उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने के बाद से मुस्लिम संगठनों और उलेमा का विरोध जारी है। इस कानून को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद के सद्र मौलाना अरशद मदनी ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस मामले पर अदालत जल्द सुनवाई कर सकती है।
इससे पहले भी दो अन्य याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की जा चुकी हैं। अदालत ने सरकार से छह सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।
UCC को क्यों दी गई हाईकोर्ट में चुनौती?
मौलाना अरशद मदनी और जमीयत उलमा-ए-हिंद का कहना है कि UCC भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और देश की एकता व अखंडता के लिए खतरा बन सकता है। याचिका में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं:
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मजहबी आज़ादी पर प्रहार:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, 26 और 29 प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है, इसलिए UCC लागू करना अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का हनन होगा।
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संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांत बनाम मौलिक अधिकार:
- सरकार अनुच्छेद 44 का हवाला देकर UCC लागू करने का तर्क दे रही है, जबकि यह सिर्फ एक नीतिगत दिशा-निर्देश है।
- इसके विपरीत, अनुच्छेद 25-29 मौलिक अधिकारों के तहत आते हैं और इनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
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एक देश, एक कानून का तर्क कमजोर:
- भारत में कई मामलों में राज्यों के कानून अलग-अलग हैं, जैसे कि गौहत्या पर प्रतिबंध।
- यदि हर राज्य को कुछ विशेष कानून बनाने की छूट है, तो केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ को निशाना बनाना असंवैधानिक है।
UCC पर जमीयत का रुख: क्यों है विरोध?
मौलाना मदनी के अनुसार, मुसलमानों के लिए शरियत और मजहबी कानून महत्वपूर्ण हैं, और वे इसके साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते। उन्होंने कहा,
“हम शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को कबूल नहीं कर सकते। मुसलमान हर चीज़ से समझौता कर सकता है, लेकिन अपने मजहब से नहीं। यह उनके वजूद और हक का सवाल है।”
इसके अलावा, उनका तर्क है कि जो लोग धार्मिक पर्सनल लॉ को नहीं मानना चाहते, उनके लिए पहले से ही विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act, 1954) मौजूद है। ऐसे में UCC लागू करने की जरूरत नहीं है।
क्या है UCC? और इसका प्रभाव क्या होगा?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करने का प्रस्ताव है, जिसमें विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार से जुड़े व्यक्तिगत कानूनों को統一 किया जाएगा।
यदि यह लागू होता है, तो:
✅ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के लिए एक ही कानून लागू होगा।
✅ धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर विवाह या तलाक की प्रक्रिया समाप्त हो सकती है।
✅ अल्पसंख्यकों को विशेष धार्मिक अधिकारों से वंचित किया जा सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय: क्या UCC संभव है?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि:
- संविधान संशोधन के बिना UCC को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसले यह स्पष्ट कर चुके हैं कि व्यक्तिगत कानून मौलिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते, लेकिन उन्हें जबरन समाप्त करना भी उचित नहीं होगा।
- राजनीतिक और सामाजिक सहमति के बिना UCC को लागू करना असंभव होगा।
सरकार का पक्ष: क्यों जरूरी है UCC?
सरकार का तर्क है कि UCC संविधान के समानता और न्याय के सिद्धांतों को मजबूत करेगा। उनका मानना है कि:
- सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना चाहिए, ताकि कोई भेदभाव न हो।
- यह लैंगिक समानता (Gender Equality) को भी बढ़ावा देगा।
- यह धर्म के आधार पर अलग-अलग कानूनों को खत्म कर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा।
हालांकि, विरोधी दलों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, और इसे किसी एक समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष: क्या UCC लागू होना चाहिए?
UCC को लेकर भारत में तीखी बहस जारी है। जमीयत उलमा-ए-हिंद और अन्य मुस्लिम संगठन इसे संवैधानिक अधिकारों पर हमला मान रहे हैं, जबकि सरकार इसे समानता और न्याय का प्रतीक बता रही है।
👉 क्या UCC लागू किया जाना चाहिए, या इसे ऐच्छिक (Optional) बनाया जाना चाहिए?
👉 क्या सरकार को सभी समुदायों से विचार-विमर्श करके इस पर आम सहमति बनानी चाहिए?
इसका फैसला अदालत और जनता की राय पर निर्भर करेगा। फिलहाल, इस मुद्दे पर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई जारी है।

I attained the title of Hafiz-e-Quran from Jamia Rahmania Bashir Hat, West Bengal. Building on this, in 2024, I earned the degree of Moulana from Jamia Islamia Arabia, Amruha, U.P. These qualifications signify my expertise in Quranic memorization and Islamic studies, reflecting years of dedication and learning.