कुरान की तालीम बच्चों को कुरान मुसलमानों की आखिरी किताब है, जो अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लाहू अलैहि वसल्लम पर नाजिल की गई है। कुरान के बारे में जानना और उसे पढ़ना हर मुसलमान के लिए जरूरी है। कुरान की तिलावत हमें रोज करनी चाहिए, और हमें दूसरों को भी इस बात को समझाना चाहिए। सबसे पहले हमें अपने आस-पास के बच्चों और बड़ों को, और खुद को भी इस अमल को फॉलो करना चाहिए। बच्चों को बचपन से ही कुरान की अहमियत बतानी चाहिए, और उन्हें कुरान की तालीम देनी चाहिए ताकि बच्चों को हमेशा कुरान की तिलावत की आदत रहे।
Namaz Ki Aadat Dalna : नमाज की आदत डालनी
“अल्लाह सुभानहु त’आला ने नमाज़ हर मुसलमान पर फर्ज की है। नमाज़ इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक है। नमाज़ का हुक्म कुरान और हदीस”कोई भी चीज़ अगर हम चाहें कि लगातार हो, तो ऐसा नहीं हो सकता। जैसे अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें सिर्फ दुनिया में इबादत के लिए नहीं भेजा है। अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें कई चीज़ों की छूट दी है, जैसे घूमने-फिरने, खेल-कूद की, शादी करने की, बच्चों की तरबियत करने की। इतनी सारी छूट अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें दी है, और साथ ही यह भी कहा है कि नमाज़ पढ़ो, सच्चाई करो, ज़कात दो और रोज़े रखो। ऐसे ही, अगर हम अपने बच्चों को यह चाहें कि हर वक्त तरीके में रखें और उन्हें हर वक्त मॉनिटर करें, तो ऐसा संभव नहीं है। बच्चों को कुछ बातें समझाने के लिए उनके तरीके से समझाना होगा ताकि उन्हें दिलचस्पी हो। जब बच्चे गलती करें या खाना खा रहे हों, तो उसी वक्त उन्हें गाइड करें ताकि बच्चे को अच्छी तरह समझ आए। हदीस या कुरान की कोई बात कहानी की तरह समझाएं। अगर बच्चे गलती कर रहे हों, तो तुरंत न टोकें, बल्कि जब वह काम पूरा कर लें, उसके बाद समझाएं। बच्चों को हदीस कहानी की तरह सुनाएं, जिससे उन्हें दिलचस्पी हो और वह उस हदीस से प्रेरित हों।” में आता है। जब नमाज़ सभी मुसलमानों पर फर्ज है, तो हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों में यह आदत डालें। हदीस में आता है कि अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अपने बच्चों को जब वो सात साल के हो जाएँ, तो नमाज़ का हुक्म दो, और जब दस साल के हो जाएँ और न पढ़ें, तो उन्हें इस पर मारो और उनके बिस्तर जुदा-जुदा कर दो। इससे साबित होता है कि हम बच्चों पर नमाज़ न पढ़ने पर उनके साथ सख्ती भी कर सकते हैं।”
Bachcho Ko Deen Ki Bate Sikhana : बच्चों को दीन की बाते सिखाना “
कोई भी चीज़ अगर हम चाहें कि लगातार हो, तो ऐसा नहीं हो सकता। जैसे अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें सिर्फ दुनिया में इबादत के लिए नहीं भेजा है। अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें कई चीज़ों की छूट दी है, जैसे घूमने-फिरने, खेल-कूद की, शादी करने की, बच्चों की तरबियत करने की। इतनी सारी छूट अल्लाह सुभानहु त’आला ने हमें दी है, और साथ ही यह भी कहा है कि नमाज़ पढ़ो, सच्चाई करो, ज़कात दो और रोज़े रखो। ऐसे ही, अगर हम अपने बच्चों को यह चाहें कि हर वक्त तरीके में रखें और उन्हें हर वक्त मॉनिटर करें, तो ऐसा संभव नहीं है। बच्चों को कुछ बातें समझाने के लिए उनके तरीके से समझाना होगा ताकि उन्हें दिलचस्पी हो। जब बच्चे गलती करें या खाना खा रहे हों, तो उसी वक्त उन्हें गाइड करें ताकि बच्चे को अच्छी तरह समझ आए। हदीस या कुरान की कोई बात कहानी की तरह समझाएं। अगर बच्चे गलती कर रहे हों, तो तुरंत न टोकें, बल्कि जब वह काम पूरा कर लें, उसके बाद समझाएं। बच्चों को हदीस कहानी की तरह सुनाएं, जिससे उन्हें दिलचस्पी हो और वह उस हदीस से प्रेरित हों।”
