सूरह अर-रहमान क़ुरआन की 55 वीं सूरह है, जो मदनी सूरह है और इसमें 78 आयतें हैं। इस सूरह का सेंट्रल थीम अल्लाह की रहमत और उसके अनेक ब्लेसिंग्स पर है, जो इंसानों और जिन्नों दोनों पर हैं। सूरह का आगाज़ अल्लाह के एक इस्म-ए-मुबारक “अर-रहमान” से होता है, जो उसकी बड़ी रहमत और शफक़त को बयान करता है। इसमें अल्लाह की कुदरत, जन्नत की नेमतों और क़यामत के दिन का ज़िक्र है। ये सूरह इंसानों को याद दिलाती है कि उन्हें अल्लाह की दी हुई नेमतों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए और ये सवाल बार-बार आता है, “तुम अपने रब्ब की किन-किन नेमतों को झुठलाओगे?
सूरह का नाम | सूरह रहमान |
पारा नंबर | 27 (सत्ताईस) |
आयतों की तादाद | 78 (अठत्तर) |
हरूफ की तादाद | 1636 (एक हजार छे सौ छत्तीस) |
कलिमों की तादाद | 351 (तीन सौ इक्यावन) |
रुकूअ की तादाद | 3 (तीन) |
नाज़िल होने की जगह | मक्के में हुई |
Surah Rahman Ki Fazilat: सूरह रहमान की फजीलत
सूरह रहमान की फ़ज़ीलत (महत्त्व) इस्लाम में बहुत अधिक है। इसे “कुरान की दुल्हन” भी कहा जाता है। इसकी कुछ अहम फ़ज़ीलतें ये हैं:
- अल्लाह की रहमत और नेमतों की याद: इस सूरह में अल्लाह की कई नेमतों का ज़िक्र है जो इंसानों और जिन्नों पर हैं। यह अल्लाह की रहम और दरियादिली की याद दिलाती है और इंसान को अल्लाह का शुक्र अदा करने की तरफ मुतवज्जेह करती है।
- दिल को सुकून देने वाली: सूरह रहमान की तिलावत से दिल को सुकून और राहत मिलती है। इसका असर जहनी तनाव और परेशानी में कमी करने में मददगार होता है।
- शिफा (आरोग्यता): माना जाता है कि जो शख्स इसे पढ़ता है, अल्लाह उसकी बीमारियों और परेशानियों को दूर करता है। इसे किसी बीमार शख्स पर पढ़ने से शिफा मिल सकती है।
- कयामत का दिन: यह सूरह कयामत के दिन के खौफनाक हालात को बयान करती है, जिससे इंसान अल्लाह के करीब आता है और उसके प्रति जागरूक होता है।
- जन्नत की नेमतें: इसमें जन्नत की अनगिनत नेमतों का भी ज़िक्र है, जो नेक कर्म करने वालों के लिए हैं, जिससे इंसान को अच्छे कर्म करने का प्रोत्साहन मिलता है।
- “फबिअय्यि आला-ए-रब्बिकुमा तुकज़िबान” का दोहराव: इस आयत का बार-बार दोहराव इंसान को अल्लाह की नेमतों की कद्र करने की याद दिलाता है।
Surah Rahman In Hindi: सूरह रहमान हिन्दी में:
(1) अर-रहमानु
(2) अ’ल्लमल्-क़ुरआन
(3) ख़लक़ल इन्सान
(4) अ’ल्लमहुल-बयान
(5) अश्शम्सु वल्क़मरु बिहुसबान
(6) वन्नज्मु वश्शजरु यस्जुदान
(7) वस्समा-आ अरफा’हा व वज़अ’ल-मिज़ान
(8) अल्ला तत्ग़ौ फिल-मिज़ान
(9) व अकीमूल-वज़्न बिलकिश्ती वला तुख्सिरूल-मिज़ान
(10) वल्अर्द वज़अ’हा लिल-अनाम
(11) फ़ीहा फाकिहतुव-वन्नख्लु ज़ातुल्-अक्माम
(12) वल्हब्बु ज़ुल-अ’स्फि वर्रैहान
(13) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(14) ख़लक़ल-इन्सान मिन् सल्लसालिं कल्फ़ख़्खार
(15) व ख़लक़ल्-जान्न मिम् मर्जिम-मिन्नार
(16) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(17) रब्बुल्-मशरिक़ैनि व रब्बुल्-मग़रिबैनि
(18) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(19) मरजल्-बहरैनि यल्तक़ियान
(20) बैनहुमा बरज़खुल् लायब्ग़ियान
(21) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(22) यख्रुजु मिनहुमल लुलुअ’उ वल्मर्जान
(23) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(24) व लहुल्-जवॉरिल्-मुंशआतु फिल्-बहरि कल्अलाम
(25) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(26) कुल्लु मन्अ’लैहा फान
(27) व यब्क़ा वज्हु रब्बिक ज़ुल्ज़लालि वल-इक्राम
(28) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(29) यस-अलुहु मन फ़िस्समावाति वल-अर्दि कुल्ल यौमिन हुवा फ़ी शअ’न
