Sardi mein wazu kaise karein - tips for ablution in winter for Muslims

Sardi Mein Namaz Kaise Padhein? Challenges & Solutions

नमाज़ इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक अहम बुनियाद है और हर मुसलमान पर इसे पढ़ना फ़र्ज़ है। नमाज की अहमियत इतना है कि मौसम चाहे ठंड का हो या गर्मी का, इसका पढ़ना हर हाल में करना ज़रूरी है। इसे छोड़ने पर मुसलमान पर गुनाह होता है। वज़ू भी नमाज़ का एक अहम हिस्सा है और अल्लाह को ठंड में किया गया वज़ू बहुत पसंद है। इस्लाम में नमाज़ सिर्फ इबादत ही नहीं, बल्कि एक ऐसा फ़र्ज़ है जो इंसान को हर हाल में अल्लाह के करीब रखता है।और बुराई से रोकता है बेहयाई से रोकता है।

Sardi Mein Wazu Kaise Karein: सर्दी मे वज़ू कैसे करे 

सर्दी के मौसम में वज़ू का तरीका वही रहता है जो बाकी दिनों में होता है। जैसे गर्मी या आम दिनों में वज़ू किया जाता है, वैसे ही सर्दियों में भी वज़ू करना होता है। अगर ठंड बहुत ज्यादा हो तो गर्म पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है, और यह इस्लाम में पूरी तरह से जायज़ है। गर्म पानी से वज़ू करने में कोई मनाही नहीं है।वज़ू में यह सब्र और अल्लाह की इबादत का एक खास तरीका भी माना जाता है।वज़ू करने से ताजगी हासिल होती है। और अल्लाह सुभानी ताला को ठंड का वज़ू करना पसंद है।

Sardi Me Wazu Ki Jagha Tayamum Karna : सर्दी मे वज़ू की जगह तयामुम करना 

अगर बहुत ठंड हो या ऐसी हालत हो जिसमें पानी से वज़ू मुमकिन न हो, तो तायमुम करना जायज़ है। हालांकि, वज़ू करना ज्यादा अफ़ज़ल और पसंदीदा है, और इसके कई फ़ज़ीलत (फायदे) हैं। वज़ू से न केवल पाकी मिलती है, बल्कि यह इबादत में एक खास दर्जा रखता है।वज़ू करने से इंसान को ताजगी का भी एहसास होता है।

वज़ू करने के फ़ज़ीलत 

  • तहरत हासिल होती है। 
  • ताजगी हासिल होती है। 
  • ब्लड प्रेशर अगर जायद होता है तो वो कम है। 
  • वज़ू करने से गुन्नाह धुलते है। 
  • पकी हासिल होती है। 

तयामुम का तरीका

पहले दिल में इरादा करें कि मैं तायमुम कर रहा हूँ। फिर अल्लाह का नाम लेकर शुरू करें: “बिस्मिल्लाहीर इसरहमानीर रहिम।” इसके बाद पाक मिट्टी पर हाथ मारें, फिर उसे फूँक मारकर हाथों को आपस में मिलाएँ। पहले अपने चेहरे पर लगाए, फिर दुबारा मिट्टी पर हाथ मारें और दोनों हाथों को कोहनी तक फेरें। इस तरह तायमुम मुकम्मल होती है

Ghar Mein Namaz Ki Sahuliyat : घर मे नमाज़ की सहूलियत

नमाज़ मस्जिद में पढ़ना जमात से वाजिब है।अगर जमात से ना पढ़े तो गुनहगार होंगे। लेकिन अगर सख़्त ठंड का मौसम हो बीमार होने का उम्मीद हो तो घर में नमाज़ पढ़ सकते है।लेकिन सुस्ती के वजहा से आलस की वजहा से घर में न्ही पढ़ना चाहिए।मस्जिद मे नमाज़ पढ़ना घर मे नमाज़ पढ़ने से ज्यादा अफजल है अगर किसी मसले के वजह से घर मे नमाज़ पढ़ रहे है।तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मस्जिद अल्लाह की पसादीदा जगह है। 

