर में लोग ज़्यादा तर दुनियावी तालीम पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लामी तालीम का असल मकसद इंसान को सिर्फ दुनिया की नहीं, बल्कि आखिरत की भी राह दिखाना है। इस्लाम ने हमें अपने आ़माल और अखलाक को बेहतर बनाने की तालीम दी है, जो सिर्फ किताबों तक महदूद नहीं है।इस्लामी तालीम में इल्म-ए-दीं के साथ-साथ रूहानी और अखलाकी पहलू भी शामिल हैं, जो इंसान को बेहतरीन इंसान बनाने की तरफ रुझान डालते हैं। इस्लाम ने हमें सिर्फ इल्म से नहीं, बल्कि उस इल्म को अपनी ज़िंदगी में अमल में लाने का हुक्म दिया है। जब हम इस्लामी तालीम पर अमल करते हैं, तो हम अपने आ़माल को सुधारते हैं, अपनी रूहानियत को मजबूत करते हैं और दूसरों के साथ इंसाफ और अमन के साथ पेश आते हैं।इस्लामी तालीम का फायदा सिर्फ आखिरत तक ही महदूद नहीं, बल्कि यह दुनिया में भी हमें खुशी, सुकून और बेहतर ज़िंदगी गुजारने का तरीका सिखाती है। अगर हम इस्लामी तालीम को अपनी ज़िंदगी में अपना कर जीते हैं, तो हम अपने लिए एक बेहतर दुनिया और आखिरत दोनों की फराज़मी कर सकते हैं।इसलिए, इस्लामी तालीम को बरकरार रखना ज़रूरी है, ताकि हम अपने आ़माल और अखलाक को बेहतर बना सकें और अपनी ज़िंदगी को अल्लाह की रज़ा के मुताबिक गुज़ार सकें।

Conclusion : आखरी बात 

इस्लामी तालीम का असल मकसद इंसान की जिंदगी को बेहतर बनाना है, न सिर्फ दीन के लिहाज से बल्कि दुनिया के लिहाज से भी। आज के दौर में जब लोग दुनियावी तालीम पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लामी तालीम से हमें न सिर्फ अपनी आख़िरत सुधारने का तरीका मिलता है, बल्कि यह हमें इस दुनिया में भी सुकून और खुशी की ज़िंदगी जीने का रास्ता दिखाती है। वालिदैन का भी अहम किरेदार है कि वे बच्चों को इस्लामी तालीम से रूबरू कराएं और खुद भी इस्लामिक अमल करें। इसलिए, हमें इस्लामी तालीम को बरकरार रखना चाहिए, ताकि हम अपनी जिंदगी को सही रह में चला सकें।

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