मस्जिद में दाखिल होने की दुआ एक अहम इस्लामी दुआ है जो हमें अल्लाह के घर में अदब और ताज़ीम के साथ दाखिल होने का तरीका सिखाती है। जब हम मस्जिद में कदम रखते हैं, ये दुआ हमें याद दिलाती है कि हम एक पाक और मुकद्दस जगह पर हैं जहाँ सिर्फ अल्लाह की इबादत होती है। ये दुआ सिर्फ एक लफ़्ज़ी इबारत नहीं, बल्कि एक इबादत है जो हमें अल्लाह की रहमत और हिदायत के करीब करती है। मस्जिद में दाखिल होते वक़्त इस दुआ का पढ़ना हमें अल्लाह की बरकत और मस्जिद के आदाब का एहसास दिलाता है।
Masjid Me Dakhil Hone Ki Dua : मस्जिद में दाखिल होने की दुआ
اللَّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ
तर्जुमा;:ऐ अल्लाह! मैं तुझसे अपने फ़ज़ल की दरख्वास्त करता हूँ।
Masjid Se Nikalne Ki Dua: मस्जिद से निकलने की दुआ
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ
“Allahumma inni asaluka min fadlika”
तर्जुमा;:ऐ अल्लाह! मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।
Masjid Me Dakhil Hone Ki Dua In Urdu: मस्जिद में दाखिल होने की दुआ उर्दू में
اللَّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ
Tarjuma :اے اللہ! میرے لیے اپنی رحمت کے دروازے کھول دے۔
Masjid Mein Dakhil Hote Waqt Dua Parhne Ka Maqsad: मस्जिद में दाखिल होते वक्त दुआ पढ़ने का मकसद
- मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ पढ़ने का मकसद अल्लाह से बरकत और रहमत की दुआ करना है। यह दुआ इंसान को याद दिलाती है कि वह एक पाक और मुकद्दस जगह में दाख़िल हो रहा है, जहाँ इबादत होती है। दुआ पढ़ने से दिल और ज़ेहन साफ़ होता है, और इंसान मस्जिद के आदाब का ख़्याल रखता है।
- इसके इलावा, दुआ पढ़ने से अल्लाह की रहमत और हिदायत की तलब की जाती है ताकि मस्जिद में की गई इबादत क़बूल हो और सही नीयत के साथ अदा हो। मस्जिद एक ऐसी जगह है जहाँ दुनिया के तमाम मसाइल से दूर होकर सिर्फ़ अल्लाह की याद और इबादत होती है। दुआ इंसान को यह याद दिलाती है कि वह अपने रब के हुज़ूर में आया है और उससे मदद मांग रहा है ताकि उसका अमल मक़बूल हो और उसे अज्र दिया जाए।
- मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ इंसान को ख़ुदा से क़ुर्बत दिलाती है और उसे इस बात का एहसास दिलाती है कि इस पाक जगह के आदाब का ख़्याल रखना चाहिए। इसके ज़रिये इंसान अपने गुनाहों की माफ़ी मांग सकता है और अपनी इबादत को मक़बूल बना सकता है।
- मस्जिद में दाखिल होते वक्त दुआ पढ़ने की फज़ीलत बहुत ज़्यादा है। यह दुआ इंसान को अल्लाह की रहमत और बरकत की तलब करने का मौक़ा देती है। जब इंसान मस्जिद में दाखिल होता है, तो वह एक पाक और मुक़द्दस जगह पर होता है जहाँ इबादत की जाती है। दुआ पढ़ने से दिल और ज़ेहन को सुकून मिलता है, और इंसान मस्जिद के आदाब का ख्याल रखता है।
- इस दुआ के जरिए इंसान अल्लाह से हिदायत और मदद मांगता है, ताकि मस्जिद में की गई इबादत क़बूल हो। मस्जिद में दाखिल होते वक्त दुआ पढ़ने से इंसान को अल्लाह की नज़र-ए-करम का एहसास होता है, और उसे अपने गुनाहों की माफी मांगने का मौक़ा मिलता है। यह दुआ इंसान को अल्लाह से क़ुर्बत दिलाती है और इबादत को बेहतर बनाने की कोशिश करती है।
Masjid Me Dakhil Hone Ki Dua Hindi Me: मस्जिद में दाखिल होने की दुआ हिंदी में
मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ यह है:
اللَّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ
“हे अल्लाह! मेरे लिए अपनी रहमत :दया के दरवाजे खोल दे।”: हिंदी
मस्जिद से निकलते वक्त दुआ पढ़ने का मकसद अल्लाह की शुक्र गुज़ारी और रहमत की तलब करना है। जब इंसान मस्जिद से निकलता है, तो उसे ये याद रहता है कि वह एक पाक जगह पर था, जहाँ उसने इबादत की और अल्लाह से दुआ मांगी। इस वक्त दुआ पढ़कर इंसान अपने गुनाहों की माफी मांगता है और अल्लाह से मदद की दुआ करता है कि उसकी इबादत क़बूल हो।
मस्जिद से निकलने वक्त पढ़ी जाने वाली दुआ, इंसान को ये एहसास दिलाती है कि दुनिया के मसाइल और मुश्किलात से दूर रहकर वह अल्लाह की तरफ रुख़ कर रहा है। ये दुआ इंसान को इस बात की याद दिलाती है कि मस्जिद में गुज़ारा वक्त एक कीमती लम्हा था और उसे इस वक्त को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
इस दुआ के जरिए, इंसान अल्लाह से आखिरी वक्त तक अपने हिफाजत की दुआ मांगता है
Masjid Se Nikalte Waqt Ki Dua Ki Fazilat: मस्जिद से निकलते वक्त दुआ की फजीलत:
