गाज़ा और फिलिस्तीन के हालात अभी भी ज्यादा बेहतर नहीं हैं। गाज़ा और इज़राइल के दरमियान जंग अभी भी जारी है, बल्कि इस जंग में इज़ाफा होता जा रहा है। इज़राइल की तरफ से गाज़ा पर बमबारी, हवाई हमले और ज़मीनी झड़पें की जा रही हैं, जिसकी वजह से कई मासूम लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।इस जंग का सबसे ज्यादा नुकसान मासूम बच्चे और औरतें उठा रहे हैं। मासूम बच्चे अपनी जान गवा रहे हैं और कई अपने परिवार से जुदा हो गए हैं। गाज़ा के आम लोगों के लिए यह जंग किसी दुख से कम नहीं।दुनिया भर के लोग इस जंग का खात्मा चाहते हैं, लेकिन अभी तक कोई खास कदम नहीं उठाया गया। गाज़ा के मासूम लोग अमन और इंसाफ के मुन्तजिर हैं।
Palestine Aur Izrail Ke Bich Ki Jang Ki Wajha : पालिस्टिने और इज़राइल के बीच जंग की वजह
पैलेस्टाइन में एक शहर है जिसका नाम जेरूसलम है, जो कि मुसलमान, यहूदी और ईसाई तीनों के लिए एक मुकद्दस जगह है। यहाँ का एक अहम हिस्सा मस्जिद अल-अक्सा है, जो पैलेस्टाइन के लोगों का है। लेकिन इसरायली लोग उस पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं।10 मई 2021 को इसरायली पुलिस मस्जिद अल-अक्सा के अंदर घुसकर वहाँ इबादत करने वाले लोगों पर रबर बुलेट फायर की। यह सब कुछ मस्जिद अल-अक्सा को लेकर हुआ, जो इस लड़ाई की असल वजह है। यह जगह मुसलमानों के लिए बेहद अहम और मुकद्दस है, और यह जुल्म उनके जज़्बात को सख्त चोट पहुँचाता है।
Musalmano Ka Izhar-E-Hamiyat : मुसलमानों का इज़हरे हमीयत
दुनिया भर में ग़ज़ा और फ़लस्तीन पर जो ज़ुल्म हो रहा है, इससे तमाम मुस्लिमों के दिलों में इसराइल के लिए ग़ुस्सा भर गया है। हर जगह के मुसलमान ग़ज़ा और फ़लस्तीन के साथ खड़े नज़र आते हैं। वो अपनी सपोर्ट अलग-अलग तरीकों से दिखाते हैं, जैसे:
- दुआओं के ज़रिए।
- इबादत के ज़रिए।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आवाज़ उठाकर।
- और मोहताज लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाकर।
मुस्लिम उम्मत ग़ज़ा और फ़लस्तीन के लिए जज़्बाती तौर पर बहुत हिमायत कर रही है। हर शख्स अपने लेवल पर कुछ न कुछ कोशिश कर रहा है, चाहे वो मालवी मदद हो या दुआ जैसी अजीम ताकत के जरिए| यह एक उम्मत के तौर पर वहदत और जज़्बा-ए-इख़लाक़ियत का सबूत है। दुनिया के हर कोने में आवाज़ उठाई जा रही है कि ज़ुल्म का सिलसिला ख़त्म हो और इंसाफ़ का बोलबाला हो।
Insani Himayat Aur Shafqat : इंसानी हिमायत और शफकत
फिलिस्तीन और गाजा के साथ जो जुल्म हो रहा है, इस जुल्म ने दुनिया भर के लोगों के दिलों में रहमत और शफकत का जज़्बा पैदा कर दिया है। सभी मुसलमान अपनी कोशिशों के जरिए जख्मी लोगों की मदद करने की ख्वाहिश रख रहे हैं। इंसानियत के जज़्बे के तहत, वो लोग जो अल्लाह की रज़ा के लिए जुल्म और तकलीफ का सामना कर रहे हैं, चाहे उनका मकसद मज़हबी अकीदा हो या नस्ली यकीन, ये जज़्बा इंसानी अखलाकियत और रहमत के बुनियादी उसूलों पर मबनी है। गाजा और फिलिस्तीन के लोग सिर्फ जुल्म का सामना नहीं कर रहे, बल्कि जुल्म के खिलाफ अपनी आवाज भी उठा रहे हैं। उनकी इस हिम्मत और सब्र को देखते हुए, बहुत से मुसलमानों के दिलों में इंसानियत का जज़्बा उभर रहा है, जो दुनिया में अमन और इंसाफ के लिए एक मिसाल बन रहा है।
