Illustration of 10 authentic Sahih Hadith every Muslim should know, presented with Islamic calligraphy and serene background.

10 Sahih Hadith Jo Har Muslim Ko Maloom Hone Chahiye

सबसे ज्यादा इस्लाम के बारे में कुरान में है उसके बाद हदीस में| हदीस में जो अल्लाह के रसूल मुहम्मद सलाह अलैहि वसल्लम ने जो कहा जो कर जो अपने करता देखा आप खामोश रहे| उससे हदीस कहते है| और जो भी आपने किया वो करना सुन्नत है| 

Hadith Number 1.

Niyat Ki Ahmiyat : नियत की अहमियत 

 

शहीही अल बुखारी से रिवायत है हदीस नंबर 1 से की 

حَدَّثَنَا الْحُمَيْدِيُّ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ الزُّبَيْرِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا سُفْيَانُ ، قَالَ : حَدَّثَنَا يَحْيَى بْنُ سَعِيدٍ الْأَنْصَارِيُّ ، قَالَ : أَخْبَرَنِي مُحَمَّدُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ التَّيْمِيُّ ، أَنَّهُ سَمِعَ عَلْقَمَةَ بْنَ وَقَّاصٍ اللَّيْثِيَّ ، يَقُولُ : سَمِعْتُ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَلَى الْمِنْبَرِ ، قَالَ : سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، يَقُولُ :    إِنَّمَا الْأَعْمَالُ بِالنِّيَّاتِ ، وَإِنَّمَا لِكُلِّ امْرِئٍ مَا نَوَى ، فَمَنْ كَانَتْ هِجْرَتُهُ إِلَى دُنْيَا يُصِيبُهَا أَوْ إِلَى امْرَأَةٍ يَنْكِحُهَا ، فَهِجْرَتُهُ إِلَى مَا هَاجَرَ إِلَيْهِ    .

‏‏‏‏ और शानवाले अल्लाह का ये फ़रमान ( إِنَّا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ كَمَا أَوْحَيْنَا إِلَى نُوحٍ وَالنَّبِيِّينَ مِنْ بَعْدِهِ ) कि ”हम ने बेशक (ऐ मुहम्मद (सल्ल०)) आपकी तरफ़ वह्य का नुज़ूल इसी तरह किया है जिस तरह नूह (अलैहि०) और उन के बाद आने वाले तमाम नबियों की तरफ़ किया था 

1.नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, अमल का दारोमदार नीयत पर ही है (या नीयत ही के मुताबिक़ उन का बदला मिलता है) और हर आदमी को वही मिलेगा जो नीयत करेगा। इसलिये जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा के लिये हिजरत करे उसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ होगी और जो कोई दुनिया कमाने के लिये या किसी औरत से शादी करने के लिये हिजरत करेगा तो उसकी हिजरत उन ही कामों के लिये होगी।

 

Hadith Number 2. 

‏‏‏‏ Namaz Ki Ahmiyat : नमाज़ की अहमियत 

नमाज़ इस्लाम की बुनियादो में से एक रकम है नमाज़ हर मुसलमान पर फर्ज है जिसकी उम्र 10 साल से ऊपर की हो उन सभी पर नमाज़ फर्ज है| नमाज़ पढ़ने से काफी फायदे है|

 

अबू दावूद की हदीस नंबर 495 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا مُؤَمَّلُ بْنُ هِشَامٍ يَعْنِي الْيَشْكُرِيَّ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ سَوَّارٍ أَبِي حَمْزَةَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ أَبُو دَاوُد:‏‏‏‏ وَهُوَ سَوَّارُ بْنُ دَاوُدَ أَبُو حَمْزَةَ الْمُزَنِيُّ الصَّيْرَفِيُّ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ عَمْرِو بْنِ شُعَيْبٍ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ أَبِيهِ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ جَدِّهِ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ مُرُوا أَوْلَادَكُمْ بِالصَّلَاةِ وَهُمْ أَبْنَاءُ سَبْعِ سِنِينَ، ‏‏‏‏‏‏وَاضْرِبُوهُمْ عَلَيْهَا وَهُمْ أَبْنَاءُ عَشْرٍ سِنِينَ، ‏‏‏‏‏‏وَفَرِّقُوا بَيْنَهُمْ فِي الْمَضَاجِعِ . 

1.जनाब अम्र-बिन-शुऐब अपने वालिद (शुऐब) से और  वो (शुऐब) अपने दादा (अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-अल-आस (रज़ि०)) से बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :  अपने बच्चों को जब वो सात साल के हो जाएँ तो नमाज़ का हुक्म दो और  जब दस साल के हो जाएँ (और  न पढ़ें ) तो उन्हें इस पर मारो और  उन के बिस्तर जुदा-जुदा कर दो।

 

Hadith Number 3. 