Bachcho Ke Phone Me Kese Chize Dekhe : बच्चों को फ़ोन में कैसी चीज़े देखे
बच्चों को सबसे पहले फ़ोन न ही देना बेहतर है, क्योंकि ज़्यादा फ़ोन चलाने और वीडियो देखने से उनकी आँखों पर असर पड़ता है। इसलिए जितना हो सके, बच्चों को फ़ोन से दूर रखें। अगर बच्चे ज़्यादा ज़िद करें, तो थोड़ी देर के लिए फ़ोन दें। लेकिन ध्यान दें कि वो क्या चला रहे हैं। ज़्यादा गेम खेलना सही नहीं है। बच्चों को हो सके तो इस्लामिक ताल्लुक़ की वीडियो, हदीस की कहानियाँ और दुआएँ दिखाएं।”
Deen Talimat Bachcho Ko Ghar Me Kese Den : दीनी तालीम बच्चों को घर में कैसे
“बच्चों को दीनी तालीम देने के लिए घर का माहौल पहले दीनी होना चाहिए, जिससे बच्चा उसी माहौल में ढल सके। अगर हम चाहते हैं कि बच्चा दीनी रहे, तो पहले हमें खुद को दीनी बनना ज़रूरी है, क्योंकि बच्चा अपने माँ-बाप को देख कर ही सब कुछ सीखता है। बच्चों को नमाज़ के वक्त नमाज़ की ताकीद करें, उन्हें अल्लाह का ख़ौफ़ और अल्लाह का शुक्र अदा करना सिखाएं। उनसे इत्मिनान से बात करें। बच्चों के सवालों का जवाब दें। खाना खाने पर उन्हें अदब सिखाएं, जैसे पहले ‘बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम’ पढ़कर खाना शुरू करना। सीधे हाथ से खाना खाएं। खाने की मेज़ पर बैठे, तो पहले किसी बड़े को खाने दें। ऐसी छोटी-छोटी बातें सिखा”ने से बच्चों को घर से ही दीन की तालीम मिलती रहेगी।”दे
Mil Bat Ke Rehna : मिल बांट कर रहना
बच्चों में ऐसी फितरी बात होती है कि बच्चे किसी को अपना सामान किसी और को नहीं पसंद करते। अगर कोई और गिर जाए या उसे चोट लग जाए, तो बच्चों के अंदर यह आदत देखी जाती है कि वे एक-दूसरे पर हंसते हैं और उनका मज़ाक उड़ाते हैं। बच्चों को यह सब मज़ाक लगता है, लेकिन जब बच्चा खुद गलती करता है, तो हम उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। बच्चों को हमेशा ऐसी हरकत पर उसी वक्त प्यार से समझाना चाहिए कि अगर दूसरा बच्चा गिर गया तो उस पर हंसो मत, बल्कि उसकी मदद करो ताकि उसे बुरा न लगे। बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं। हम जैसे उन्हें मोड़ेंगे, वे वैसे ही मुड़ते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम बच्चों को कैसा बना रहे हैं।
Conclusion : आखिरी बात
बच्चों को सही इस्लामी तालीम देना हर मुसलमान के लिए जरूरी है। कुरान की तिलावत, नमाज़ की आदत, और दीनी बातों का एहसास बचपन से ही बच्चों को कराया जाए। बच्चों को सही राह दिखाने के लिए पहले खुद का दीनी होना ज़रूरी है ताकि बच्चे उससे सीख सकें। बच्चों को फोन और दूसरी दुनिया की चीजों से दूर रखकर, उनकी निगरानी करते हुए इस्लामिक कंटेंट दिखाया जाए। बच्चों को मिल-बांट कर रहना और दूसरों की मदद करना सिखाया जाए ताकि वे अच्छे इंसान बन सकें।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.