सहीही मुस्लिम की हदीस नंबर 1476 से रिवयत है की

उमर-बिन-अता-बिन-अबी-ख़ुवार ने ख़बर दी कि मैं नाफ़ेअ-बिन-जुबैर-बिन-मुतइम के पास बैठा हुआ था कि इस दौरान  में हमारे पास से जोह्नियों के आज़ाद किये हुए ग़ुलाम ज़ैद-बिन-ज़बान के बहनोई अबू-अब्दुल्लाह गुज़रे, नाफ़ेअ ने उन्हें बुलाया (और हदीस सुनाने को कहा।) उन्होंने कहा : मैंने अबू-हुरैरा (रज़ि०) को कहते हुए सुना कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : इमाम के साथ (पढ़ी गई) नमाज़ ऐसी पच्चीस नमाज़ों से बेहतर है। जो इन्सान अकेले पढ़ता है। 

 

सहीह मुस्लिम हदीस नंबर 6853 से रिवयत  है। 

अबू-मुआविया ने आमश से, उन्होंने अबू-सालेह से और उन्होंने हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत की, कहा : रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया : जिस  शख़्स ने किसी मुसलमान की दुनियावी मुसीबतों  में से कोई तकलीफ़ दूर की, अल्लाह  उसकी क़ियामत की मुसीबतों  में से कोई तकलीफ़ दूर करेगा और जिस  शख़्स ने किसी तंग हाथ के लिये आसानी की, अल्लाह  उसके लिये दुनिया और आख़िरत  में आसानी करेगा और जिसने किसी मुसलमान की पर्दा पोशी की, अल्लाह दुनिया और आख़िरत  में  उसकी पर्दा पोशी करेगा और अल्लाह  उस वक़्त तक बन्दे की मदद  में लगा रहता है जब तक बन्दा अपने भाई की मदद  में लगा रहता है और जो  शख़्स इस रास्ते पर चलता है जिसमें वो इल्म हासिल करना चाहता है, तो अल्लाह इसके ज़रिए से  उसके लिये जन्नत का रास्ता आसान कर देता है, अल्लाह के मकानों  में से किसी घर  में लोगों का कोई गरोह इकट्ठा नहीं होता, वो क़ुरआन की तिलावत करते हैं और  उस का दर्स करते हैं मगर उन पर सकीनत (इत्मीनान और सुकूने-दिल) का नुज़ूल होता है। और (अल्लाह की) रहमत उनको ढाँप लेती है, और फ़रिश्ते उनको अपने घेरे  में ले लेते हैं और अल्लाह अपने क़रीबों  में, जो  उसके पास होते हैं उनका ज़िक्र करता है और जिसके अमल ने उसे (ख़ैर के हासिल करने  में) पीछे रखा,  उसका नसब उसे तेज़ नहीं कर सकता।

 

Namaz Ka Waqt : नमाज की  वक्त

ठंड के मौसम में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं, जिससे नमाज के वक्त में बदलाव आता है। फजर की नमाज का वक्त देर से शुरू होता है और थोड़ी देर तक रहता है, जबकि ईशा का वक्त जल्दी आ जाता है। ऐसे में सर्दियों में पांचों वक्त की नमाज पढ़ना आसान हो जाता है। साथ ही, ठंड में रोज़ा रखना भी  आसान होता है, क्योंकि फजर का वक्त लेट से होता है और मगरिब जल्दी हो जाती है। दिन छोटा होने से रोज़ा का वक्त भी कम हो जाता है, जिससे रोज़ेदार को सहूलियत मिलती है। ठंड के मौसम में प्यास की शिद्दत भी कम होती है, जिससे रोज़ेदार को भूख-प्यास से में आसानी होती है। इस तरह, ठंड का मौसम इबादत और रोज़े के लिए आसान माहौल करता है, जिससे हर मुसलमान को अपने फर्ज अदा करने में राहत महसूस होती है।