Roza Rakhne Ka Hadith : रोजा रखने का हदीस 

रोजा इस्लाम की बुनियादो में से एक रखन है|रमजान का रोजा रखन सभी मुसलमानो पर फर्ज है जिसकी उम्र 10 साल से ज्यादा की होती है उसपर रोजा रखना फर्ज हो जाता है रोजा का हुकुम कुरान और हदीस में आता है| और रमजान के रोज के अलावा भी कई रोजा होता है जो सुन्नत से साबित है और नफील में आता है|

 

शहीही अल बुखारी हदीस नंबर 1894 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ مَسْلَمَةَ ، عَنْ مَالِكٍ ، عَنْ أَبِي الزِّنَادِ ، عَنِ الْأَعْرَجِ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ،    أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ : الصِّيَامُ جُنَّةٌ ، فَلَا يَرْفُثْ ، وَلَا يَجْهَلْ ، وَإِنِ امْرُؤٌ قَاتَلَهُ أَوْ شَاتَمَهُ ، فَلْيَقُلْ : إِنِّي صَائِمٌ مَرَّتَيْنِ ، وَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ لَخُلُوفُ فَمِ الصَّائِمِ أَطْيَبُ عِنْدَ اللَّهِ تَعَالَى مِنْ رِيحِ الْمِسْكِ ، يَتْرُكُ طَعَامَهُ ، وَشَرَابَهُ ، وَشَهْوَتَهُ مِنْ أَجْلِي الصِّيَامُ لِي ، وَأَنَا أَجْزِي بِهِ وَالْحَسَنَةُ بِعَشْرِ أَمْثَالِهَا    .

1.रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, रोज़ा दोज़ख़ से बचने के लिये एक ढाल है इसलिये (रोज़ेदार) न गन्दी बातें करे और न जहालत की बातें और अगर कोई शख़्स उस से लड़े या उसे गाली दे तो उसका जवाब सिर्फ़ ये होना चाहिये कि मैं रोज़ेदार हूँ  (ये अलफ़ाज़) दो मर्तबा (कह दे) उस ज़ात की क़सम! जिसके हाथ में मेरी जान है रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह के नज़दीक कस्तूरी की ख़ुशबू से भी ज़्यादा पसन्दीदा और पाकीज़ा है  (अल्लाह तआला फ़रमाता है) बन्दा अपना खाना पीना और अपनी शहवत मेरे लिये छोड़ देता है  रोज़ा मेरे लिये है और मैं ही उसका बदला दूँगा और (दूसरी) नेकियों का सवाब भी असल नेकी के दस गुना होता है।

 

Hadith number 4. 

Khidmat Ku Hadis : खिदमत की हदीस 

खिदमत करना बहुत अच्छा अमल है| हमे अपने मां बाप की अपने छोटे बड़े सबकी खिदमत करनी चाहिए| अल्लाह के और बस इंसानी की ही नहीं बल्कि मजीद,काबा मदीना और भी जन बेचैन चीजों की हमे खिदमत करनी चाहिए|इसके बारे में हदीस में आता है|

 

सहीही अल बुखारी हदीस नंबर 460 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا أَحْمَدُ بْنُ وَاقِدٍ ، قَالَ : حَدَّثَنَا حَمَّادُ ، عَنْ ثَابِتٍ ، عَنْ أَبِي رَافِعٍ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ،    أَنَّ امْرَأَةً أَوْ رَجُلًا كَانَتْ تَقُمُّ الْمَسْجِدَ وَلَا أُرَاهُ إِلَّا امْرَأَةً ، فَذَكَرَ حَدِيثَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُ صَلَّى عَلَى قَبْرِهَا    .

हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) ने (क़ुरआन की उस आयत)   जो औलाद मेरे पेट में है  या अल्लाह ! मैंने इसे तेरे लिये आज़ाद छोड़ने की नज़र मानी है   के मुताल्लिक़ फ़रमाया कि मस्जिद की ख़िदमत में छोड़ देने की नज़र मानी थी कि (वो उम्र भर) इसकी ख़िदमत किया करेगा।एक औरत या मर्द मस्जिद में झाड़ू दिया करता था। अबू-राफ़ेअ ने कहा,  मेरा ख़याल है कि वो औरत ही थी। फिर उन्होंने नबी करीम (सल्ल०) की हदीस नक़ल की कि आप (सल्ल०) ने उसकी क़ब्र पर नमाज़ पढ़ी।

 

Hadith Number 5. 