- मस्जिद से निकलते वक्त दुआ की फज़ीलत बहुत ज़्यादा है। जब इंसान मस्जिद से निकलता है, तो यह वक्त अल्लाह का शुक्र अदा करने और उसकी रहमत की तलब करने का होता है। इस वक्त दुआ पढ़ने से इंसान को यह एहसास होता है कि उसने एक पाक जगह पर इबादत की है और अब वह दुनिया की मसाइल की तरफ लौट रहा है।
- दुआ पढ़कर इंसान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है और अल्लाह से मदद की दुआ करता है कि उसकी इबादत क़बूल हो। मस्जिद से निकलते वक्त पढ़ने वाली दुआ इंसान को अल्लाह की रहमत का एहसास दिलाती है, जो उसे जिंदगी की मुश्किलात से निकालने में मददगार होती है।
- इस दुआ के ज़रिए, इंसान अल्लाह से अपनी हिफाज़त की दुआ करता है और मस्जिद में गुज़ारे वक्त को याद करता है। मस्जिद से निकलते वक्त दुआ पढ़ने से इंसान का दिल सुकून महसूस करता है, और वह अल्लाह से नज़र-ए-करम की उम्मीद रखता है।
- यह दुआ इंसान को मस्जिद के आदाब का ख्याल रखने की याद दिलाती है और इबादत को बेहतर बनाने की कोशिश करती है, ताकि वह हमेशा अल्लाह की रहमत में रहे
Conclusion : आखिरी बात
मस्जिद में दाखिल और निकलते वक्त दुआ पढ़ने का अमल इंसान के लिए बहुत अहमियत रखता है। ये दुआ अल्लाह की रहमत और बरकत की तलब का ज़रिया है, जो इंसान को अपने गुनाहों की माफी मांगने और इबादत को बेहतर बनाने की याद दिलाती है। मस्जिद एक पाक जगह है, जहाँ इबादत की जाती है, और इस वक्त की अहमियत समझकर इंसान को दुनिया की मसाइल से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। दुआ पढ़ने से दिल में सुकून मिलता है और अल्लाह की तरफ रुख करने का एहसास होता है, जो ज़िंदगी को बेहतर बनाता है।
Masjid mein dakhil hone ke bare mein aham sawalat: मस्जिद के दाखिल होने की दुआ के बारे में अहम सवालात:
1. मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ क्या है?
मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ है: اللّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ. इसका मतलब है, “हे अल्लाह! मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।” ये दुआ अल्लाह की रहमत और बरकत की तालिब होती है।
2. मस्जिद से निकलते वक्त दुआ क्यों पढ़नी चाहिए?
मस्जिद से निकलते वक्त दुआ पढ़ने से अल्लाह का शुक्र अदा होता है और उसकी रहमत तालिब की जाती है। क्या वक़्त इंसान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है और दुआ करता है कि उसकी इबादत क़बूल हो।
3. मस्जिद में दुआ पढ़ने के क्या फायदे हैं?
मस्जिद में दुआ पढ़ने से दिल और जहान को सुकून मिलता है। ये दुआ इंसान को अल्लाह की तरफ रुख करने की याद दिलाती है, और मस्जिद के अदब का ख्याल रखने में मदद करती है।
4. मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ क्या वक़्त पढ़ना चाहिए?
मस्जिद में दखल होने की दुआ हमें वक्त पढ़ना चाहिए जब आप मस्जिद के दरवाजे से अंदर जा रहे हों। ये दुआ अल्लाह की रहमत की तालिब का ज़रिया है।
5. मस्जिद से निकलते वक्त दुआ पढ़ने का क्या मकसद है?
मस्जिद से निकले वक्त दुआ पढ़ने का मकसद अल्लाह का शुक्र अदा करना और अपनी इबादत को मकबूल बनवाना है। क्या वक़्त इंसान को ये याद रहना चाहिए के वो एक पाक जगह पर था।
6. क्या दुआ पढ़ने से इबादत कबूल होती है?
हां, दुआ पढ़ने से इंसान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है और अल्लाह से हिदायत की तालिब करता है। ये दुआ इबादत को क़बूल करने में मददगार होती है।
7. मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ का क्या असर होता है?
मस्जिद में दाख़िल होने की दुआ इंसान को अल्लाह की रहमत और हिदायत की तालिब करने का मौका देती है। ये दुआ इंसान को खुद अल्लाह के करीब लाती है।
8. दुआ पढ़ने से दिल को क्या सुकून मिलता है?
दुआ पढ़ने से दिल को सुकून मिलता है क्यों के इंसान अपने गुनाहों की माफ़ी मांग रहा है और अल्लाह की तरफ रुख कर रहा है, जो जिंदगी को बेहतर बनाता है।
9. मस्जिद में दुआ पढ़ने का अहमियत क्या है?
मस्जिद में दुआ पढ़ने की अहमियत है क्यों के ये इंसान को इबादत की अहमियत समझती है और अल्लाह से कुर्बत का ज़रिया बनती है। क्या वक़्त इंसान अल्लाह की रहमत की तालिब होता है।
10. मस्जिद से निकलते वक्त पढ़ने वाली दुआ का तर्जुमा क्या है?
मस्जिद से निकले वक्त पढ़ने वाली दुआ है: اللّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ. इसका तर्जुमा है, “हे अल्लाह! मैं तुझसे अपने फ़ज़ल की अंधेरगर्दी करता हूँ।” ये दुआ अल्लाह की दौलत और रहमत की तालिब होती है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.