(30) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(31) सन्-फ़रुगु लकुम अय्युहसक़लान
(32) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(33) या मअ’शरल्- जिन्नि वल-इन्सि इनिस्-त-तअ’तुम् अं तन फ़िज़ू मिन् अक्तारिस्समावाति वल-अर्दि फ़नफ़ुज़ू ला तनफ़ुज़ूना इल्ला बिसुलतान
(34) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(35) युर्सलु अ’लैकुमा शुवाज़ुम्-मिन्नारिन व नुहासुं फ़ला तन्सुरान
(36) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(37) फ़इज़न्शक्क़तिस्समाअु फ़कानत् वार्दतन् कद्दिहान
(38) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(39) फ़यौमइज़िल्-ला युस-अलु अं ज़म्बिही इंसुं वला जान
(40) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(41) युअ’रफ़ुल्-मुज्रिमून बिसीमाहुम् फ़युअ’ख़ज़ु बिन्नवासी वल्-अक़दाम
(42) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(43) हाज़िहि जहन्नमुल्लती युकज्ज़िबु बिहल्-मुज्रिमून
(44) यतूफ़ूना बैन्हा व बैन ह़मीमिम आन
(45) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(46) वलिमन ख़ाफ़ मक़ाम रब्बिही जन्नत़ान
(47) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(48) ज़वाता अफ़नान
(49) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(50) फ़ीहिमा ‘ऐनानि तज्रियान
(51) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(52) फ़ीहिमा मिन् कुल्लि फ़ाक़िहतिन ज़ौजान
(53) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(54) मुत्तकिईन अला फ़ुरुशिं बटाईनुहा मिन इस्तबरक़ व जनल-जन्नतैन दान
(55) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(56) फ़ीहिन्ना क़ासिरातुत-त़रफ़ि लम् यत्मिस्-ह़ुन्न इंसुं क़ब्लहुं व ला जान
(57) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(58) का-अन्नहुन्न याक़ूतुं वल-मरजान
(59) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(60) हल् जज़ाअउल-इह़्सानि इलल-इह़्सान
(61) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(62) व मिन् दूनिहिमा जन्नत़ान
(63) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(64) मुदा’म्मतान
(65) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(66) फ़ीहिमा ‘ऐनानि नज्जाख़त़ान
(67) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(68) फ़ीहिमा फ़ाकिह़तुं व नख़लुं व रुम्मान
(69) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(70) फ़ीहिन्न ख़ैरातुन ह़िसान
(71) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(72) हूरुं मक़सुरातुं फ़िल-ख़ियाम
(73) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(74) लम् यत्मिस्-ह़ुन्न इंसुं क़ब्लहुं व ला जान
(75) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(76) मुत्तकिईन अला रफ्रफ़िं ख़ुदरिं व ‘अबक़रिय्यि ह़िसान
(77) फ़बिअ’य्यि आलाअ रब्बिकुमा तुकज्ज़िबान
(78) तबारक़स्मु रब्बिक ज़िल-जलालि वल-इक्राम
Surah Rahman In Arbic: सूरह रहमान अरबी में:
(1) اَلرَّحْمٰنُ
(2) عَلَّمَ الْقُرْاٰنَﭤ
(3) خَلَقَ الْاِنْسَانَ
(4) عَلَّمَهُ الْبَیَانَ
(5) اَلشَّمْسُ وَ الْقَمَرُ بِحُسْبَانٍ
(6) وَّ النَّجْمُ وَ الشَّجَرُ یَسْجُدٰنِ
(7) وَ السَّمَآءَ رَفَعَهَا وَ وَضَعَ الْمِیْزَانَ
(8) اَلَّا تَطْغَوْا فِی الْمِیْزَانِ
(9) وَ اَقِیْمُوا الْوَزْنَ بِالْقِسْطِ وَ لَا تُخْسِرُوا الْمِیْزَانَ
(10) وَ الْاَرْضَ وَ ضَعَهَا لِلْاَنَامِ
(11) فِیْهَا فَاكِهَةٌ ﭪ–وَّ النَّخْلُ ذَاتُ الْاَكْمَامِ
