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Duniya Bhar mein Naye Islami Tehwar aur Ijtemaat ki Pehchan

इस्लाम में किसी नए त्योहार को मनाना या उस पर बात करना एक बहस  का मसला है, क्योंकि इस्लाम में जो शरई त्योहार हैं, उन्हीं को मनाने का हुक्म दिया गया है, जो अल्लाह ने मुसलमानों पर नजिल किए हैं। इन त्योहारों  में ईद-उल-फितर और ईद-उल-अधा जैसे त्योहार शामिल हैं। इनके अलावा, कोई भी नया त्योहार मनाना, या उस पर बात करना, इस्लाम की रौशनी में बिद’अत (नवाचार) में आता है। इसलिए हमें उन त्योहारों से बचना चाहिए, जिन्हें अल्लाह म पर हम मुसलमानों पर नजिल नहीं किया।

Bidat Ki Hadees : विदत की हदीस 

अबू दावूद हदीस नंबर 4607 से रिवायत है।

حَدَّثَنَا أَحْمَدُ بْنُ حَنْبَلٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا الْوَلِيدُ بْنُ مُسْلِمٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا ثَوْرُ بْنُ يَزِيدَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ حَدَّثَنِي خَالِدُ بْنُ مَعْدَانَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ حَدَّثَنِيعَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ عَمْرٍو السُّلَمِيُّ، ‏‏‏‏‏‏وَحُجْرُ بْنُ حُجْرٍ، ‏‏‏‏‏‏قَالَا:‏‏‏‏ أَتَيْنَا الْعِرْبَاضَ بْنَ سَارِيَةَ، ‏‏‏‏‏‏وَهُوَ مِمَّنْ نَزَلَ فِيهِ:‏‏‏‏ وَلا عَلَى الَّذِينَ إِذَا مَا أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لا أَجِدُ مَا أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ سورة التوبة آية 92، ‏‏‏‏‏‏فَسَلَّمْنَا، ‏‏‏‏‏‏وَقُلْنَا:‏‏‏‏ أَتَيْنَاكَ زَائِرِينَ وَعَائِدِينَ وَمُقْتَبِسِينَ، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ الْعِرْبَاضُ صَلَّى بِنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ذَاتَ يَوْمٍ ثُمَّ أَقْبَلَ عَلَيْنَا فَوَعَظَنَا مَوْعِظَةً بَلِيغَةً ذَرَفَتْ مِنْهَا الْعُيُونُ وَوَجِلَتْ مِنْهَا الْقُلُوبُ، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ قَائِلٌ:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ كَأَنَّ هَذِهِ مَوْعِظَةُ مُوَدِّعٍ، ‏‏‏‏‏‏فَمَاذَا تَعْهَدُ إِلَيْنَا ؟ فَقَالَ:‏‏‏‏ أُوصِيكُمْ بِتَقْوَى اللَّهِ وَالسَّمْعِ وَالطَّاعَةِ، ‏‏‏‏‏‏وَإِنْ عَبْدًا حَبَشِيًّا فَإِنَّهُ مَنْ يَعِشْ مِنْكُمْ بَعْدِي فَسَيَرَى اخْتِلَافًا كَثِيرًا، ‏‏‏‏‏‏فَعَلَيْكُمْ بِسُنَّتِي وَسُنَّةِ الْخُلَفَاءِ الْمَهْدِيِّينَ الرَّاشِدِينَ تَمَسَّكُوا بِهَا وَعَضُّوا عَلَيْهَا بِالنَّوَاجِذِ، ‏‏‏‏‏‏وَإِيَّاكُمْ وَمُحْدَثَاتِ الْأُمُورِ فَإِنَّ كُلَّ مُحْدَثَةٍ بِدْعَةٌ وَكُلَّ بِدْعَةٍ ضَلَالَةٌ .

जनाब अब्दुर्रहमान-बिन- उमर सुलमी और हजर -बिन- हजर का बयान है कि हम हज़रत अरबाज़ -बिन- सारिया (रज़ि०) की ख़िदमत में हाज़िर हुए जिनके बारे में ये आयत करीमा नाज़िल हुई थी : ولا على الذين إذا ما أتوك ۔ ۔ ۔ ۔ ۔ उन लोगों पर कोई गुनाह नहीं कि जब वो आप के पास आए कि आप उन्हें सवारी दें  आप ने कहा कि मेरे पास कोई चीज़ नहीं  तो वो इस हाल में लौट गए कि उनकी आँखें  इस ग़म से आँसू बहा रही थीं कि उनके पास कुछ नहीं जिसे वो ख़र्च करें।  हमने उन्हें सलाम  किया और कहा : हम आप से मिलने के लिये आए हैं और ये कि आप की अयादत (बीमार का हाल मालूम) हो जाए और कोई इल्मी फ़ायदा भी हासिल कर लें  तो हज़रत अरबाज़ (रज़ि०) ने बयान  किया कि रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें एक दिन नमाज़ पढ़ाई  फिर हमारी तरफ़ मुँह कर लिया और वाज़ फ़रमाया  बड़ा ही बलीग़ और जामे वाज़  ऐसा कि इस से हमारी आँखें बह पड़ीं और दिल दहल गए। एक कहने वाले ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! ये तो मानो अलवदाई वाज़ था  तो आप हमें  किया वसीयत फ़रमाते हैं? फ़रमाया :  मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ कि अल्लाह का तक़वा इख़्तियार किये रहना और अपने हाकिमों के अहकाम सुनना और मानना  चाहे कोई हब्शी ग़ुलाम ही क्यों न हो। बेशक तुममें से जो मेरे बाद ज़िन्दा रहा वो बहुत इख़्तिलाफ़ देखेगा  चुनांचे  इन हालात में मेरी सुन्नत और मेरे ख़ुलफ़ा की सुन्नत अपनाए रखना, ख़ुलफ़ा जो हिदायत और सीधे रास्ते पर हैं, सुन्नत को ख़ूब मज़बूती से थामना  बल्कि दाढ़ों से पकड़े रहना  नई-नई बिदअतें और नई घड़ी हुई बातों से अपने आप को बचाए रखना  बेशक हर नई बात बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है।