Sadqa Ki Ahmiyat : सदका की हदीस

 

सहीही बुखारी हदीस नंबर 1445

حَدَّثَنَا مُسْلِمُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ ، حَدَّثَنَا سَعِيدُ بْنُ أَبِي بُرْدَةَ ، عَنْ أَبِيهِ ، عَنْ جَدِّهِ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ , قَالَ :    عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ صَدَقَةٌ ، فَقَالُوا : يَا نَبِيَّ اللَّهِ ، فَمَنْ لَمْ يَجِدْ ؟ , قَالَ : يَعْمَلُ بِيَدِهِ ، فَيَنْفَعُ نَفْسَهُ وَيَتَصَدَّقُ ، قَالُوا : فَإِنْ لَمْ يَجِدْ ؟ , قَالَ : يُعِينُ ذَا الْحَاجَةِ الْمَلْهُوفَ ، قَالُوا : فَإِنْ لَمْ يَجِدْ ؟ , قَالَ : فَلْيَعْمَلْ بِالْمَعْرُوفِ ، وَلْيُمْسِكْ عَنِ الشَّرِّ فَإِنَّهَا لَهُ صَدَقَةٌ    .

क्योंकि अल्लाह तआला ने (सूरा बक़रा में) फ़रमाया   يا أيها الذين آمنوا أنفقوا من طيبات ما كسبتم‏   ऐ ईमान वालो ! अपनी कमाई की उम्दा पाक चीज़ों में से (अल्लाह की राह में) ख़र्च करो और उनमें से भी जो हमने तुम्हारे लिये ज़मीन से पैदा की हैं। आख़िर आयत ( غني حميد‏ ) तक।

हर मुसलमान पर सदक़ा करना ज़रूरी है। लोगों ने पूछा ऐ अल्लाह के नबी ! अगर किसी के पास कुछ न हो? आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि फिर अपने हाथ से कुछ कमा कर ख़ुद को भी नफ़ा पहुँचाए और सदक़ा भी करे। लोगों ने कहा, अगर उसकी ताक़त न हो? फ़रमाया कि फिर किसी ज़रूरत मन्द फ़रियादी की मदद करे। लोगों ने कहा, अगर उसकी भी ताक़त न हो। फ़रमाया फिर अच्छी बात पर अमल करे और बुरी बातों से बाज़ रहे। उसका यही सदक़ा है।

 

Hadith Number 6. 

Musalmano Me Bhaichara : मुसलमानों मे भाई चारा

 

शहीही बुखारी की हदीस नंबर 13 से रिवर है कि 

حَدَّثَنَا مُسَدَّدٌ ، قَالَ : حَدَّثَنَا يَحْيَى ، عَنْ شُعْبَةَ ، عَنْ قَتَادَةَ ، عَنْ أَنَسٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَعَنْ حُسَيْنٍ الْمُعَلِّمِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا قَتَادَةُ ، عَنْ أَنَسٍ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ :    لَا يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى يُحِبَّ لِأَخِيهِ مَا يُحِبُّ لِنَفْسِهِ    .

1.नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, तुममें से कोई शख़्स ईमानदार न होगा जब तक अपने भाई के लिये वो न चाहे जो अपने नफ़्स के लिये चाहता है।

 

Hadith Number 7. 

Akhlak Ki Ahmiyat : अखलाक की अहमियत 

 

साहिही बुखारी हदीस नंबर 6018 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ بْنُ سَعِيدٍ ، حَدَّثَنَا أَبُو الْأَحْوَصِ ، عَنْ أَبِي حَصِينٍ ، عَنْ أَبِي صَالِحٍ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ :    مَنْ كَانَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَلَا يُؤْذِ جَارَهُ ، وَمَنْ كَانَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَلْيُكْرِمْ ضَيْفَهُ ، وَمَنْ كَانَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَلْيَقُلْ خَيْرًا أَوْ لِيَصْمُتْ    .

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, ”जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो वो अपने पड़ौसी को तकलीफ़ न पहुँचाए और जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो वो अपने मेहमान की इज़्ज़त करे और जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो वो अच्छी बात ज़बान से निकाले वरना ख़ामोश रहे।’’

 

Hadith Number 8.

Gussa Ko Rokna : गुस्सा को रोकना

 

शहीही अल बुखारी हदीस नंबर 6116 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنِي يَحْيَى بْنُ يُوسُفَ ، أَخْبَرَنَا أَبُو بَكْرٍ هُوَ ابْنُ عَيَّاشٍ ، عَنْ أَبِي حَصِينٍ ، عَنْ أَبِي صَالِحٍ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، أَنَّ رَجُلًا قَالَ لِلنَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : أَوْصِنِي ، قَالَ :    لَا تَغْضَبْ    فَرَدَّدَ مِرَارًا ، قَالَ :    لَا تَغْضَبْ    .