Social Media : सोशल मीडिया
दुनिया भर के मुसलमानों ने इस जंग में अपना छोटा सा हिस्सा दिखाया। चाहे वो दुआओं के ज़रिए हो, इबादत के ज़रिए हो, या सदका के ज़रिए हो, हर मुसलमान ने अपना-अपना रोल निभाया है। सोशल मीडिया एक अहम हथियार बन गया है मुसलमानों के लिए, जिसने तमाम मुसलमानों के अंदर इंसाफ के लिए एक जज़्बा पैदा कर दिया है।सोशल मीडिया के ज़रिए लोग अपनी आवाज़ उठा रहे हैं और अपना हिस्सा डाल रहे हैं। इस प्लेटफॉर्म ने दुनिया भर में इस खबर को फैला दिया है, जहाँ लोग ज़ुल्म के खिलाफ और इंसाफ के हक़ में पनी सपोर्ट दिखाते नज़र आ रहे हैं। हर एक अपने तरीके से मदद कर रहा है, और यह एकता का ज़बरदस्त सबूत है।मुसलमानों की यह कोशिश दुनिया को एक पैगाम दे रही है कि ज़ुल्म का सिलसिला खत्म होना चाहिए और इंसाफ का बोलबाला होना चाहिए।
Awami Radde Amal : अवामी रद्द ए अमल
दुनिया भर के कई मुसलमानों ने इजराइल के सामान का इस्तेमाल कम कर दिया है और जितना हो सके उतना अवॉइड कर रहे हैं। इस बॉयकॉट की वजह से इजराइल की हुकूमत को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। ये माली नुकसान उन्हें ज्यादा हथियार खरीदने से रोक रहा है, जो इंसाफ और अमन के लिए एक अच्छी निशानी है। हर एक शख्स का छोटा सा किरदार इस जंग को रोकने में मददगार बन रहा है। ये मुसलसल कोशिश इस बात का सबूत है के एकता और जज्बा दुनिया में तबदीली ला सकते हैं, और इंसाफ का बोलबाला मुमकिन है।
Masjid Al Aqsa Ke Bare Mein Hadith : मस्जिद अल अक्षय के बारे मे हदीस
बुखारी हदीथ नंबर 399 से रिवायत है
حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ رَجَاءٍ ، قَالَ : حَدَّثَنَا إِسْرَائِيلُ ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ ، عَنْ الْبَرَاءِ بْنِ عَازِبٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا ، قَالَ : كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ صَلَّى نَحْوَ بَيْتِ الْمَقْدِسِ سِتَّةَ عَشَرَ أَوْ سَبْعَةَ عَشَرَ شَهْرًا ، وَكَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُحِبُّ أَنْ يُوَجَّهَ إِلَى الْكَعْبَةِ ، فَأَنْزَلَ اللَّهُ قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ سورة البقرة آية 144 ، فَتَوَجَّهَ نَحْوَ الْكَعْبَةِ ، وَقَالَ السُّفَهَاءُ مِنَ النَّاسِ وَهُمْ الْيَهُودُ : مَا وَلَّاهُمْ عَنْ قِبْلَتِهِمُ الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا ، قُلْ لِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ سورة البقرة آية 142 ، فَصَلَّى مَعَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ رَجُلٌ ، ثُمَّ خَرَجَ بَعْدَ مَا صَلَّى ، فَمَرَّ عَلَى قَوْمٍ مِنْ الْأَنْصَارِ فِي صَلَاةِ الْعَصْرِ نَحْوَ بَيْتِ الْمَقْدِسِ ، فَقَالَ : هُوَ يَشْهَدُ أَنَّهُ صَلَّى مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَأَنَّهُ تَوَجَّهَ نَحْوَ الْكَعْبَةِ فَتَحَرَّفَ الْقَوْمُ حَتَّى تَوَجَّهُوا نَحْوَ الْكَعْبَةِ .
अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने रिवायत किया है कि नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया काबा की तरफ़ मुँह कर और तकबीर कह।
नबी करीम (सल्ल०) ने सोलह या सतरह माह तक बैतुल-मक़दिस की तरफ़ मुँह करके नमाज़ें पढ़ीं और रसूल (सल्ल०) (दिल से) चाहते थे कि काबा की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ें। आख़िर अल्लाह तआला ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई : हम आपका आसमान की तरफ़ बार-बार चेहरा उठाना देखते हैं। फिर आप ने काबा की तरफ़ मुँह कर लिया। और अहमक़ों ने जो यहूदी थे कहना शुरू किया कि उन्हें अगले क़िबले से किस चीज़ ने फेर दिया। आप फ़रमा दीजिये कि अल्लाह ही की मिल्कियत है मशरिक़ और मग़रिब अल्लाह जिसको चाहता है सीधे रास्ते की हिदायत कर देता है। (जब क़िबला बदला तो) एक शख़्स ने नबी करीम (सल्ल०) के साथ नमाज़ पढ़ी फिर नमाज़ के बाद वो चला और अंसार की एक जमाअत पर उसका गुज़र हुआ जो अस्र की नमाज़ बैतुल-मक़दिस की तरफ़ मुँह करके पढ़ रहे थे। उस शख़्स ने कहा कि मैं शहादत देता हूँ कि मैंने नबी करीम (सल्ल०) के साथ वो नमाज़ पढ़ी है जिसमें आप ने मौजूदा क़िबले (काबा) की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ी है। फिर वो जमाअत (नमाज़ की हालत में ही) मुड़ गई और काबा की तरफ़ मुँह कर लिया।
बुखारी हदीथ नंबर 1189 से रिवायत है
ح حَدَّثَنَا عَلِيٌّ ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ ، عَنِ الزُّهْرِيِّ ، عَنْ سَعِيدٍ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ , عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ , قَالَ : لَا تُشَدُّ الرِّحَالُ إِلَّا إِلَى ثَلَاثَةِ مَسَاجِدَ ، الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ، وَمَسْجِدِ الرَّسُولِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَمَسْجِدِ الْأَقْصَى .
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि तीन मस्जिदों के सिवा किसी के लिये कजावे न बाँधे जाएँ। (यानी सफ़र न किया जाए) एक मस्जिद अल-हराम दूसरी रसूलुल्लाह (सल्ल०) की मस्जिद ( मस्जिदे-नबवी ) और तीसरी मस्जिद अल-अक़सा यानी बैतुल-मक़दिस।
Conclusion : आखरी बात
गाज़ा और फिलिस्तीन के मौजूदा हालात सिर्फ मुस्लिम उम्मत नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए फिक्र का मामला हैं। ज़ुल्म और जंग से मुतासीर लोग अमन और इंसाफ़ के हक़दार हैं। मुसलमानों ने दुआ, इबादत, सोशल मीडिया और माली मदद के जरिए अपनी एकता दिखाई है। ये कोशिश यह साबित करती है कि इंसाफ़ और अमन की पुकार को दबाया नहीं जा सकता। दुनिया को मिलकर इस ज़ुल्म को रोकने और इंसाफ़ के लिए कदम उठाना ज़रूरी है। गाज़ा के मासूम लोग बेहतर मुस्तगबिल की उम्मीद लगाए है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.