Bidat Karne Walo Ka Anjam : बिदाद करने वालों का अंजाम 

सहीही बुखारी हदीस नंबर 6583 से रिवायत है

حَدَّثَنَا سَعِيدُ بْنُ أَبِي مَرْيَمَ ، حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ مُطَرِّفٍ ، حَدَّثَنِي أَبُو حَازِمٍ ، عَنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ ، قَالَ : قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ :    إِنِّي فَرَطُكُمْ عَلَى الْحَوْضِ مَنْ مَرَّ عَلَيَّ شَرِبَ ، وَمَنْ شَرِبَ لَمْ يَظْمَأْ أَبَدًا ، لَيَرِدَنَّ عَلَيَّ أَقْوَامٌ أَعْرِفُهُمْ وَيَعْرِفُونِي ، ثُمَّ يُحَالُ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ    ،

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, ”मैं अपने हौज़े-कौसर पर तुम से पहले मौजूद रहूँगा। जो शख़्स भी मेरी तरफ़ से गुज़रेगा वो उसका पानी पियेगा और जो उसका पानी पियेगा वो फिर कभी प्यासा नहीं होगा और वहाँ कुछ ऐसे लोग भी आएँगे जिन्हें मैं पहचानूँगा और वो मुझे पहचानेंगे लेकिन फिर उन्हें मेरे सामने से हटा दिया जाएगा।”

 

Islam Ke Aham Tehwar : इस्लाम के अहम त्योहार

ईद उल फितर :

ईद-उल-फितर इस्लाम का एक अहम और मुबारक त्योहार है। इसका मतलब है “तोड़ना” या “खुलना,” जो 30 दिन के रोज़े खत्म होने के बाद मनाया जाता है। यह त्योहार रमजान के पूरे महीने के रोज़ों और इबादत के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान अल्लाह की बारगाह में सजदा करके, नमाज़ अदा करके और नमाज़ से पहले गरीबों को फितरा देकर अपनी खुशी का इज़हार करते हैं।

 

ईद उल आधा :

बकरा ईद, जिसे ईद-उल-अज़हा भी कहा जाता है, मुसलमानों का एक अहम त्योहार है। यह त्योहार हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की क़ुरबानी की याद में मनाया जाता है, जब उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्यारे बेटे हज़रत इस्माइल (अ.स.) की क़ुरबानी देने का इरादा किया। अल्लाह ने उनकी आज़माइश को क़बूल करते हुए, हज़रत इस्माइल (अ.स.) की जगह एक दुंबा भेज दिया। इस दिन मुसलमान क़ुरबानी करते हैं और गोश्त को ग़रीबों, रिश्तेदारों और अपने परिवार के साथ बांटते हैं। बकरा ईद एक शुक्र और ईमान का त्योहार है, जो हमें अल्लाह की रहमत और क़ुरबानी की अहमियत याद दिलाता है।

Kuchh Naye Tahwaar : कुछ नए त्योहार

मुसलमान दूसरी क़ौम के साथ रहते हुए कुछ उनके त्योहारों को धीरे-धीरे अपनाते जा रहे हैं, और कुछ अपने ही दीन में नए काम (बिदअत) शामिल कर रहे हैं। ये सिर्फ़ एक गुमराही और भटकने का रास्ता है, और कुछ नहीं।जो नए रिवाज और काम आज के कुछ मुसलमान अपना चुके हैं, उनमें ये शामिल हैं: शबे-बरात मनाना, 12 रबीउल-अव्वल मनाना, ग्यारहवीं शरीफ मनाना, फातिहा करना, कुरआन-ख़ानी करना, किसी के इंतक़ाल के बाद 40वां बनाना, चाहररम मनाना, मोहर्रम में शरबत बांटना, मोहर्रम में मातम मनाना, ढोल बजाना और इसी तरह के और भी काम।ये सब काम न सिर्फ़ बे-बुनियाद हैं, बल्कि दीन में इनका कोई दलील नहीं है। हमें चाहिए कि हम इन रिवाजात और बिदअत से दूर रहें और अपने दीन की असल तालीमात पर अमल करें।और वही त्यौहार मनाते जो अल्लाह सुभानी ताल ने हरे लिए बनाया है।

Conclusion : आखरी बात 

इस्लाम में नए त्योहारों को मनाना शरीअत के खिलाफ और बिदअत के दायरे में आता है। अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) ने हमें सिर्फ दो त्योहार दिए हैं: ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा। इनकी अहमियत को समझते हुए, हमें अपने दीन की असल तालीमात पर चलना चाहिए और उन कामों से बचना चाहिए, जो बिना किसी शरई दलील के अपनाए गए हों। बिदअतें न सिर्फ गुमराही का रास्ता हैं, बल्कि ये हमारे इमान और दीन पर भी असर डालती हैं। इसलिए, हमें चाहिए कि हम इस्लाम के बताए गए हुक्मों और सही त्योहारों को मनाते हुए, अल्लाह की रज़ा हासिल करें।

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