(12) وَ الْحَبُّ ذُو الْعَصْفِ وَ الرَّیْحَانُ
(13) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(14) خَلَقَ الْاِنْسَانَ مِنْ صَلْصَالٍ كَالْفَخَّارِ
(15) وَ خَلَقَ الْجَآنَّ مِنْ مَّارِجٍ مِّنْ نَّارٍ
(16) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(17) رَبُّ الْمَشْرِقَیْنِ وَ رَبُّ الْمَغْرِبَیْنِ
(18) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(19) مَرَجَ الْبَحْرَیْنِ یَلْتَقِیٰنِ
(20) بَیْنَهُمَا بَرْزَخٌ لَّا یَبْغِیٰنِ
(21) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(22) یَخْرُ جُ مِنْهُمَا اللُّؤْلُؤُ وَ الْمَرْجَانُ
(23) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(24) وَ لَهُ الْجَوَارِ الْمُنْشَــٴٰـتُ فِی الْبَحْرِ كَالْاَعْلَامِ
(25) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(26) كُلُّ مَنْ عَلَیْهَا فَانٍ
(27) وَّ یَبْقٰى وَجْهُ رَبِّكَ ذُو الْجَلٰلِ وَ الْاِكْرَامِ
(28) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(29) یَسْــٴَـلُهٗ مَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضِؕ-كُلَّ یَوْمٍ هُوَ فِیْ شَاْنٍ
(30) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(31) سَنَفْرُغُ لَكُمْ اَیُّهَ الثَّقَلٰنِ
(32) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(33) یٰمَعْشَرَ الْجِنِّ وَ الْاِنْسِ اِنِ اسْتَطَعْتُمْ اَنْ تَنْفُذُوْا مِنْ اَقْطَارِ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضِ فَانْفُذُوْاؕ-لَا تَنْفُذُوْنَ اِلَّا بِسُلْطٰنٍ
(34) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(35) یُرْسَلُ عَلَیْكُمَا شُوَاظٌ مِّنْ نَّارٍ ﳔ وَّ نُحَاسٌ فَلَا تَنْتَصِرٰنِ
(36) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(37) فَاِذَا انْشَقَّتِ السَّمَآءُ فَكَانَتْ وَرْدَةً كَالدِّهَانِ
(38) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(39) فَیَوْمَىٕذٍ لَّا یُسْــٴَـلُ عَنْ ذَنْۢبِهٖۤ اِنْسٌ وَّ لَا جَآنٌّ
(40) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(41) یُعْرَفُ الْمُجْرِمُوْنَ بِسِیْمٰىهُمْ فَیُؤْخَذُ بِالنَّوَاصِیْ وَ الْاَقْدَامِ
(42) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(43) هٰذِهٖ جَهَنَّمُ الَّتِیْ یُكَذِّبُ بِهَا الْمُجْرِمُوْنَﭥ
(44) یَطُوْفُوْنَ بَیْنَهَا وَ بَیْنَ حَمِیْمٍ اٰنٍ
(45) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(46) وَ لِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهٖ جَنَّتٰنِ
(47) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(48) ذَوَاتَاۤ اَفْنَانٍ
(49) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(50) فِیْهِمَا عَیْنٰنِ تَجْرِیٰنِ
(51) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(52) فِیْهِمَا مِنْ كُلِّ فَاكِهَةٍ زَوْجٰنِ
(53) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(54) مُتَّكِـٕیْنَ عَلٰى فُرُشٍۭ بَطَآىٕنُهَا مِنْ اِسْتَبْرَقٍؕ-وَ جَنَا الْجَنَّتَیْنِ دَانٍ
(55) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(56) فِیْهِنَّ قٰصِرٰتُ الطَّرْفِۙ-لَمْ یَطْمِثْهُنَّ اِنْسٌ قَبْلَهُمْ وَ لَا جَآنٌّ
(57) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(58) كَاَنَّهُنَّ الْیَاقُوْتُ وَ الْمَرْجَانُ
(59) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(60) هَلْ جَزَآءُ الْاِحْسَانِ اِلَّا الْاِحْسَانُ
(61) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(62) وَ مِنْ دُوْنِهِمَا جَنَّتٰنِ
(63) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(64) مُدْهَآ مَّتٰنِ
(65) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(66) فِیْهِمَا عَیْنٰنِ نَضَّاخَتٰنِ
(67) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(68) فِیْهِمَا فَاكِهَةٌ وَّ نَخْلٌ وَّ رُمَّانٌ
(69) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(70) فِیْهِنَّ خَیْرٰتٌ حِسَانٌ
(71) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(72) حُوْرٌ مَّقْصُوْرٰتٌ فِی الْخِیَامِ
(73) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(74) لَمْ یَطْمِثْهُنَّ اِنْسٌ قَبْلَهُمْ وَ لَا جَآنٌّ
(75) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(76) مُتَّكِـٕیْنَ عَلٰى رَفْرَفٍ خُضْرٍ وَّ عَبْقَرِیٍّ حِسَانٍ
(77) فَبِاَیِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
(78) تَبٰرَكَ اسْمُ رَبِّكَ ذِی الْجَلٰلِ وَ الْاِكْرَامِ
Surah Rahman Meaning in Hindi: सूरह रहमान हिंदी तरजुमा के साथ:
(1) वह रहमान ही है
(2) जिसने कुरान की तालीम दी।
(3) उसी ने इंसान को पैदा किया।
(4) सूरज और चाँद एक हिसाब में जकड़े हुए हैं।
(5) और बेलें और दरख्त सब उसके आगे सजदा करते हैं।
(6) और आसमान को उसी ने बुलंद किया है,
(7) और उसी ने तराजू क़ाइम की है,
(8) कि तुम तौले में ज़ुल्म न करो।
(9) और ज़मीन को उसी ने सारी मख्लूकात के लिए बनाया है।
(10) और ज़मीन को उसी ने सारी मख्लूकात के लिए बनाया है।
(11) उसी में मेवे और खजूर के गभों वाले दरख्त भी हैं,
(12) और भूसे वाला धान और खुशबूदार फूल भी।
(13) (ए इंसानों और जिन्नात!) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(14) और जिन्नात को आग की लपट से पैदा किया।
(15) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(16) दोनों मशरिकों और दोनों मगरिबों का परवरदिगार वही है।
(17) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(18) (फिर भी) उनके दरमियान एक आरे होती है कि वो दोनों अपनी हद से बढ़ते नहीं।
(19) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(20) इन दोनों समुद्रों से मोती और मोंगा निकलता है।
(21) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(22) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(23) इस ज़मीन में जो कोई है, फना होने वाला है,
(24) और (सिर्फ) तुम्हारे परवरदिगार की जलाल वाली, फज़ल ओ करम वाली ज़ात बाकी रहेगी।
(25) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(26) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(27) ए दो भारी मख्लूकात! हम अनक़रीब तुम्हारे (हिसाब के) लिए फारीग होने वाले हैं।
(28) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(29) ए इंसानों और जिन्नात के गिरोह! अगर तुम में यह बल हो कि आसमानों और ज़मीन की हदों से पार निकल सको, तो पार निकल जाओ। तुम ज़बरदस्त ताकत के बग़ैर पार नहीं हो सकोगे।
(30) तुम पर आग का शोला और तंबाकू के रंग का धुआं छोड़ा जाएगा, फिर तुम अपना बचाव नहीं कर सकोगे।
(31) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(32) ग़र्ज (वह वक्त आएगा) जब आसमान फट पड़ेगा, और लाल चमड़े की तरह सُرخ गुलाब बन जाएगा।
(33) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(34) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(35) मुझरिम लोगों को उनकी अलामतों से पहचान लिया जाएगा, फिर उन्हें सिर के बालों और पांव से पकड़ा जाएगा।
(36) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(37) यह है वह जहन्नम जिसे यह मुझरिम लोग झुठलाते थे!
(38) यह उसी के और खोलते हुए पानी के दरमियान चक्कर लगाएंगे।
(39) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(40) और जो शख्स (दुनिया में) अपने परवरदिगार के सामने खड़ा होने से डरता था, उसके लिए दो बाग़ होंगे।
(41) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(42) दोनों बाग़ शाखों से भरे हुए!
(43) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(44) उन्हीं दो बाग़ों में दो चश्मे बह रहे होंगे,
(45) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(46) उन दोनों में हर फल के दो-दो जोड़े होंगे,
(47) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(48) वह (जन्नती लोग) ऐसे फरशों पर तकिया लगाए हुए होंगे जिनके अस्तर डबीज़ रेशम के होंगे,
(49) और दोनों बाग़ों के फल झुके पड़े होंगे।
(50) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(51) इन्हीं बाग़ों में वो नीची निगाह वालीयां होंगी जिन्हें इन जन्नतियों से पहले न किसी इंसान ने कभी छुआ होगा, और न किसी जिन्न ने!
(52) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(53) वह ऐसी होंगी जैसे याकूत और मर्ज़ान!
(54) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(55) अच्छाई का बदला अच्छाई के सिवा और क्या है?
(56) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(57) और इन दो बाग़ों से कुछ कम दर्जे के दो बाग़ और होंगे।
(58) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(59) दोनों सब्ज़ी की कसरत से सियाही की तरफ़ माइल!
(60) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(61) उन्हीं में दो उबलते हुए चश्मे होंगे,
(62) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(63) उन्हीं में मेवे और खजूरें और अनार होंगे,
(64) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(65) उन्हीं में खूबसूरत और ख़ूबसूरत औरतें होंगी,
(66) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(67) वह हूरें जिन्हें खेमों में हिफाज़त से रखा गया होगा!
(68) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(69) उन्हें इन जन्नतियों से पहले न किसी इंसान ने कभी छुआ होगा, और न किसी जिन्न ने।
(70) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(71) वह (जन्नती) सब्ज़ रफ्रफ और अजीब ओ गरीब किस्म के खूबसूरत फरश पर तकिया लगाए हुए होंगे।
(72) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(73) बड़ा बर्क़त नाम है तुम्हारे परवरदिगार का जो आज़मत।
(74) उन्हें इन जन्नतियों से पहले न किसी इंसान ने कभी छुआ होगा, और न किसी जिन्न ने।
(75) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(76) वह (जन्नती) सब्ज़ रफ्रफ और अजीब ओ गरीब किस्म के खूबसूरत फरश पर तकिया लगाए हुए होंगे।
(77) अब बताओ कि तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नाइमातों को झुठलाओगे?
(78) बड़ा बर्क़त नाम है तुम्हारे परवरदिगार का जो आज़मत वाला भी है, करम वाला भी!
Surah Rahman Hindi Aur Arabic Mein | Surah Rahman Hindi Tarjuma Ke Sath: सूरह रहमान हिंदी और अरबी में | सूरह रहमान हिंदी तरजुमा के साथ:
Conclution: आख़िरी बात
सूरह रहमान हर मुसलमान के लिए एक अनमोल तोहफा है जो अल्लाह की रहमत और कुदरत का एहसास दिलाती है। क्या सूरह को पढ़ने और समझने से इंसान के दिल को सुकून और रूहानी सुकून मिलता है। फ़ज़िलत के लहज़ से, ये सूरह ज़िन्दगी में शुक्र और सब्र का पैगाम देती है। हिंदी तर्जुमा के साथ सूरह रहमान का मुताला करना, हर आयत की गहराई और अल्लाह की नेमतों का एहसास करने का मौका देना। अपनी रूह को मज़बूत बनाने और जिंदगी में बरकत लानी के लिए सूरह रहमान का रोज़ाना तिलावत ज़रूर करें।
Surah Rahman Ke Bare Mein Aham Sawalat: सूरह रहमान के बारे में अहम सवालत
1. सूरह रहमान का मकसद क्या है?
सूरह रहमान का मक़सद अल्लाह की रहमत और क़ुदरत का इज़हार करना है। इस्मे अल्लाह की दी हुई नेमतों का जिक्र है और इंसान को उनका शुक्र अदा करने का पैग़ाम दिया गया है। ये सूरा इंसानी जिंदगी में शुक्र और सब्र का एहसास जागता है।
2. सूरह रहमान की फजीलत क्या है?
सूरह रहमान की फजीलत ये है कि इसकी तिलावत दिल को सुकून देती है और रूह को तसल्ली। ये इंसान जिंदगी में अल्लाह की नेमतों का अहसास दिलाती है और आखिरत में माफी और रहमत का सबब बन सकती है।
3. सूरह रहमान हिंदी में क्यों पढ़ें?
हिंदी में सूरह रहमान समझने का फैसला ये है कि हर आयत का मतलब आसान से समझ में आता है। इस तरह से अल्लाह के पैगाम को अच्छी तरह से समझा जाता है और उनका अमल करना आसान हो जाता है।
4. सूरह रहमान का अरबी मत क्या है?
सूरह रहमान का अरबी मत क़ुरान के असल ज़बान में है। इसकी तिलावत से रूहानी सुकून मिलता है और कुरान के असल मानी समझ का मोका मिलता है।
5. सूरह रहमान को रोज़ाना तिलावत करने का फ़ैदा क्या है?
रोज़ाना सूरह रहमान की तिलावत दिल और रूह के लिए सुकून का ज़रिया है। इसका फ़ैदा ये है कि अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है और ज़िंदगी में बरकत आती है।
6. सूरह रहमान किस वक्त पढ़ना बेहतर है?
सूरह रहमान को सुबह और शाम दोनों वक्त पढ़ना बेहतर है। क्या वक्त तिलावत करने से जिंदगी में सुकून, बरकत और रूहानी सुकून मिलता है।
7. सूरह रहमान का उर्दू तर्जुमा क्यों जरूरी है?
उर्दू तर्जुमा से हर आयत का मतलब समझना आसान होता है। इस तरह इंसान अल्लाह के पैगाम को अपनी जिंदगी में लागू कर सकता है और उनका शुक्र अदा कर सकता है।
8. सूरह रहमान की तिलावत के रूहानी फ़ेदे क्या हैं?
सूरह रहमान की तिलावत रूहानी सुकून, दिल का सुकून और आख़िरत में अल्लाह की रहमत का ज़रिया बन सकती है। ये इंसान को अल्लाह के करीब करती है.
9. सूरह रहमान को कैसे याद करें?
सूरह रहमान को याद करने के लिए रोज़ाना थोड़ा-थोड़ा पढ़ें और इसका तर्जुमा समझने की कोशिश करें। आयत को दोहराना या सूरह सुनना भी याद करने का अच्छा तरीका है।
10. सूरह रहमान क्या हर मुश्किल दूर कर सकती है?
सूरह रहमान की तिलावत से दिल को सुकून मिलता है और मुश्किलों का हल अल्लाह की रहमत से मिलता है। ये अल्लाह की क़ुदरत और मदद का एहसास दिलाती है जो हर मुश्किल को आसान बना सकती है।
I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.