Sardi Mein Gusul : सर्दी में गुसुल 

सर्दी के मौसम में अगर गुस्ल फर्ज हो जाए तो इसे करना जरूरी है, क्योंकि तैयम्मुम और वज़ू से इसकी जगह पूरी नहीं होगी। गुस्ल के बिना फर्ज नमाज पढ़ना मुमकिन नहीं है। अगर पानी ठंडा हो तो उसे गरम कर लें और फिर गुस्ल करें ताकि ठंड से बचाव हो सके। इस्लाम में पाकी और साफ-सफाई की बहुत अहमियत है, इसलिए गुस्ल करना जरूरी है चाहे मौसम कैसा भी हो। नमाज इस्लाम का अहम फर्ज है, जिसे किसी भी हाल में छोड़ा नहीं जा सकता। इसीलिए सर्दियों में भी पाकी का खास ध्यान रखें और नमाज को समय पर अदा करें।

Thand Mein Imaan Par Amal Karne Ki Mushkilat Aur Inka Ajr : ठंड मे ईमान पर अमल करना की मुश्किलात और इनका अज़हर 

ठंड का मौसम अक्सर आलस भरा महसूस होता है, और इसी आलस का फायदा उठाकर शैतान हमें इबादत से दूर रखने की कोशिश करता है। शैतान के वसवसों की वजह से हम फज्र की नमाज में सुस्ती महसूस करते हैं और बहाने तलाशते हैं ताकि नमाज न पढ़ें। लेकिन असल में हमें इस आलस पर काबू पाना चाहिए और अल्लाह की इबादत को अपनी पहली अहमियत बनाना चाहिए। अल्लाह को यह पसंद है कि हम हर हालात में उसकी इबादत करें, चाहे मौसम कैसा भी हो। 

Islami Nazar Mein Taharat Aur Safai Ki Ahmiyat Sardi Mein : इस्लामी नजर में तहरत और सफाई की अहमियत सर्दी में 

इस्लाम में सफाई और तहारत (पाकीजगी) पर बहुत ज़ोर दिया गया है, चाहे मौसम कैसा भी हो। सर्दियों के मौसम में जब ठंड का असर ज़्यादा होता है, तब भी मुसलमानों को साफ-सफाई और तहारत पर खास ध्यान देने का हुक्म दिया गया है। ठंड में नहाना और वुज़ू करना मुश्किल ज़रूर हो सकता है, लेकिन इसका अज्र (सवाब) अल्लाह के नज़दीक बढ़ जाता है।

इस्लाम का मकसद है कि इंसान नापाकी से पाक हो जाए और अपनी ज़िंदगी में ज़ाहिरी और बातिनी सफाई हासिल करे। तहारत का हासिल करना  हर मुसलमान के लिए जरूरी है और इसे मुख्तलिफ तरीकों से हासिल करने का हुक्म दिया गया है। इस्लाम में तहारत का आगाज़ कपड़ों से होता है; मुसलमानों को अपने कपड़े साफ़ और पाक रखने चाहिए। खासतौर पर जुमा के दिन गुस्ल (नहाना) का हुक्म दिया गया है, ताकि हर मुसलमान कम से कम हफ्ते में एक बार इस सुन्नत को पूरा कर सके।

ज़ाहिरी तहारत में जिस्म और कपड़ों की सफाई शामिल है, जबकि बातिनी तहारत में दिल और रूह की पाकीजगी आती है, जो इंसान को रूहानी तौर पर पाक बनाती है।

Conclusion : आखिरी बात 

सर्दी के मौसम में भी नमाज़ और पाकी (तहारत) का अहमियत बरकरार रहता है। हर मुसलमान पर यह फ़र्ज़ है कि वो अपनी इबादत को मामूली हालत में और सख्त मौसम में भी जारी रखे। अगर ठंड ज़्यादा हो, तो गरम पानी का इस्तेमाल करके वज़ू और गुस्ल किया जा सकता है। बहुत ही मज़बूरी की सूरत में, जब पानी इस्तेमाल न हो सके, तयम्मुम की सहूलत दी गई है। मस्जिद में नमाज़ पढ़ना ज़्यादा अफज़ल है लेकिन सख्त ठंड या बीमारी के डर में घर पर भी नमाज़ पढ़ी जा सकती है। इस तरह, सर्दी में भी अल्लाह के क़रीब रहने का यह फ़र्ज़ अदा करना ज़रूरी है।

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