एक शख़्स ने नबी करीम (सल्ल०) से कहा कि मुझे आप कोई नसीहत फ़रमा दीजिये। नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि ग़ुस्सा न हुआ कर। उन्होंने कई मर्तबा ये सवाल किया और नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि ग़ुस्सा न हुआ कर।

 

Hadith Number 9.

Zulam Se Dur Rehna : जुलम से दूर रहना

 

बुखारी की हदीस नंबर 2447 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا أَحْمَدُ بْنُ يُونُسَ ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الْعَزِيزِ الْمَاجِشُونُ ، أَخْبَرَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ دِينَارٍ ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ :    الظُّلْمُ ظُلُمَاتٌ يَوْمَ الْقِيَامَةِ 

अल्लाह तआला बुरी बात के ऐलान को पसन्द नहीं करता। सिवाए उसके जिसपर ज़ुल्म किया गया हो  और अल्लाह तआला सुननेवाला और जाननेवाला है।” (और अल्लाह तआला का फ़रमान कि) “और वो लोग कि जिनपर ज़ुल्म होता है तो वो उसका बदला ले लेते हैं।” इब्राहीम ने कहा कि पिछले ज़माने के लोग ज़लील होना पसन्द नहीं करते थे। लेकिन जब उन्हें (ज़ालिम पर) क़ाबू हासिल हो जाता तो उसे माफ़ कर दिया करते थे। और अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि “अगर तुम खुल्लम-खुल्ला तौर पर कोई नेकी करो या छिपकर या किसी के बुरे मामले पर माफ़ी से काम लो  तो ख़ुदावन्द तआला बहुत ज़्यादा माफ़ करनेवाला और बहुत बड़ी क़ुदरतवाला है।” (सूरा शूरा में फ़रमाया:) “और बुराई का बदला उसी जैसी बुराई से भी हो सकता है। लेकिन जो माफ़ कर दे और सुधार के मामले को बाक़ी रखे तो उसका अज्र अल्लाह तआला ही पर है। बेशक अल्लाह तआला ज़ुल्म करनेवालों को पसन्द नहीं करता। और जिसने अपने पर ज़ुल्म किये जाने के बाद उसका (जाइज़) बदला लिया तो उनपर कोई गुनाह नहीं है। गुनाह तो उनपर है जो लोगों पर ज़ुल्म करते हैं और ज़मीन पर नाहक़ फ़साद करते हैं। यही हैं वो लोग जिनको दर्दनाक अज़ाब होगा। लेकिन जिस शख़्स ने (ज़ुल्म पर) सब्र किया और (ज़ालिम को) माफ़ किया तो ये बहुत ही बहादुरी का काम है। और ऐ पैग़म्बर! तू ज़ालिमों को देखेगा जब वो अज़ाब देख लेंगे तो कहेंगे: अब कोई दुनिया में लौट जाने की भी सूरत है?”

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया,  ज़ुल्म क़ियामत के दिन अँधेरे होंगे।

 

Hadith Number 10.

Tauba Karna : तौबा करना 

 

सहीही बुखारी हदीस नंबर 1521 से रिवायत है कि 

حَدَّثَنَا آدَمُ ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ ، حَدَّثَنَا سَيَّارٌ أَبُو الْحَكَمِ ، قَالَ : سَمِعْتُ أَبَا حَازِمٍ ، قَالَ : سَمِعْتُ أَبَا هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، قَالَ : سَمِعْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، يَقُولُ :    مَنْ حَجَّ لِلَّهِ فَلَمْ يَرْفُثْ وَلَمْ يَفْسُقْ رَجَعَ كَيَوْمِ وَلَدَتْهُ أُمُّهُ    .

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, जिस शख़्स ने अल्लाह के लिये इस शान के साथ हज किया कि न कोई गन्दी बात हुई और न कोई गुनाह तो वो उस दिन की तरह वापस होगा जैसे उसकी माँ ने उसे जना था।

 

Conclusion : आखिरी बात

10 सही हदीस जो हर मुसलमान को पता होना चाहिए का मकसद ये है के मुसलमानों को अपनी जिंदगी में नबी-ए-करीम ﷺ के असूलों को समझने और अपनाने में मदद मिले। ये हदीस हमारे अखलाक, इबादत, और मुआमलात में रहनुमाई का जरिया हैं, और हमें अल्लाह के करीब ले जाती हैं। इन हदीसों में आपस में मोहब्बत, सच्चाई, इंसाफ, और सब्र जैसे जरूरी पैगामात शामिल हैं जो हर मुस्लिम की जिंदगी को बेहतरीन बनाते हैं। इन असूलों को अपनाना न सिर्फ दीन में कामयाबी का सबब है बल्कि दुनिया में भी इज्जत और सुकून का जरिया है।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *