ग़ुसल का तरीक़ा इस्लाम में एक अहम इबादत है जो हमारे जिस्म और रूह को पाक और साफ़ रखता है। यह इबादत हमें नापाकी से दूर और अल्लाह के क़रीब रखती है। ग़ुसल का तरीक़ा क़ुरान और सुन्नत में वाज़ेह तौर पर बयान किया गया है, जो हमें सफ़ाई और तहारत के उसूल सिखाता है। हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह ग़ुसल का सही तरीक़ा जाने और उस पर अमल करे, ताके वह पाक और ताहिर होकर अल्लाह की इबादत कर सके। आइए, इस मामले में ग़ुसल का सही तरीक़ा और इसके ज़रूरी अहकाम पर बात करते हैं।
Ghusl Ka Tarika Step By Step: ग़ुस्ल का तरीक़ा स्टेप बाय स्टेप
गुसल में सबसे पहला एहकाम ये है की नियत करे:
1.Ghusl Ki Niyat: गुसल की नियत
ग़ुसल की नीयत पाकी और इबादत के लिए ज़रूरी है। ग़ुसल शुरू करते वक्त दिल में यह इरादा करें कि नापाकी दूर करके पाक हो रहे हैं और अल्लाह के क़रीब हो रहे हैं। नीयत को दिल में रखना काफ़ी है, या कह सकते हैं: “नीयत करता हूँ ग़ुसल की पाकी के लिए।”
2. Bismillah Parhna
पाकीजगी एखतीयर करने के लिए अल्लाह का नाम लेना जरूरी है। तो दिलमे नियत के बाद अल्लाह का नाम लेकर यानि बिसमिल्ला हिररहमा निररहिम पढ़ कर गुसल खाने में दाखिल होने से पहले की दुआ पढ़कर गुसल खाने में बाएं पैर से दाखिल हो जाए ।
Bathroom Mein Jane Ke Pehle Ki Dua: बाथरूम में जाने के पहले की दुआ
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका मिन अल-ख़ुब्थी वल-ख़बाइश ।”
इसका तर्जुमा ये है: अल्लाह! मैं तेरी मदद चाहता हूँ बुरे शैतानी कामों से, जो पूरी दुनिया में परेशानी और नुक्सान का सबब बनते हैं।”
3. Istinja Karna
अब गुसल करना सुरू करे सबसे पहले इस्तिंजा करना होता है । तो इस्तिंजा करने का तरीका ये है की सबसे पहले अपने दोनों हाथों को अच्छी तरह धोए और फिर नापाकी वाली जगह को अच्छी तरह शफ कारें। फिर दुबारा हाथ धोए शाबुन से ताकि हमारे हाथ पाक हो जाए।
4. Wuzu Karna
ग़ुसल में वुज़ू करना ज़रूरी है, लेकिन इसका तरीक़ा थोड़ा मुख़्तलिफ़ होता है। इस्तिंजा के बाद वुज़ू करें जैसे नमाज़ के लिए किया जाता है, 3 बार मुहँ धोए , 3 बार गले का कुल्ली करे, 3 बार नाक में पानी डाले फिर 3 बार चेहरे को धोए फिर कानों में हाथ फेरे लेकिन पाँव आख़िर में धोएं। ग़ुसल में ये वुज़ू इसलिए किया जाता है ताके जिस्म और रूह दोनों पाक हो जाएं और इंसान इबादत के क़ाबिल हो
जाए|
5. Badan Mein Pani Bahana
अब वुज़ू करने के बाद सर का मसा ना करे और ना हाथ धोएं बल्कि पूरे बदन में पानी बहायें । सर से पानी बहायें ताकि पूरे बदन में पानी पहुचें । गुसल में ये बात बहुत जरूरी है की बदन का कोई भी हिस्सा खुस्क ना रह जाए। तो इस बात का ध्यान रखके इस तरह बदन में पानी बहायें की पूरे बदन तक पानी पहुचें ।
अब ये बात आती है की क्या साबुन नहीँ लगा सकते तो एसी कोई बात नही है जब आपने अपने पूरे बदन में पानी बाहा लिया हो तो अगर आपको साबुन लगाना है तो लगा सकते है बालों में शैम्पू लगानी है तो लगा सकते है।
6. Peron Ko Dhona
गुसल का आखिरी हिस्सा है पैरों को धोना तो आप जब पूरी तरह गुसल कर चुके हो तो आपको चाहिए के जहाँ पर अपने गुसल किया है वह से थोरा सा हठकर अपने दोनों पैरों को टखनों तक ढोले और गुसल खाने से बाहार आ जाए। अगर गुसल खाना छोटा हो तो चाहे तो बाहार आकार ढोले या फिर अंदर ही धोकर बाहार आ जाए।
गुसल खाने से बाहार आने के बाद पढ़े “गुफरानाका” फिर जो वुज़ू के दुआ है वो पढ़े:
Wuzu Ke Baad Ki Dua: वुज़ू के बाद की दुआ
“अशहदु अल्ला इलाहा इलल्लाहु वह्दहू ला शरीका लहु ला हुआ व आशहदु अन्ना मुहम्मदं अब्दूहु व रसूलूह।”
इसका तर्जुमा है: “मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।”
Ghusl Ke Faraiz: घुसल के फ़राइज़
- दिल में नियत होना जरूरी है
- बदन के हर हिस्से में पानी पहुँचाना, सर से लेकर पाओं तक और मुंह का कुल्ला करना नाक में पानी पहुँचाना
Juma Ke Ghusl Ka Niyat: जुम्मा के गुसल का नियत
जुम्मा के घुस्ल की नियत ये है: “नियत करता हूँ मैं घुस्ल-ए-जुम्मा की, अल्लाह की रज़ा और साफ़ होने के लिए।” ये नियत दिल से की जाती है और इस से घुस्ल का अमल शुरू होता है। जुम्मा के दिन घुस्ल करना सुन्नत है।
- जाजुम्मा के दिन गुसल करना सुन्नतें मुआक्कदा है तो हर मुसलमान को चाहिए के वो जुम्मा के दिन जरूर पाकीजी हासिल करे
Ghusl Kab Farz Hota Hai: गुसल कब फर्ज होता है?
- हैज़ (महवारी): अगर औरत को हैज़ हो, तो घुस्ल फर्ज होता है जब उसका हैज़ खत्म हो जाए।
- निफास (प्रसव के बाद): अगर औरत ने बच्चे को जन्म दिया हो, तो निफास के बाद घुस्ल फर्ज हो जाता है।
- जुनूब (जनिसी): मर्द और औरत के बीच जिस्मानी तालुक हुआ हो तो दोनों पर गुसल फर्ज हो जाता है।
- मौत (मृत्यु के बाद): हर एक मुसलमान औरत और मर्द जब वफ़ात पा जाए तो तो उन पर गुसल वाजिब होता है।
- इस्तीहाज़ा (योनि से रक्तस्राव): अगर औरत को इस्तीहाज़ा हो (जो के रेगुलर पीरियड्स से अलग है), तो भी घुस्ल की जरूरत हो सकती है।
- इसी तरह कोई ऐसा ख़ाब देखा हो जिससे मनी निकल जाए ऐसा हो कि कपड़ा भीग जाए तो उस हालात में घुसल फर्ज हो जाएगा और अगर सिर्फ खुआब देखा हो मनी खारिज नही हुआ हो तो गुसल फर्ज नही होगा वुज़ू करके नमाज़ पढ़ सकते है।
Aurat Par Ghusl Kab Wajib Hota Hai: औरत पर गुसल कब वाजिब होता हैं
- जब औरत को हैज़ आ जाए तो जब हेज खतम हो जाए तो उस पर गुसल वाजिब हो जाती हैं तो उसे चाहिए के वो घुसल करे
- जब औरत को निफ़ास हो यानि बच्चे पैदा होने के बाद औरतों को निफ़ास होता है तो जब निफ़ास खतम हो जाए उसे चाहिए के वो गुसल करे क्योंकि निफ़ास के बाद गुसल वाजिब हो जाती हैं
- जब हमबिस्तरी करे तो घुसल वाजिब ही जाती हैं तो उसे चाहिए कि वो गुसल करे
- इसी तरह अगर खुआब आए ओर मनी खारिज हो जाए तो घुसल वाजिब हो जाती हैं
Humbistari Ke Baad Ghusl Ka Tarika: हमबिस्तरी के बाद गुसल का तरीका
गुसल का तरीका एक ही है तो उस तरीका से जो हमने ऊपर बताया है उसी तरीके से मर्द नाहा सकता है लेकिन औरतों के लिए कुछ चीजें अलग हो जाती है वो ये के:
- औरत के लिए गुसल का तरीका ये है कि वो चाहे तो बाल खोलके नाहा सकती है चाहे तो बिना बाल खोले नाहा सकती है हमबिस्तरी के बाद लेकिन हेज के बाद का जो गुसल होता है उसमें बाल खोलने का हुकुम है बाकी जो भी है घुसल का तरीका वो Same ही है
Conclusion:
गुस्ल एक बहुत अहम इबादत है जो सिर्फ जिस्मानी सफाई नहीं बल्कि रूहानी तहारत का ज़रिया भी है। इस्लाम में गुस्ल के कुछ ज़रूरी अहकाम और उसूल हैं जो हर मुसलमान के लिए मालूम होना चाहिए। ये इबादत हमें पाकी और तहारत की तरफ ले जाती है और हमेशा याद दिलाती है कि सफाई आधा ईमान है। जब भी गुस्ल फर्ज हो, हमें क़ुरान और सुन्नत के तरीकों पर अमल करते हुए गुस्ल करना चाहिए। गुस्ल को सही तरीके से अंजाम देकर हम अपने आप को अल्लाह के करीब कर सकते हैं और अपनी इबादत को मक़बूल बना सकते हैं।
Ghusl Se Jude Sawal Aur Jawab: गुसल से जुड़े सवाल और जवाब
1. गुसल क्या होता है और इसका मकसद क्या है?
गुसल शरई तोर पर पाक होने का तरीका है जो किसी इबादत से पहले शरीयत के मुताबिक़ ज़रूरी होता है। ये जिस्म पाकी का अमल है जो इंसान को सजा और गुनाह से दूर करने के लिए जरूरी है, खास जनाबत, हैज़, और निफ़ास के बाद।
2. गुसल करना कब ज़रूरी होता है?
गुसल जनाबत, हैज़, निफ़ास, और जुमा के दिन सुन्नत के तोर पर किया जाता है। ये वाज़ेह होता है अगर इंसान ग़ैर पाक हो या उन का इबादत मक़बूल कारवाने के लिए पाकी की ज़रूरी हो। नमाज़, रोज़ा और क़ुरान की तिलावत के लिए ये लाज़मी है।
3. गुसल का सही तरीका क्या है?
गुसल के लिए पहले नियत करनी चाहिए, फिर हाथ और शराब धो कर वुडू करें, फिर पूरा बदन पानी से धोयें। पानी का एक भी हिस्सा जिस्म पर रहना नहीं चाहिए। सर, दोनो हाथ, पांव, और पूरी जिस्म पर पानी पोंचना जरूरी है।
4. गुसल की नियत कैसी है?
दिल में नियत करें: “नीयत करता हूं पाकी हासिल करने की और अल्लाह का कुर्ब हासिल करने की।” ज़ुबान से कहना ज़रूरी नहीं, बस दिल में खुद का इरादा काफ़ी है।
5. गुसल की दुआ क्या है?
गुसल से पहले या बाद में दुआ मांगते हैं:
“अल्लाहुम्मा ताहिर क़ल्बी मिन कुल्ली धनबीन वा अताहिर जिस्मि मिन कुल्ली मासी।”
ये दुआ अल्लाह से माफ़ी और पाकी तालाब करने का तरीका है।
6. गुसल और वुज़ू में क्या फर्क है?
वुज़ू छोटी पाकी के लिए होता है, जैसे नमाज़ के लिए, जबकी गुसल बारा पाक होने के लिए, जैसे जनाबत और हैज़ के बाद। वुज़ू के लिए सिर्फ चाँद अज़ा धो कर पाक होते हैं, मगर गुसल में पूरा बदन धो कर पाकी हासिल होती है।
7. क्या बिना नियत के गुसल मकबूल होता है?
बिना नियत के गुसल मकबूल नहीं होता, क्योंकि नियति इबादत का एक जरूरी हिसा है। दिल से पाकी और इबादत के इरादे के साथ गुसल करना जरूरी है। सिर्फ पानी डालने से गुसल मकबूल नहीं होता।
8. गुसल के वक़्त क्या ग़लतियाँ नहीं करनी चाहिए?
गुसल के वक़्त पानी निकलना नहीं चाहिए और किसी अज़ा को सुखाना नहीं चाहिए। शरमगाह और बाकी जिस्म को अच्छी तरह धो कर पाक करना आसान है। गुसल में जल्दी करना या सिर्फ सर और जोड़ी धो कर छोड़ देना गलत है।
9. क्या गुसल के बाद वुज़ू ज़रूरी है?
गुसल के दोरान अगर वुज़ू के तमाम अरकान अदा हो जाएं, तो अलग से वुज़ू करना ज़रूरी नहीं। लेकिन अगर वुज़ू के अरकान मुकम्मल नहीं हुए, तो अलग से वुज़ू करना ज़रूरी है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.