Role of Islamic charity in addressing today’s humanitarian crises.

Aaj ke Insani Bohraan Mein Islami Charity ka Kirdar

आज के इंसानी बोहरान में इस्लामी चैरिटी का अहम किरदार है। इस्लामिक तालीमात इंसानियत की खिदमत पर ज़ोर देती हैं। ज़कात, सदक़ा, और फ़ित्रा जैसे आमाल न सिर्फ गरीबों की मदद करते हैं, बल्कि समाज में बराबरी का पैगाम भी देते हैं। ज़कात फर्ज है और इसकी अदायगी गरीबों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करती है। सदक़ा नेक अमल का हिस्सा है, जो इंसान को गुनाहों से बचाता और अल्लाह की रहमत हासिल करता है। फ़ित्रा रमज़ान के बाद गरीबों की मदद का ज़रिया बनता है। नेक आमाल और इंसानियत की खिदमत का जज़्बा इस्लामी चैरिटी का मकसद है।

Zakat : जकात 

जकात इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक अहम बुनियाद है। जकात देने से मुसलमान के दिल से माल-ओ-दौलत की मोहब्बत और लालच दूर होती है। अल्लाह का हुक्म सिर्फ बनी इस्राईल यानी यहूदियों के लिए नहीं था, बल्कि सबके लिए है। हज़रत उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हु) जब इन आयात को पढ़ते तो फरमाते कि बनी इस्राईल तो गुज़र गए, अब ये हुक्म हमारे लिए है कि अपने अंदर बुराई को जगह ना दें। ये चीजें हमें हक से दूर कर देती हैं, और अल्लाह का हुक्म है कि नमाज़ क़ायम करो और जकात दो। जकात देने से हमारे माल पाक होते है। 

Zakat Ki Fazilat  :  जकात की फ़ज़ीलत 

  • जकात देने से लोग अपना फर्ज अदा करते है। 
  • दिल मे से माल की मोहब्बत काम हो जाती है। 
  • नफ़स को पाक करती है। 
  • जकात से तालुक अल्लाह के बंदों के साथ होता है। 
  • जकात देने से बस दिनी का तालुक नहीं है बलके इससे हमारई दुनिया भी काफी अच्छी हो जाती है। 
  • माल खरंच करने से और बढ़ता है।

Sadaqah : सदका 

सदका करना हर मुसलमान के लिए एक नेक और प्यारा अमल है। इस्लाम में सदका को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि यह न केवल जरूरतमंदों की मदद करता है बल्कि इंसान के दिल से माल की मोहब्बत को भी कम करता है। सदका देने से दिल में नर्मी आती है और अल्लाह की रहमत हासिल होती है। यह एक ऐसा अमल है जो इंसान को खुदगर्जी से दूर करता है और मक्षरे में भाईचारे को बढ़ावा देता है। सदका का सिलसिला रोजमर्रा की छोटी-छोटी नेकी में भी हो सकता है, जैसे किसी भूखे को खाना खिलाना या किसी को अच्छा सलूक करना। हर मुसलमान को चाहिए कि वह अपनी हैसियत के मुताबिक सदका करे और इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाए। सदका का असल मतलब होता है की हम अगर किसी को कुछ दे रहे है तो हमे उससके बदले मे हमे कुछ नहीं चाहिए होता।

Fitrah : फित्रा 

फित्रा ईद-उल-फ़ित्र से पहले अदा किया जाता है, जब ईद का चांद नजर आता है। इसकी हिकमत यह है कि रोज़े के दौरान होने वाली कोई भी कोताही, कमजोरी या लरज़िश फित्रा देने से पूरी हो जाती है। फित्रा देने का मकसद यह भी है कि ईद के दिन कोई भी गरीब इंसान भीख न मांगे, बल्कि हर मुसलमान के घर में खाना हो और वे ईद की खुशी में शामिल हो सकें। फित्रा देना वाजिब है, और इसे अदा करना हर मुसलमान का फर्ज़ है ताकि समाज में हर कोई इस खुशी के दिन को मना सके।आप के दोर मे फ़ितरा मे खजूर , मुनक्का , पनीर , चावल और जॉ दिया जात था ये सब हर फर्द की तरफ से ढाए किलो देंगे। 

Aam Amal Aur Neki Ka Jazba : आम अमल और नेकी का जज्बानेक

नेक काम करना एक बेहतरीन और सवाब का काम है। नेकी करने से हमारी दुनिया और आख़िरत दोनों संवरती हैं। नेकी के काम वे हैं जो अल्लाह ने हमें कुरआन के जरिए सिखाए हैं और जिनका करने का हुक्म अल्लाह के रसूल ﷺ ने हमें दिया है। इसी तरह, जिन कामों से अल्लाह और उसके रसूल ﷺ ने हमें मना किया है, उनसे बचना भी नेकी है। नेकी से इंसान का दिल सुकून पाता है और अल्लाह की रहमत उसे घेर लेती है। अल्लाह तआला नेकियों का बदला बेशुमार बढ़ाकर देता है, जिससे हमारी आखिरत में भी कामयाबी मिलती है।

Ahsan : अहसान 

अगर कोई आपके साथ बुरा सुलूक करे, तो भी उसके साथ अच्छा सुलूक करना चाहिए। अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ की सुन्नत हमें यही सिखाती है। जब लोग आप ﷺ के साथ बुरा बर्ताव करते, तब भी आप उनके साथ नरमी, सब्र और अच्छे अख़लाक़ से पेश आते। आपकी जिंदगी का हर पहलू हमें यह सबक देता है कि दूसरों के रवैये से हमें अपने किरदार को नहीं बदलना चाहिए। नेक अख़लाक और सब्र के साथ बुरा सुलूक करने वालों को जवाब देना ही सच्ची नेकी और अल्लाह की रज़ामंदी का रास्ता है।

Conclusion : आखरी बात  

आज के दौर में इंसानी बोहरान और गरीबी की समस्याओं का हल इस्लामी चैरिटी में मौजूद है। इस्लामी तालीमात ज़कात, सदक़ा, और फित्रा के ज़रिए न केवल आर्थिक मदद प्रदान करती हैं, बल्कि समाज में बराबरी और भाईचारे का भी पैग़ाम देती हैं।

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